श्रीनगर। करीब दो साल पहले कश्मीर पुलिस ने उन 12 आईएसआईएस समर्थकों को हिरासत में लिया था जिनकी पहचान जुम्मे के दौरान लगातार होने वाले प्रदर्शनों में आईएसआईएस के झंडे फहराने के आरोप में हुई थी। उसके बाद आईएसआईएस को लेकर मामला ठंडा हो गया क्योंकि पुलिस ने इन गिरफ्तारियों के साथ ही आईएसआईएस का कश्मीर में खात्मा समझ लिया।
पुलिस का कहना है कि उसने करीब 12 आईएसआईएस समर्थकों को पकड़ा था। कुछेक को बाद में समझाने-बुझाने के बाद रिहा इसलिए कर दिया गया था, क्योंकि उन्हें नासमझ और बरगलाए गए बच्चे समझा गया था, पर अभी भी यह सवाल मुंहबाए खड़ा है कि अगर इन गिरफ्तारियों के साथ ही कश्मीर में आईएसआईएस के खात्मे का जो दावा किया गया था वह कहां तक सही था।
सवाल जवाब इसलिए मांग रहा है क्योंकि इन दो सालों के दौरान शायद ही कोई शुक्रवार ऐसा खाली गया होगा जिस दिन आईएसआईएस के समर्थकों ने जुम्मे की नमाज के बाद पाकिस्तानी झंडों के साथ-साथ आईएसआईएस के झंडे लहराकर आईएसआईएस के कश्मीर में आने का संदेश न दिया हो। कश्मीर में आईएसआईएस की दस्तक का इंतजार कर रहे सुरक्षाबलों के रवैए के प्रति सच्चाई यह है कि उन्होंने इस खतरे को बहुत ही हल्के से लिया है। आईएसआईएस के नाम की दहशत भी उसी समय कश्मीर में फैली जब आईएसआईएस के आतंकियों ने पेरिस में वहिशयाना तरीके से आतंकी हमले किए।
इन हमलों के बाद ही कश्मीर में आनन-फानन आईएसआईएस के समर्थकों की पहचान, उन पर निगरानी रखने और उनकी गतिविधियों को जांचने की प्रक्रिया में बिजली सी तेजी लाई गई। साथ ही दावा भी हो गया कि कश्मीर में ऐसा कोई खतरा नहीं है। रोचक बात पुलिस द्वारा किए गए इस दावे की यह थी कि इसके दो ही दिन बाद राज्य में तैनात सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने यह भी दावा कर दिया कि आईएसआईएस कश्मीर में हमले कर सकता है।
यह बात अलग है कि उन्होंने यह जरूर कहा कि वह लश्कर के साथ मिलकर या उसके नाम पर ऐसी कार्रवाई कर सकता है। फिलहाल किसी को उम्मीद नहीं है कि आईएसआईएस के खतरे से कश्मीर को मुक्ति मिलेगी। याद रहे कश्मीर में फिदायीन हमले, कार बम हमले और आत्मघाती हमले इन्हीं तालिबानियों तथा मुजाहिदीनों की देन थी।