Who is Pakistan Border Action Team: एलओसी पर बुधवार हुए ताजा बैट (BAT) अर्थात पाक सेना के कमांडो हमले के बाद भारतीय सेना का मानना है कि पाक सेना एलओसी (LoC) पर बॉर्डर रेडर्स के सदस्यों के जरिए कमांडो कार्रवाइयों को अंजाम देना चाहती है। सेना के अधिकारियों के मुताबिक उन्हें प्राप्त सूचना के मुताबिक, पाकिस्तान एलओसी पर और अधिक कमांडो हमले की कोशिश कर रहा है। हालांकि भारतीय सेना ऐसे किसी भी हमले का मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है।
बॉर्डर रेडर्स के नाम से जाने जाने वाले यह कमांडो पाकिस्तान के विशेष बलों के कर्मियों और आतंकियों का एक मिलाजुला स्वरूप है। पिछले कुछ सालों में पाक बॉर्डर रेडर्स भारत के कई सैनिकों की नृशंस हत्या कर चुका है। कई के वह सिर भी काट कर ले जा चुका है। बॉर्डर रेडर्स के हमले ज्यादातर एलओसी के इलाकों में ही हुए थे। इंटरनेशनल बॉर्डर पर पाक सेना ऐसी हिम्मत नहीं दिखा पाई थी। जबकि राजौरी और पुंछ के इलाके ही बॉर्डर रेडर्स के हमलों से सबसे अधिक त्रस्त इसलिए भी रहे थे क्योंकि एलओसी से सटे इन दोनों जिलों में कई फारवर्ड पोस्टों तक पहुंच पाना दिन के उजाले में संभव इसलिए नहीं होता था क्योंकि पाक सेना की बंदूकें आग बरसाती रहती थीं।
जब वायुसेना की लेनी पड़ी मदद : बॉर्डर रेडर्स के हमलों को कश्मीर सीमा पर स्थित सैन्य पोस्टों में तैनात जवानों ने भी सीजफायर से पहले की अवधि में सहन किया है। सैन्य अधिकारियों के मुताबिक, भारतीय इलाके में घुसकर भारतीय जवानों के सिर काटकर ले जाने की घटनाओं को भी इन्हीं बॉर्डर रेडर्स ने अंजाम दिया था। जबकि 17 साल पहले उड़ी की एक पोस्ट पर कब्जे की लड़ाई में भारतीय वायुसेना को भी शामिल करना पड़ा था, जिसे भारतीय सैनिकों ने भयानक सर्दी के कारण खाली छोड़ दिया था।
कारगिल युद्ध के बाद बनी बॉर्डर रेडर्स टीम : वैसे एलओसी पर बॉर्डर रेडर्स के हमले कोई नए भी नहीं हैं। इन हमलों के पीछे का मकसद हमेशा ही भातीय सीमा चौकियों पर कब्जा जमाना रहा है। पाकिस्तानी सेना की कोशिश कोई नई नहीं है। कारगिल युद्ध की समाप्ति के बाद हार से बौखलाई पाकिस्तानी सेना ने बॉर्डर रेडर्स टीम का गठन कर एलओसी पर ऐसी बीसियों कमांडो कार्रवाइयां करके भारतीय सेना को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की।
26 जुलाई 1999 को जब करगिल युद्ध की समाप्ति की घोषणा हुई तो उधर पाक सेना ने अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देना आरंभ कर दिया था। उसने त्रिस्तरीय रणनीति बनाई जिसके पीछे का मकसद भारतीय सेना को अधिक से अधिक नुक्सान पहुंचाना तो था ही कश्मीर में भी लोगों को नुकसान पहुंचाया।
बैट के साथ होते हैं आतंकवादी : कारगिल युद्ध के बाद ही फिदायीनों, मानव बमों के हमलों की भी शुरूआत हुई थी। साथ ही शुरूआत हुई थी भारतीय सीमा चौकियों पर बॉर्डर रेडर्स के हमलों की। हालांकि सैन्य सूत्र कहते हैं कि पाक सेना द्वारा गठित बॉर्डर रेडर्स में आतंकी भी शामिल होते हैं, जिन्हें हमलों में इसलिए शामिल किया जाता रहा है ताकि वे कश्मीर में घुसने के बाद वहशी कृत्यों को अंजाम दे सकें। पिछले 26 सालों में बॉर्डर रेडर्स ने भारतीय सीमा चौकियों कई बार हमले किए, लेकिन इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है।
कौन है पाकिस्तान की खूनी टुकड़ी बैट
बैट अर्थात बॉर्डर एक्शन टीम कह लीजिए या फिर बॉर्डर रेडर्स। यह एलओसी पर छापामार युद्ध में माहिर है।
ये पाकिस्तान सेना की स्पेशल सर्विस ग्रुप के साथ काम करती है।
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई इसे सूचनाएं मुहैया करवाती है।
बैट एलओसी या सीमा पर एक से तीन किमी अंदर जाकर हमले करती है।
चार हफ्ते हवाई युद्ध के साथ ही इनकी कुल ट्रेनिंग करीब 8 महीनों की होती है।
इस टीम का मकसद सीमा पार जाकर छोटे छोटे हमलों को अंजाम देकर दहशत फैलाना है। हमलों के दौरान बैट इनाम के तौर पर दुश्मन के सिपाहियों का सिर काटकर अपने साथ ले जाती है।
भारतीय सीमा में पाकिस्तानी बैट की बर्बरता की जानकारी
एक मई 2017 को कृष्णा घाटी में भारतीय सेना की पेट्रोलिंग टीम पर हमला किया गया। दो जवान शहीद हुए। नायब सूबेदार परमजीत सिंह और हेड कांस्टेबल प्रेम सागर के शवों को क्षत-विक्षप्त किया गया।
22 नवंबर 2016 को मच्छेल सेक्टर में बैट के हमले में 3 भारतीय जवान शहीद हुए और एक जवान का सिर काट लिया गया और सिर को वह अपने साथ ले गई।
28 अक्तूबर 2016 को एलओसी पर बीएसएफ के सिपाही मनदीप के शव के साथ बर्बरता की गई और फिर वही घटनाक्रम दोहराया गया।
8 जनवरी 2013 को पुंछ में एलओसी के पास लांस नायक हेमराज सिंह तथा सुधाकर सिंह की हत्या की गई। बैट टीम हेमराज का सिर काटकर अपने साथ ले गई।
30 जुलाई 2011 को कुपवाड़ा की गुलदार चोटी पर बैट का हमला हुआ, 6 जवान शहीद हो गए। हमलावर बैट टीम हवलदार जयपाल सिंह तथा देवेंदर सिंह के सिर काटकर अपने साथ ले गई।
जून 2008 को 2/8 गोरखा राइफल के जवान को केल सेक्टर में पकड़ा गया और फिर उसका सिर काटकर अपने साथ ले गई।
मई व जून 1999 को करगिल में तैनात कैप्टन सौरभ कालिया और उनके 5 साथियों को बंदी बनाया गया था। करीब 22 दिनों तक जवानों को यातनाएं दी गई थीं और बाद में क्षत-विक्षप्त शवों को भारतीय इलाके में फैंक दिया गया था।