क्या होता है भूस्खलन और कैसे बचें इस विनाशकारी प्राकृतिक आपदा से?

यूं तो पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन (Landslide) की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन इस बार भूस्खलन की घटनाएं कुछ ज्यादा ही देखने में आई हैं। चाहे फिर वह हिमाचल प्रदेश का मामला हो या उत्तराखंड का या फिर जम्मू-कश्मीर का। इस तरह की घटनाओं को पीछे 2 कारण होते हैं, एक प्राकृतिक और दूसरा मानवीय। अखिर भूस्खलन की घटनाएं होती क्यों हैं और किस तरह इनसे बचा जा सकता है। यही बता रहे हैं डिजास्टर मैनेजमेंट विशेषज्ञ डॉ. अनिकेत साने।
 
‍‍फिजियोथैरेपिस्ट एवं आईआईएम इंदौर में फैकल्टी डॉ. अनिकेत साने वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि भूस्खलन का सबसे बड़ा कारण वनों की अंधाधुंध कटाई है। दरअसल, पेड़ों की जड़ें मिट्‍टी को बांधकर रखती हैं। न सिर्फ पेड़ की जड़ों को बल्कि पत्थरों को भी बांधकर कर रखती है।

पेड़ों के कटने से मिट्‍टी की पकड़ पत्थरों से भी कम हो जाती है। जब बारिश के साथ मिट्‍टी बहती है तो पहाड़ के बड़े-बड़े पत्थर भी नीचे आ जाते हैं। इससे जन और धन दोनों की हानि होती है। हाल ही में किन्नौर (हिमाचल प्रदेश) और पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) के मामले इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं।
 
बेतरतीब निर्माण घातक : इसी तरह पहाड़ी इलाकों में होने ‍वाले बेतरतीब निर्माण कार्य भी भूस्खलन की घटनाओं को जन्म देते हैं। चूंकि आजकल सड़क और टनल आदि बनाने के लिए भारी मशीनों के साथ ही ब्लास्ट आदि का भी प्रयोग किया जाता है। इससे पहाड़ी चट्‍टानों में क्रेक आ जाता है, कालांतर में यह स्थिति भूस्खलन का कारण बन जाती हैं। भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोट वाले क्षेत्रों में भी भूस्खलन की घटनाएं देखने में आती हैं। 
डॉ. साने कहते हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में आजकल सीढ़ीनुमा खेती की पद्धति में कमी आई। इस तरह की खेती से मिट्‍टी का जमाव बना रहता है, जो कि लैंडस्लाइड जैसी घटनाओं को रोकती है। इसके अलावा मिट्‍टी के अपक्षय और अपरदन से भी भूस्खलन की घटनाएं होती हैं। 
 
आखिर इस तरह की घटनाएं कैसे रुकें और कैसे इनसे होने वाली जन और धन की हानि रोकी जाए? इस पर डॉ. अनिकेत साने कहते हैं कि पहाड़ी इलाकों में वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए ही सीढ़ीनुमा खेती को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही बेतरतीब विकास पर भी रोक लगनी चाहिए। 
इस तरह बचें भूस्खलन की चपेट में आने से : डॉ. साने कहते हैं कि ऐसे इलाकों को चिह्नांकित करना चाहिए जो कि लैंडस्लाइड की दृष्टि से संवेदनशील हैं। इसके साथ ही पहाड़ी इलाकों में तटबंध (Embankment) बनाए जाने चाहिए ताकि भूस्खलन के बाद पत्थर सड़क या रेलवे ट्रेक तक नहीं पहुंचें और इससे कोई जनहानि भी न हो। इसके साथ ही ऐसे इलाकों में साइन बोर्ड लगाए  जाने चाहिए ताकि लोग सतर्क रहें। इसके साथ ही लोगों को भी चाहिए यदि मौसम खराब हो तो वे भूस्खलन वाले इलाकों में जाने से बचें। 
 
 
 

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