प्रयागराज महाकुंभ की अद्भुत और अलौकिक यात्रा, पांवों ने जवाब दे दिया पर उत्साह कम नहीं हुआ

प्रयागराज महाकुंभ में जाने की प्रबल इच्छा थी। मैं अपने प्रदेश राजस्थान से काफी दूर गंगटोक में सिक्किम प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में कुलसचिव के पद पर कार्यरत हूं। मैंने दो माह पूर्व 23 जनवरी 2025 का न्यू जल पाई गुडी से जयपुर तक आने का ट्रेन टिकट करवा लिया था। दो वेटिंग चल रही थी, लेकिन टिकट कनफर्म नहीं हो पाया। गंगटोक से 23 जनवरी को इस उम्मीद में मैं रवाना हो गया कि वेटिंग क्लीयर हो जाएगी, लेकिन टिकट कन्फर्म नहीं हुआ। चौमूं स्थित मेरे परिजनों को भी जब पता लगा तो वे भी निराश हुए। मगर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। 
 
ऐसे बना टिकट : मैंने ईश्वर से प्रार्थना की कि महाकुंभ में संगम स्नान की प्रबल इच्छा है। टिकट कैंसल हो गया है। अब आप ही कुछ कर सकते हैं। ईश्वर ने मार्गदर्शन किया। मैंने अपनी व्यथा कैलाश शर्मा एवं सुभाष शर्मा जो कि सीकर के रहने वाले है और गंगटोक में लंबे समय से व्यापार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चिंता मत करो गंगटोक से ट्रेन के लिए तत्काल टिकट बनती है। वहां चले जाओ। मैंने खुशी-खुशी गंगटोक में तत्काल की खिड़की पर फॉर्म भरकर एक घंटे पहले जमा करवा दिया। लेकिन, मेरी खुशी ज्यादा समय तक न रह सकी। तत्काल की खिड़की पर एक महिला अधिकारी ने कहा कि मेरा टिकट नहीं बना है। मैंने कोशिशें जारी रखीं। मैं रेलवे के एक उच्चाधिकारी के पास गया और उनसे निवेदन किया। उन्होंने कहा कि राजधानी एक्सप्रेस में सेकंड एसी में वीवीआईपी कोटा में टिकट हो सकता है। किराया दोगुना था, लेकिन मैंने दिल्ली तक की टिकट बनवा ली। 
 
इसी बीच, चौमूं से प्रयागराज कैसे पहुंचा जाए, इसके लिए मैंने भुवनेश तिवारी जो मदद के लिए कहा। उन्होंने मुझे बताया कि पंडित महेश शास्त्री चौमूं 11 बसें लेकर महाकुंभ जा रहे हैं। उनके साथ जा सकते हैं। शास्त्री से मेरा पुराना परिचय था। मैंने उनको फोन लगाकर सपरिवार प्रयागराज चलने का निवेदन किया, वे मान गए। हालांकि मैंने उनसे कहा कि न्यू जलपाई गुड़ी से ट्रेन में बैठने के बाद ही कुछ स्पष्ट बता पाऊंगा। 
मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही थीं : 25 जनवरी की मध्य रात्रि को करीब डेढ़ बजे मैं उठा और भोजन तैयार किया। फिर 5.30 बजे गंगटोक के बस स्टैंड पर पहुंच गया। मैं गंगटोक से सिलीगुड़ी की पहली टैक्सी में सवार हो गया। सात बज गए, चिंता बढ़ती जा रही थी कि सिलीगुड़ी पहुंचने में करीब 4 से 5 घंटे लगते हैं और ट्रैफिक जाम मिला तो वक्त और भी ज्यादा लग सकता है। कुल 10 सवारी होने पर ही टैक्सी चलनी थी। मेरे साथ एक सैनिक भी थे, जिनकी बागडोगरा से फ्लाइट थी। उन्हें भी फ्लाइट छूटने की चिंता थी। टैक्सी में कुछ और सवारियां आ गईं, लेकिन 2 अब भी कम थीं। सवारी पूरी किए बिना ड्राइवर आगे बढ़ने के लिए तैयार नहीं था। करीब 7.30 बज गए थे। इसके बाद हम 4 सवारियों ने मिलकर दो सवारियों का एक्स्ट्रा किराया देने का फैसला किया। 7:30 पर टैक्सी चल पड़ी। 11.30 बजे मैं सिलीगुड़ी और 12.40 बजे प्लेटफॉर्म पर पहुंच गया। फिर ट्रेन में बैठते ही शास्त्री जी को फोन कर महाकुंभ की टिकट कन्फर्म करवा दी। 
 
समस्या यहीं खत्म नहीं हुई। रास्ते में पता चला कि पत्नी क तेज बुखार है। अभी नहीं जा सकते। बड़े बेटे केदार की परीक्षा होने के बाद में जा नहीं सकते थे। मुझे भी वापस गंगटोक लौटना था। मैंने पत्नी सविता से कहा कि चिंता मत करो, दवा से सब ठीक हो जाएगा। इस बीच, 26 जनवरी की शाम 5 बजे मैं चौमूं पहुंच गया। फिर 27 जनवरी की शाम 5 बजे हम महाकुंभ के लिए रवाना हो गए। 
 
फिर प्रयागराज में शुरू हुई पैदल यात्रा : प्रयागराज पहुंचे तो पता लगा की मौनी अमावस्या के स्नान के लिए करीब 10 करोड़ लोग पहुंचने वाले हैं। करीब 20 किलोमीटर दूर बस खड़ी करके पैदल ही संगम के लिए रवाना हो गए। पत्नी से पूछा कि इतना पैदल चल पाओगी। पत्नी ने कहा जब प्रयागराज पहुंच गए हैं तो ईश्वर पैदल चलने की ताकत भी देगा। महेश शास्त्री एवं ओम बर्रा ने कहा कि स्नान के बाद सभी को बच्छेर पार्किंग में खम्बा नंबर 139 पर वापस लौटना है। 
बस से उतरते ही मन में अलग ही जुनून था। पार्किंग से खुले मैदान से होते हुए रोड एवं रेलवे ब्रिज को क्रॉस करते हुए नदी के करीब एक किलोमीटर लम्बे ब्रीज को क्रॉस करने की बारी आई! जीवन में पहली बार चलकर ब्रिज को पार करने का रोमांचक अनुभव था। भीड़ देखकर मुझे डर भी लग रहा था कि कहीं कुछ अनहोनी न हो जाए। रास्ते में दुकानों से कुछ सामान भी खरीदा। चलने की आदत नहीं होने के कारण 3-4 किलोमीटर चलने के बाद पांव दुखने लगे। मगर भजनों के बीच ईश्वर को याद करते हुए आगे बढ़ते रहे। इसी दौरान मोटरसाइकिल पर लोगों को लाते ले जाते देखा। हमारा भी मन हुआ कि मोटरसाइकिल से जल्दी पहुंच जाएं। उसने 600 रुपए लेने के बाद भी 4-5 किलोमीटर दूर उतारने की बात कही। हमने पैदल चलने का ही फैसला किया। 
 
महाकुंभ का अलौकिक नजारा : महाकुंभ का नजारा ही अलग था। चारों ओर जनसैलाब नजर आ रहा था। कहीं थककर लेटे हुए लोग दिखाई दे रहे थे तो कहीं साधु-संतों के दल नजर आ रहे थे। पैदल चलते-चलते पिंडलियों और घुटनों में दर्द होने लगा था। इस प्रकार करीब 9 बजे हम संगम घाट पर पहंचे। चारों ओर सफेद रोशनी से घाट जगमगाया हुआ था। घाट पर देखा कि हजारों भक्त पहले से ही सो रहे थे। ये सभी ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना चाहते थे। हमने रात को करीब साढ़े 9 बजे अमृत स्नान किया। संगम में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती पूजा की अपने पितरों को भी याद किया। कुंभ में बने विश्व हिन्दू परिषद के ‍शिविर में हमने रात्रि विश्राम किया। 
 
संगम घाट पर जाते समय घाट से करीब दो किलोमीटर पहले हमें प्रशासन ने रोक दिया। वहां से कुछ वाहन गुजर रहे थे। हम सबसे आगे थे। इस दौरान बड़ी संख्‍या में लोग इकट्‍ठे हो गए थे। भीड़ का दबाव बढ़ने लगा। सभी परिजन एक-दूसरे का हाथ थामे हुए थे। भीड़ का प्रेशर इतना था कि ऐसा लग रहा था कि कभी भी हाथ छूट सकता है। वाहनों के गुजरने के बाद प्रशासन ने रास्ता खोल दिया। भीड़ एकदम से हमारे ऊपर ही आ गई, लेकिन हम सभी एक तरफ हो गए थे। इसके बाद जान में जान आई। 
वापसी के समय भटके रास्ता : वापसी के समय हम रास्ता भटक गए। कुछ किलोमीटर चलने के बाद लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर मिला। वहां दर्शन कर आगे बढ़े। फिर हमने एक सज्जन को अपनी परेशानी बताई। उन्होंने मन्दिर के पास वाले रास्ते से जाने को कहा जो आगे जाने के बाद बंद हो गया था। हम बुरी तरह घबरा गए। हर हाल में हमें शाम 5 बजे तक पार्किंग स्थल पर पहुंचना था। फिर एक आर्मी ऑफिसर ने हमें रास्ता बताया। उनके बताए रास्ते पर हम एक पुल को क्रॉस कर करीब 5 किलोमीटर पैदल चलकर अपने पुराने वाले टाइल के रास्ते पर पहुंच गए। दोहपर की एक बज चुकी थी। एक कदम चलने की हिम्मत नहीं थी। किसी भी तरह करीब 15 किलोमीटर का सफर पैदल चलकर पार्किंग स्थल तक पहुंच ही गए। इस पूरी यात्रा में हमें करीब 10 घंटे का समय लगा। लम्बे जाम एवं घने कोहरे के पार्किंग में खड़ी बस में ही रात गुजरी। 30 जनवरी को बस से रवाना हो कर 31 जनवरी को चौमूं पहुंच गए। 
 
दुखद समाचार ने हिला दिया : जब हम सुबह सोकर उठे तो मोबाइल पर समाचार देखा कि संगम घाट पर मध्य रात्रि करीब दो बजे भीड़ के कारण भगदड़ मच गई, जिससे करीब 30 लोगों की मौत हो गई। इस समाचार ने हिला दिया। मैंने भगवान को धन्यवाद दिया कि हम स्नान के बाद सुरक्षित ‍शिविर में लौट आए। 
 
144 साल बाद प्रयागराज मै हो रहे महाकुंभ में अमृत स्नान के बाद मन को शांति मिली। नए उत्साह का संचार भी हुआ। इस यात्रा को कुछ शब्दों में बयां करना मुश्किल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उद्योगपति, पुलिस-प्रशासन, सेना एवं अन्य कर्मचारी जो कि प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रयागराज महाकुंभ में अपना सहयोग दे रहे हैं, उन्हें मन से प्रणाम करता हूं। ऐसी मान्यता है कि प्रयागराज महाकुंभ में 33 कोटि देवता विराजित हैं, पैदल यात्रा के दौरान हमें उनकी परिक्रमा का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। निश्चित ही महाकुंभ की यात्रा अद्भुत और अलौकिक रही। 
 

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