मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच टकराव कोई नया नहीं है। 2017 में जब भाजपा प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई थी तब संगठन की कमान केशव प्रसाद मौर्य के पास थी लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर योगी आदित्यनाथ ने अपना कब्जा जमा लिया था। इसको लेकर केशव प्रसाद मौर्य ने कई मौकों पर अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा किया। इतना ही नहीं सरकार में अपनी हनक बनाए रखने के लिए योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के बीच टकराव की खबरें दिल्ली तक पहुंची।
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लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद भले ही केशव प्रसाद मौर्य और उनके गुट के नेता 2027 के विधानसभा चुनाव को टारगेट कर रहे है लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव (2022) में केशव प्रसाद मौर्य जब अपनी ही सीट सिराथू हार गए तो उनके समर्थकों ने आरोप लगाया कि मौर्य को जानबूझकर हराया गया है। हलांकि विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी केशव प्रसाद मौर्य के राजनीतिक कद में कोई कमी नहीं आई और उन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया। दरअसल केशव प्रसाद मौर्य उत्तरप्रदेश में भाजपा के ओबीसी वर्ग का बड़ा चेहरा है और लोकसभा चुनाव में जिस तरह से ओबीसी वोटर भाजपा से छिटका है उसके बाद सूबे की सियासत में केशव प्रसाद मौर्य की भूमिका और बढ़ गई है।
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कौन पड़ेगा किस पर भारी?- उत्तर प्रदेश की सियासत में योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के बीच सीधे टकराव के बाद अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि सियासी दबदबे में कौन किस पर भारी पड़ेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भाजपा और संघ की हिंदुत्व की राजनीति के एक बड़े चेहरे के तौर पर जाने जाते है, वहीं 2017 के बाद जिस तरह से 2022 के विधानसभा चुनाव में योगी के चेहरे पर भाजपा ने जिस तरह से प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की उससे उनके सियासी कद में काफी इजाफा हो गया। पूरे देश में सरकार चलाने के योगी म़ॉडल की चर्चा होने लगी और भाजपा शासित कई राज्यों ने योगी मॉडल को अपने राज्यों मे लागू करने की कोशिश की। सरकार की बुलडोजर कार्रवाई के चलते योगी आदित्यनाथ बुलडोजर बाबा के नाम से जाने पहचाने जाने लगे।