सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि पीड़ित को बचाने के लिए प्रत्यक्षदर्शी (आई विटनेस) द्वारा हमलावरों को चुनौती देने का साहस जुटाना जरूरी नहीं है।
यदि किसी की निर्ममता से हत्या की जा रही हो तो यह जरूरी नहीं कि घटना के वक्त मौजूद उसका बेटा या कोई अन्य हमलावरों को चुनौती दे।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ऐसे हमलों के दौरान बेटे या किसी अन्य प्रत्यक्षदर्शी के प्रतिरोध की अनुपस्थिति में अभियोजन पक्ष का मामला किसी तरह झूठा नहीं हो जाता।
न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर और न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी ने कहा कि यह भविष्यवाणी करना या इस बारे में कोई मत बनाना अत्यधिक मुश्किल काम है कि ऐसी स्थिति में व्यक्ति का सामान्य या प्राकृतिक व्यवहार क्या होगा।