हमारे शरीर को निरोगी बनाए रखने में औषधीय पौधों का अत्यधिक महत्व होता है। यही वजह है कि भारतीय पुराणों, उपनिषदों, रामायण एवं महाभारत जैसे प्रमाणिक ग्रंथों में इसके उपयोग के अनेक साक्ष्य मिलते हैं। ब्रह्माजी द्वारा उपदेश में दुर्गाकवच कहा गया। इससे प्राप्त होने वाली जड़ी-बूटियों के माध्यम से हनुमानजी ने भगवान लक्ष्मण की जान बचाई बल्कि आज की तारीख में भी चिकित्सकों द्वारा मानव रोगोपचार हेतु अमल में लाया जाता है।
प्रसिद्ध विद्वान चरक ने तो हर एक प्रकार के औषधीय पौधों का विश्लेषण करके बीमारियों में उपचार हेतु कई अनमोल किताबों की रचना तक कर डाली है।
1. शैलपुत्री (हरड़)- हरड़ को आयुर्वेद में हरितकी नाम से जाना जाता है और इसे औषधियों का राजा कहा जाता है। कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है। यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है।
2. ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी)- ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है। इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है। इसे भारत वर्ष में विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे हिन्दी में सफेद चमनी, संस्कृत में सौम्यलता, मलयालम में वर्ण, नीरब्राम्ही, मराठी में घोल, गुजराती में जल ब्राह्मी, जल नेवरी आदि तथा इसका वैज्ञानिक नाम बाकोपा मोनिएरी है।
3. चंद्रघंटा (चंदुसूर)- यह एक ऎसा पौधा है जो धनिए के समान है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है इसलिए इसे चर्महंती भी कहते हैं। ये औषधि शक्ति बढ़ाने वाली और ह्रदय सम्बन्धी विकारों को दूर करने वाली होती है।
4. कूष्मांडा (कुम्हड़ा)- इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो रक्त विकार दूर कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रोगों में यह अमृत समान है। मां को कुम्हड़े की बलि सबसे ज्यादा प्रिय है। इसलिए इन्हें कूष्मांडा देवी कहा जाता है।
5.स्कंदमाता (अलसी)- देवी स्कंदमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है। अलसी को मंदगंधयुक्त, मधुर, बलकारक, किंचित कफवात-कारक, पित्तनाशक, स्निग्ध, पचने में भारी, गरम, पौष्टिक, कामोद्दीपक, पीठ के दर्द व सूजन को मिटानेवाली कहा गया है।
6.कात्यायनी (मोइया)- देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बिका, अम्बालिका। इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं। यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है।
7.कालरात्रि (नागदौन)- यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं। इसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली सर्वत्र विजय दिलाने वाली औषधि है।
8.महागौरी (तुलसी)- तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये रक्त को साफ कर हृदय रोगों का नाश करती है। तुलसी का वानस्पतिक नाम ऑसीमम सैक्टम है। तुलसी के पौधे का धार्मिक और औषधीय महत्व है। तुलसी के पत्तों का उपयोग सर्दी-जुकाम, खांसी, लीवर की बीमारी, मलेरिया, दंत रोग और श्वास सम्बंधी बीमारी की रोकथाम और इलाज के लिए किया जाता है। कई मामलों में तुलसी का उपयोग लीवर टॉनिक के रूप में भी किया जाता है। इसका वैज्ञानिक महत्व है। प्रत्येक दिन तुलसी की पत्तियां पूजा की प्रसाद के रूप में खाने के लिए ग्रहण करेंगे तो गंभीर बीमारी से दूर रहेंगे।
9.सिद्धिदात्री(शतावरी)- दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं। यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है। इसे शतमूली और सतमूली भी कहा जाता है। खासकर महिलाओं के लिए यह बहुत ही अच्छा होता है। शतावरी कई तरह के होते हैं, जिनमें हरी, सफ़ेद, बैगनी तीन रंगों की शतावरी बहुत ही लोकप्रिय है। इसकी लताएं और झाड़ियां होती हैं।
औषधि शब्द के अनेक अर्थ दिए गए हैं। सायण ने कहा है-
ओश: पाक: आसु धीयते इति ओशधय:
जिनके फल पकते हैं, उन्हें औषधि कहते हैं।
यास्क के अनुसार- औषधय: ओशद् धयन्तीति वा.
ओषत्येना धयन्तीति वा.
दोषं धयन्तीति वा.
...जो शरीर में शक्ति उत्पन्न कर उसे धारण करती है या जो दोषों को दूर करती है।
शतपथ ब्राह्मण ने भी औषधियों को दोषनाशक कहा है। औषधियों में त्रिदोषनाश की शक्ति है और ये वातावरण के प्रदूषण को नष्ट करती है। अत: मानव जीवन में और आयुर्वेद में इनका विशेष महत्व है।