Shardiya navratri 2025: क्या आप जानते हैं? नवरात्रि में दुर्गा प्रतिमा कैसे स्थापित करें? जानें 10 शुभ नियम

WD Feature Desk

शनिवार, 20 सितम्बर 2025 (12:49 IST)
Shardiya navratri 2025: सार्वजनिक पंडाल में प्रतिमा स्थापित करने के नियमों में और घर में स्थापित करने में थोड़ा बहुत अंतर है। यदि आप घर में शारदीय नवरात्रि के दौरान माता दुर्गा की प्रतिमा स्तापित करके उसका विसर्जन करते हैं तो यहां पर जानिए मूर्ति स्थापित करने के 10 आसान नियम। शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 22 सितंबर से हो रही है और इसका समापन 1 अक्टूबर 2025 को होगा। 2 अक्टूबर को दशहरा रहेगा।
 
1. सही स्थान का चुनाव: प्रतिमा को हमेशा घर के उत्तर-पूर्व (ईशान) कोण में स्थापित करें। यह दिशा पूजा-पाठ के लिए सबसे शुभ मानी जाती है। ध्यान रखें कि उस स्थान पर पर्याप्त रोशनी और हवा हो।
 
2. दिशा का ध्यान रखें: दुर्गा प्रतिमा का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इन दिशाओं में देवी का वास होता है और उनकी कृपा बनी रहती है।
 
3. सफाई और शुद्धिकरण: प्रतिमा स्थापित करने से पहले पूरे स्थान को अच्छी तरह से साफ करें। इसके बाद, गंगाजल या गौमूत्र छिड़ककर स्थान को पवित्र करें।
 
4. चौकी या आसन का प्रयोग: प्रतिमा को सीधे जमीन पर न रखें। इसके लिए लकड़ी का एक बड़ा पाट लें जिस पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर सातिया बनाएं और चावल की ढेरी रखकर उसके उपर प्रतिमा रखें।
 
5. कलश स्थापना: दुर्गा प्रतिमा स्थापना के पहले कलश स्थापना करते हैं। कलश को सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। कलश में जल भरकर उसमें कुछ सिक्के, सुपारी, अक्षत, और आम के पत्ते डालें और ऊपर नारियल रखें। सभी देवताओं का आह्वान करके उन्हें कलश में स्थापित किया जाता है।
6. घट स्थापना: कलश स्थापना के समय ही घट स्थापना भी करें। एक मिट्टी के पात्र में जौ बोए जाते हैं। घट में मिट्टी डालकर उसमें जौ उगाई जाती है। दें। इस पात्र को माता दुर्गा की प्रतिमा के समक्ष स्थापित करके इसका पूजन करें। 8 से 9 दिनों में यह जौ उग जाती है जिसे जवारे कहते हैं प्रतिमा विसर्जन के समय इन्हें भी विसर्जित कर दिया जाता है।
 
7. शुभ मुहूर्त का चयन: कोई भी धार्मिक कार्य शुभ समय पर करने से अधिक फलदायी होता है। इसलिए, प्रतिमा स्थापना के लिए पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त का चयन करें। घटस्थापना के दिन ही दुर्गा प्रतिमा स्थापित करना सबसे उत्तम माना जाता है।
 
8. मंगल प्रवेश और स्थापना: माता की मूर्ति का घर में मंगल प्रवेश कराया जाता है। जय कारे और मंत्रोच्चार के साथ माता को घर में लाया जाता है और फिर उन्हें उचित मुहूर्त में उचित स्थान पर पाट पर विराजमान किया जाता है। मूर्ति को इस तरह स्थापित करें कि वह आसानी से दिखाई दे और उसकी ऊंचाई न तो बहुत अधिक हो और न ही बहुत कम। प्रतिमा को अपनी आँखों के स्तर से थोड़ा नीचे रखें। मूर्ति की साइज भी इतनी होना चाहिए कि एक व्यक्ति आसानी से उसे उठा सके। सबसे महत्वपूर्ण नियम है कि प्रतिमा को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ स्थापित करें। मन में किसी भी तरह का संदेह या नकारात्मक विचार न रखें। माँ दुर्गा की पूजा सच्चे मन से करने पर ही उसका पूरा फल मिलता है।
 
9. पूजा पाठ का संकल्प: प्रतिमा स्थापना के बाद, हाथ में जल, जल में फूल और थोड़े चावल लेकर 9 दिनों तक पूजा का संकल्प कर उसे तरभाणे में छोड़ दें। इसमें आप अपना नाम, गोत्र, स्थान और पूजा का उद्देश्य बताते हैं।
 
10. पूजा और आरती: प्रतिमा स्थापित करने के बाद सभी आवश्यक पूजा सामग्री जैसे कि धूप, दीप, अगरबत्ती, फूल, प्रसाद, और नैवेद्य को तैयार रखें। पूजा के दौरान किसी भी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए। संकल्प के बाद विधि-विधान से पूजा करें, अंत में मंत्र जाप और आरती करें। यदि दुर्गा सप्तशती का पाठ का संकल्प लिया है तो पाठ करें। यदि आपके यहां पर अखंड ज्योत जलाने की परंपरा है तो उसका पालन करें। प्रतिमा के पास अखंड ज्योति (लगातार जलने वाला दीपक) जलाना शुभ होता है। माना जाता है कि यह ज्योति मां दुर्गा का साक्षात रूप होती है और नौ दिनों तक इसे बुझने नहीं देना चाहिए।

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