नवरात्रि पर माता दुर्गा की उपासना की जाती है। पुराणों में नवरात्रि की माता नौ दुर्गा के अलग अलग वाहनों का वर्णन मिलता है। जैसे शैलपुत्री माता वृषभ पर सवार है तो कालरात्रि माता गधे पर। इसी तरह प्रत्येक देवी का वाहन अलग अलग है, परंतु माता का मुख्य वाहन शेर और सिंह ही है। आओ जानते हैं इस संबंध में 2 खास बातें।
1. देवी दुर्गा सिंह पर सवार हैं तो माता पार्वती शेर (बाघ) पर। पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं उन्हें सिंह पर सवार दिखाया गया है। कात्यायनी देवी को भी सिंह पर सवार दिखाया गया है। देवी कुष्मांडा शेर (बाघ) पर सवार है। माता चंद्रघंटा भी शेर (बाघ) पर सवार है। जिनकी प्रतिपद और जिनकी अष्टमी को पूजा होती है वे शैलपुत्री और महागौरी वृषभ पर सवारी करती है। माता कालरात्रि की सवारी गधा है तो सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान है।
2. एक कथा अनुसार शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी पार्वती ने हजारों वर्ष तक तपस्या की। तपस्या से देवी सांवली हो गई। भगवान शिव से विवाह के बाद एक दिन जब शिव पार्वती साथ बैठे थे तब भगवान शिव ने पार्वती से मजाक करते हुए काली कह दिया। देवी पार्वती को शिव की यह बात चुभ गई और कैलाश छोड़कर वापस तपस्या करने में लीन हो गई। इस बीच एक भूखा शेर देवी को खाने की इच्छा से वहां पहुंचा। लेकिन तपस्या में लीन देवी को देखकर वह चुपचाप बैठ गया।
शेर सोचने लगा कि देवी कब तपस्या से उठे और वह उन्हें अपना आहार बना ले। इस बीच कई साल बीत गए लेकिन शेर अपनी जगह डटा रहा। इस बीच देवी पार्वती की तपस्या पूरी होने पर भगवान शिव प्रकट हुए और पार्वती गौरवर्ण यानी गोरी होने का वरदान दिया। इसके बाद देवी पार्वती ने गंगा स्नान किया और उनके शरीर से एक सांवली देवी प्रकट हुई जो कौशिकी कहलायी और गौरवर्ण हो जाने के कारण देवी पार्वती गौरी कहलाने लगी। देवी पार्वती ने उस शेर को अपना वाहन बना लिया जो उन्हें खाने के लिए बैठा था। इसका कारण यह था कि शेर ने देवी को खाने की प्रतिक्षा में उन पर नजर टिकाए रखकर वर्षो तक उनका ध्यान किया था। देवी ने इसे शेर की तपस्या मान लिया और अपनी सेवा में ले लिया। इसलिए देवी पार्वती के शेर (बाघ) और सिंह दोनों ही वाहन माने जाते हैं।