डांडिया रास के बहाने प्रेमरास

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नौ दिनों तक माँ की आराधना का पर्व 'नवरात्रि' एक उल्लास व मौज-मस्ती का त्योहार है। जो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक में एक नई ऊर्जा भर देता है। इन नौ दिनों में कुछ लोग माँ के भक्ति-भाव में डूबकर आध्यात्म के रंग में रंग जाते हैं तो वहीं कुछ लोग गरबे के माध्यम से माँ की आराधना करते हैं।

जिस तरह हर चीज का आकलन उसके गुण-दोषों से किया जाता है। उसी कसौटी पर यदि हम युवाओं की दृष्टि से इस त्योहार का आकलन करें तो निष्कर्ष के रूप में यही सामने आएगा कि अधिकतर युवाओं के लिए नवरात्रि 'प्रेम संबंधों' पर केंद्रित त्योहार है। जिसका प्रमुख मकसद इन दिनों त्योहारों पर हुई जान-पहचान का फायदा उठा उनसे प्रेम संबंध बनाना है।

गरबा है मेल-जोल का बहाना :
आजकल की व्यस्ततम दिनचर्या में जहाँ हमें अपने मित्रों व रिश्तेदारों से मिलने का समय ही नहीं मिलता, वहीं गरबों के माध्यम से हम अपने दोस्तों व परिचितों के साथ थोड़ा समय गुजाकर मौज-मस्ती कर सकते हैं। देखा जाए तो गरबा तनाव दूर करने का एक बहुत ही अच्छा उपाय है। गर्मी के उमस भरे दिनों के बाद रात की ठंडी हवा में माँ की आराधना करना एक ऐसा अनुभव है जिसके लिए सभी लोग साल भर इंतजार करते हैं।

गरबा केवल संगीत, नृत्य व ताल का समावेश नहीं बल्कि विविधताओं का समावेश है। जिसमें हम अपने-पराए व जात-पात का भेद-भाव भूलकर केवल डांडिया रास के रंग में खो जाते हैं और अपनी अगाध भक्ति व नृत्य कला से देवी माँ की आराधना करते हैं।

रंगीन रातों में छाई कालिमा :
नवरात्रि रंगीन रातों का त्योहार भी कहा जाता है। नौ दिनों तक गरबा पांडाल व सड़कें दुल्हन की तरह रंगबिरंगी सतरंगी रोशनी की चुनर ओढ़ इतराती है वहीं ये रंगीन राते आपसे कई ऐसे नए साथियों को भी मिला देती है, जो आपकी खुशहाल जिंदगी में अजनबी रिश्तों की काली करतूतों का ग्रहण लगा देते हैं।

नौ दिनों में नौ माहों के संबंधों को जन्म देने वाले ये मित्र कहीं ढूँढने नहीं पड़ते बल्कि ये तो डांडिया खेलते-खेलते, भीड़ में किसी को निहारते, सहजता से लिफ्ट देते तथा देर रात सड़कों पर आते-जाते हमारे साथी बन जाते हैं। बस इनकी ऊँगली पकड़ने मात्र की ही देर है कि ये आपके ‍हाथ पकड़कर गले पड़ जाते हैं।

गरबे के बहाने प्रेम की बाँसुरी बजाने वाले आधुनिक कन्हैया और उनके आसपास मंडराती गोपियाँ आपको हर गरबा पांडाल में देखने को मिल जाएँगे। जो इन पांडालों में गरबों के बहाने प्रेम का प्रस्ताव रखने आते हैं। ये लोग नौ दिनों तक सभी के आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं तथा इन्हीं के बूते प्रेम-प्रसंगों की अफवाहों का बाजार भी गर्म करता है।

प्रेम गीत पर थिरकते आज के कान्हा :
गरबा पांडाल और प्रेम प्रसंग, आखिरकार ऐसा हो भी क्यों न, इन नौ दिनों के सुहाने समाँ और प्रेम गीतों पर पैरों की थिरकन में प्रेम के भाव पैदा नहीं होंगे तो क्या आध्यात्म के भाव पैदा होंगे? जैसा माहौल इन युवाओं को दिया जा रहा है वो वैसे ही माहौल में ढलते जा रहे हैं। बाकी की रही सही कसर गरबा पांडालों में कपल इंट्री सिस्टम पूरी कर रहा है। जिसमें जोडि़यों को ही गरबा खेलने हेतु प्रवेश दिया जाता है।

गरबों के बहाने इन नौ दिनों में कई नए रिश्ते बनते व पुराने रिश्ते बिगड़ते हैं। इन नौ दिनों में अनैतिक संबंध बनाकर बलात्कार व छेड़छाड़ जैसे ऐसे कृत्यों को अंजाम देने वाले कोई और नहीं बल्कि रईसजादे मनचले युवक-युवतियाँ होते हैं,जो स्वच्छंदता की आड़ में समाज में एक नई सोच को विकसित कर रहे हैं।

यह जागरूकता नहीं स्वच्छंदता है :
नवरात्रि के दौरान प्रतिवर्ष युवाओं पर किए गए अलग-अलग सर्वे में हर बार चौका देने वाले तथ्य सामने आते है। यदि हम गुजरात जैसे विकसित राज्य की ही बात करें तो वहाँ नवरात्रि के बाद गर्भपात कराने वाली युवतियों की संख्या अचानक बढ़ जाती है। इस दौरान कंडोम व गर्भनिरोधक गोलियों की खपत का अचानक 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ जाना एक ओर जहाँ युवाओं की सेक्स संबंधों के प्रति जागरूकता का परिचायक है, वहीं दूसरी ओर यह स्वच्छंदता की आड़ में रिश्तों को मौज-मस्ती का माध्यम बनाने का भी परिचायक है।

ऐसे में जब इन संबंधों पर युवाओं की 'रजामंदी' की मुहर लग जाती है तब समाज, परिवार और शासन सभी इस ओर से अपना ध्यान हटा लेते हैं। आखिर किसे पड़ी है किसी के व्यक्तिगत मामले में टाँग अड़ाने की। अकेला गुजरात ही युवाओं के ऐसे अवैध संबंधों की काली छाया की गिरफ्त में नहीं है बल्कि अब तो मुंबई, दिल्ली व मध्यप्रदेश जैसे कई राज्यों के युवा भी इसी कल्चर का अनुसरण कर रहे हैं।

नवरात्रि है आराधना का त्योहार :
माँ की आराधना का पर्व नवरात्रि उन्मुक्तता का त्योहार न होकर भक्ति का त्योहार है। इस त्योहार पर गरबा खेलने में कोई बुराई नहीं है। परंतु गरबा खेलते समय रिश्तों की गरिमा को बरकरार रखना जरूर आवश्यक है। यदि आप माँ की आराधना के इस पर्व में रिश्तों को कलंकित होने से बचाएँगे तभी आप माँ की सच्ची भक्ति के हकदार हो पाएँगे।

याद रखें आप जैसा माहौल बनाते हैं उसका अनुसरण आपकी आने वाली पीढि़याँ करती है इसलिए आने वाली पीढि़यों को संस्कार व परंपरा विरासत में दें न कि उन्हें अवैध संबंधों का अभिशाप दें। एक स्वस्थ सोच ही स्वस्थ समाज की बुनियाद है अत: समाज को ऐसी सोच दे जिससे कि रिश्तों का खुलापन उजागर हो न कि रिश्तों में बँधने की कसमसाहट।

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