इसलिए अमेरिका, भारत को उन सभी मामलों में साझेदार समझ सकता है जोकि वैश्विक शांति से जुड़े हों, परमाणु अप्रसार से जुड़े हों, बाल्टिक क्षेत्र से जुड़े हों या फिर दक्षिण चीन महासागर की समस्या से जुडे हों। लेकिन इस बात के साथ ही भारत की आवाज का सम्मान भी करना होगा। हालांकि आर्थिक वैश्वीकरण और अंतरराष्ट्रीय राज्य व्यवस्था से भारत-अमेरिकी संबंधों को कोई चुनौती नहीं है, लेकिन यह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर कोई समझौता नहीं कर सकती है। मोदी की सरकार पिछली यूपीए सरकार की भांति महत्व के मुद्दों को सॉफ्ट पेडल नहीं कर सकती है। साथ ही जिन मुद्दों पर दोनों देशों के बीच स्पष्ट मतभेद हैं, उन पर स्पष्ट जवाब भी मांग सकती है।