ये बिंदु बनाते हैं मोदी सरकार को कमजोर

शुक्रवार, 22 मई 2015 (12:05 IST)
प्रधानमंत्री मोदी में अगर बहुत सारी खूबियां हैं तो उनमें कई खामियां भी हैं जिन्हें लेकर उनकी आलोचना की जाती है। इन खामियों की बानगी नीचे विस्तार से दी जा रही है। 
1.  वन मैन शो में विश्वास  :  चुनाव के बाद अपने मंत्रिमंडल का चयन अकेले प्रधानमंत्री ने ही किया है। पार्टी के वरिष्ठ मंत्रियों को भी पता नहीं था कि उन्हें मंत्रिमंडल में लिया जाएगा या नहीं। उन्होंने ऐसा मंत्रिमंडल चुना जिसके सभी सदस्य उनके समर्थक हैं। उन्होंने अरुण जेटली को चुनाव जीतने के बाद मंत्री बनाया और स्मृति ईरानी को पहली बार सांसद बनने पर ही केंद्रीय मंत्री बना दिया। इसी तरह अपने विश्वस्त सलाहकार अमित शाह को वे पार्टी प्रमुख बनवाने में सफल रहे। मंत्रियों का चयन करते समय उन्हें वरिष्ठता या अनुभव को महत्व नहीं दिया वरन उसे अपनी निष्ठा की कसौटी पर परखा। 
 
2. 'नमामि गंगे' योजना की विफलता : गंगा नदी को सम्मान देने के लिए मोदी ने गंगा नदी को साफ-सुथरा बनाने के लिए एक विभाग बना डाला, लेकिन उनकी इस योजना को लेकर जल संसाधन मंत्रालय में कोई स्पष्ट रोडमैप नहीं बनाया जा सका है। यह भी कमेटियों, अधिकारियों और सचिवों की खींचतान का विषय बना हुआ है। विदित हो कि फिलहाल गंगा की सफाई से जुड़े सभी विभाग पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत हैं, इसलिए न तो पर्यावरण मंत्रालय और न ही जल संसाधन मंत्रालय कुछ करने में सफल हुआ है। गंगा की सफाई के नाम पर अरबों रुपए व्यय कर दिए गए हैं, लेकिन नदी की हालत बद से बदतर होती जा रही है। 
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3. चुनावी वायदों को भुलाया : अपने चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने विदेशों से कालेधन को देश में लाने और देश में जमा काले धन का पता लगाने का वायदा किया था, लेकिन एक साल होने को है और सरकार इस दिशा में कोई ठोस उपलब्धि हासिल नहीं कर सकी है। बहुत सारा काला धन नेताओं और अधिकारियों के कब्जे में सुरक्षित है लेकिन इसे बाहर निकालने के गंभीर उपाय नहीं किए गए। महंगाई कम करने को लेकर लगभग ऐसी ही बात कही जा सकती है। अर्थव्यवस्था की स्थिरता और महंगाई कम करने को लेकर उन्होंने यूपीए सरकार की खिल्ली उड़ाई थी लेकिन इन दोनों मुद्दों पर सरकार जो भी कदम उठा रही है, उनसे आम आदमी की ही मुश्किलें बढ़ रही हैं और जिनके पास काला धन वह और अमीर होता जा रहा है। 
4. मोदी एक पोलराइजिंग फिगर  : यह देखा गया है कि मोदी का व्यक्तित्व कुछ ऐसा है कि लोग या तो उनका पूरे दिल से समर्थन करते हैं या फिर उन्हें पूरी तरह से खारिज कर देते हैं। भारत जैसे लोकतंत्र में ध्रुवीकरण पैदा करने वाला व्यक्तित्व राष्ट्रीय एकता के लिए उचित नहीं है क्योंकि भारत में बहुत सारे धर्म हैं जो कि सदियों से एक साथ रह रहे हैं। पूरे देश में बीस हजार से ज्यादा बोलियां बोली जाती हैं। गोधरा दंगों का दाग उनपर से पूरी तरह से छूटा नहीं है। साथ ही, उन पर आरोप लगते रहते हैं कि उनकी सोच संघ परिवार से प्रभावित है। 
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5. स्वभाव से तानाशाह :  मोदी पर तानाशाही के आरोप तब से लगते आए हैं जबकि वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे।  उन्होंने जितने वर्षों तक गुजरात पर शासन किया, सारे महत्वपूर्ण विभाग और मंत्रालय उन्होंने अपने पास या अपने विश्वस्तों के पास रखे। जो भी निर्णय करना होता था वह अकेले ही करते थे। पार्टी के भीतर भी जिन लोगों ने उनका विरोध किया, मोदी ने उन्हें पार्टी में इतना अलग- थलग कर दिया कि उन्हें खुद ही पार्टी छोडकर जाना पड़ा और कुछ ने अपने क्षेत्रीय दल भी बना लिए। 
 
6. सर्वसम्मति बनाने की योग्यता का अभाव : भारत जैसे एक बड़े देश में जहां बड़े कानूनों को पास कराने के लिए सभी दलों में आम सहमति होना वांछित होता है, वहीं मोदी में इस बात का अभाव है। पहले वे गुजरात पर शासन करते थे जहां पर भाजपा का निर्णायक बहुमत होता था।
 
 इसलिए उन्हें अपने राजनीतिक विरोधियों से किसी प्रकार की सर्वसम्मति बनाने की जरूरत नहीं पड़ती थी लेकिन उन्हें इसा अनुभव भी नहीं है। यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है कि क्या वे सभी राजनीतिक दलों को अपने विश्वास में लिए बिना शासन चला सकते हैं? गुजरात का मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उन्हें एक गठबंधन सरकार चलाने का भी अनुभव नहीं है।   
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7. सकारात्मक आलोचना को लेकर खुलापन नहीं :  मोदी के चरित्र का एक नकारात्मक पहलू यह भी है कि उन्हें अपनी सकारात्मक आलोचना भी पसंद नहीं आती है। गुजरात में शासन करते समय उन्होंने कई बार आलोचना को लेकर बिना सोचे समझे प्रतिक्रिया जाहिर की थी। कभी कभी तो उन्होंने विरोधी दलों के दावों को किसी तरह का स्पष्टीकरण दिए बिना ही खारिज कर दिया था। उनके बारे में कहा जाता है कि कभी-कभी वे इतने लम्बे चौड़े दावे कर जाते हैं जिनका व्यवहारिक रूप से क्रियान्वयन होना संभव ही नहीं होता है।  
8. धर्मनिरपेक्षता को लेकर भय : मोदी को लेकर उनके आलोचकों में भय है कि उनके शासन काल में देश की धर्मनिरपेक्षता का ढांचा छिन्न भिन्न हो सकता है। वर्ष 2002 के भयानक गोधरा दंगों में उनकी कथित संलिप्तता को लेकर भी अल्पसंख्यक भयभीत रहते हैं, लेकिन जहां तक भारत की बात है तो इस देश में ऐसा कुछ नहीं हो सकता है जिससे देश की एकता का आधारभूत स्तम्भ ही गिर जाए।  
 
9. ड्रेस सेंस की आलोचना : नरेन्द्र मोदी को हमेशा ही अच्छी ड्रेस में दिखना पसंद है। उनके बहुत कम ही ऐसे फोटोग्राफ होंगे जिनमें वे पूरी तरह से तैयार नहीं दिख रहे हों। उनके आलोचकों का कहना है कि उनकी सेंस ऑफ स्टाइल और कैमरा के सामने पोज भी यह संदेश देते हैं कि उन्हें किसी महान हस्ती के तौर पर पहचाना जाए। कहा जाता है कि उनकी यह भावना बहुत शुरुआत से रही है। 
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10. मसीहा की छवि का निर्माण :  उनके आलोचकों का कहना है कि इससे पहले कि दूसरे उन्हें किसी मसीहा की छवि में देखें। उन्हें खुद को ऐसे रूप में देखना शुरू कर दिया था। उन्होंने बहुत पहले ही अपने जीवन का उद्देश्य तय कर लिया था और यह देश की सेवा करना था। कहा जाता है कि इस मामले में वे दूसरे नरेन्द्र (दत्त, स्वामी विवेकानंद) से बहुत प्रभावित रहे हैं।

वे भारत को एक हिन्दू राष्ट्र के तौर पर देखने, समझने लगे और उनमें यह धारणा घर कर गई कि वे भी स्वामी विवेकानंद की तरह से हिन्दू धर्म को सुधार कर नया भारत बना सकते हैं। वे सफल नहीं हो सके लेकिन नरेन्द्र मोदी सोचते हैं कि वे देश की राजनीति को सुधार कर देश में बदलाव करने में सफल होंगे। वे कहां तक सफल हो सकेंगे, यह तो भविष्य ही बताएगा? 
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11. घर छोड़ने का त्याग : लगता है कि गौतम बुद्ध और अन्य भारतीय संतों की तरह से सिद्धियां पाने के लिए घर से चले गए। यह एक पुरानी  भारतीय कहावत होकर घर छोड़कर भागने वाले ही महानता हासिल कर पाते हैं। सो मोदीजी भी एक भटकने वाले साधु बन गए। उन्होंने देश के कई हिस्सों की यात्रा की और इसे खराब हालत में पाया। संभवत: उन्होंने सोचा कि उनका उद्देश्य इतना बड़ा है कि यह सामान्य जीवन जीने और किसी महिला के साथ जीवन गुजारने से ज्यादा महत्वपूर्ण है, इसलिए वे विवाहित होने के बाद भी परिवार से दूर रहे।
 
12. महिला विरोधी मानसिकता : कहा जाता है कि नरेन्द्र दत्त (स्वामी विवेकानंद) भी आजीवन ब्रह्मचारी रहे लेकिन क्यों इसका कोई जवाब नहीं मिलता है। इसी तरह नरेन्द्र मोदी ने भी महिलाओं से दूरी बनाए रखने के उपाय किए लेकिन फिर भी वे कुछेक महिलाओं पर क्यों कृपालु रहे? स्वामीजी भी देश को जगत गुरु बनाना चाहते थे लेकिन वे अपने इस काम में कहां तक सफल रहे, इसका सही-सही आकलन बाकी है। नरेन्द्र मोदी कहां तक इस देश की राजनीति को सुधारेंगे और कैसे इसे एक विकसित देश बनाएंगे, यह भी भविष्य के गर्भ में है।   

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