सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के जबरदस्त अभियान को मजबूत समर्थन देते हुए वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने रक्षा बजट में दस प्रतिशत वृद्धि की घोषणा कर उसके खाते को आजाद भारत के इतिहास में पहली बार एक लाख करोड़ रुपए के जादुई आँकड़े के पार पहुँचा दिया।
वित्तमंत्री ने कहा कि 2008-09 के रक्षा बजट के लिए वह 105600 करोड़ रुपए का प्रावधान कर रहे हैं, जो पिछले साल 96 हजार करोड़ रुपए था। पिछले बजट की बिना खर्च हुई राशि को देखा जाए तो सही मायनों में यह वृद्धि करीब साढ़े 10 प्रतिशत ही बैठती है।
रक्षा बजट ऐसे समय एक लाख करोड़ रुपए के पार गया है जबकि सेना, नौसेना और वायुसेना के पास सैन्य साजोसामान की खरीदारी की लम्बी फेहरिस्त है1 सेना को 8000 करोड़ रुपए की लागत से टैंक 12000 करोड़ रुपए की लागत से तोपें और करीब एक अरब डॉलर की लागत से हेलिकॉप्टर खरीदने हैं।
रक्षा बजट में पिछले पाँच वर्षों से आठ से दस हजार करोड़ रुपए की सालाना वृद्धि की जाती रही है। इस बार यह वृद्धि नौ हजार छह सौ करोड़ रुपए है। इससे पहले वर्ष यानी 2006-07 का रक्षा बजट 89 हजार करोड़ रुपए था, जिसमें से तीन हजार करोड़ रुपए की राशि रक्षा मंत्रालय खर्च नहीं कर पाया था।
कभी 2001-02 के रक्षा बजट में 65 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान था इस तरह उसमें अब तक चालीस हजार करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हो चुकी है।
पिछले साल के बजट पूँजीगत खर्चों यानी नए सैन्य साजोसामान की खरीदारी के लिए 49 हजार करोड़ रुपए रखे गए थे, जिसमें से रक्षा मंत्रालय करीब 70 प्रतिशत राशि नवम्बर 2007 तक खर्च नहीं कर सका था। इसके बाद मंत्रालय ने एक के बाद एक ताबड़तोड़ बड़े रक्षा सौदों को अंतिम रूप दिया।
आने वाले पाँच वर्षों में भारत 30 अरब डॉलर यानी एक लाख बीस हजार करोड़ रुपए अधिक के सैन्य उपकरणों की खरीदारी करने जा रहा है और 300 सौ करोड़ रुपए से अधिक के किसी भी सौदे में कुल रकम का तीस प्रतिशत निवेश भारतीय रक्षा कम्पनियों में करने की शर्त जोड़ी जा चुकी है। इस तरह आने वाले आधे दशक में भारतीय कम्पनियों को करीब चालीस हजार करोड़ रुपए का विदेशी निवेश मिलेगा।
रक्षा बजट के एक लाख करोड़ रुपए से ऊपर जाने के बावजूद भारत अपने पड़ोसी देशों के मुकाबले रक्षा क्षेत्र काफी कम खर्च कर रहा है। पड़ोसी पाकिस्तान और चीन अपने सकल घरेलू उत्पाद का करीब पाँच प्रतिशत रक्षा क्षेत्र पर लगा रहे हैं, जबकि भारत का रक्षा बजट सकल घरेलू उत्पाद का ढाई प्रतिशत से कम ही रहा है। अंतरराष्ट्रीय जगत में यह भी सर्वविदित है कि चीन और पाकिस्तान घोषित बजट से कहीं अधिक खर्च सैन्य क्षेत्र पर करते हैं।
वित्तमंत्री ने सैनिक स्कूलों की दशा पर भी ध्यान दिया है, जो सैन्य बलों के लिए अधिकारियों की नर्सरी के तौर पर जाने जाते हैं। देश के 22 सैन्य स्कूलों की दशा सुधारने और उनकी ढाँचागत सुविधाओं में सुधार के लिए दो-दो करोड़ रुपए की राशि तय की गई है। इस तरह सैनिक स्कूलों के सुधार पर 44 करोड़ रुपए खर्च किए जाएँगे।