कहते हैं कि पूत के पैर पालने में ही दिख जाते हैं। ऐसा ही हुआ था जाँबाज देशभक्त शहीद-ए-आजम भगतसिंह के साथ, जिनके बारे में एक ज्योतिषी ने उनके बचपन में ही भविष्यवाणी कर दी थी कि सरदार किशनसिंह का बेटा या तो फाँसी के फंदे पर चढ़ेगा या फिर वह अपने गले में नौलाख हार पहनेगा।
दादा के गले में तिल जैसा एक विशेष निशान था। इसके आधार पर एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि यह लड़का या तो फाँसी के फंदे पर चढ़ेगा या फिर इतने उच्च पद पर पहुँचेगा कि इसके गले में नौलखा हार होगा
भगतसिंह के पौत्र यादविंदरसिंह संधु ने अपने परिवार के बड़े सदस्यों से सुनी बातों को याद करते हुए एक विशेष साक्षात्कार में बताया कि उनके दादा के गले में तिल जैसा एक विशेष निशान था। इसके आधार पर एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि यह लड़का या तो फाँसी के फंदे पर चढ़ेगा या फिर इतने उच्च पद पर पहुँचेगा कि इसके गले में नौलखा हार होगा।
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इस भविष्वाणी की व्याख्या करते हुए यादविंदर ने कहा कि उस ज्योतिषी की सभी बातें सच साबित हुईं। उन्होंने कहा कि उनके दादा देश की आजादी के लिए फाँसी के फंदे पर भी चढ़े और इतने उच्च पद पर भी पहुँचे कि आज वह हर देशवासी के दिल पर राज कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि नौलखा हार को पहले प्रतिष्ठित अमीर व्यक्ति के रूप में देखा जाता था और उनके दादा भगतसिंह सचमुच ही लोगों के दिलों पर राज करने वाले तथा क्रांति नायक और महान देशभक्त के रूप में 'प्रतिष्ठित अमीर' साबित हुए।
यादविंदर ने बताया कि उनका परिवार आर्य समाजी रहा है। जब भगतसिंह के नामकरण संस्कार के समय घर में यज्ञ हो रहा था तो उसी समय शहीद-ए-आजम के दादा अर्जुनसिंह ने कह दिया था कि वे अपने इस पोते को देश के लिए समर्पित कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि भगतसिंह ने आगे चलकर अपने दादा द्वारा यज्ञ में लिए गए संकल्प को पूरा किया और भारत माँ की गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए हँसते-हँसते अपना जीवन बलिदान कर दिया।
1930 में लाहौर सेंट्रल जेल में भगतसिंह और उनके साथियों ने इतिहास की सबसे लंबी भूख हड़ताल रखकर ब्रिटिश हुकूमत को झुका दिया और वह भारतीय कैदियों को जेल में अच्छा खाना तथा अन्य सुविधाएँ देने पर सहमत हो गई
यादविंदर ने बताया कि 1930 में लाहौर सेंट्रल जेल में भगतसिंह और उनके साथियों ने इतिहास की सबसे लंबी भूख हड़ताल रखकर ब्रिटिश हुकूमत को झुका दिया और वह भारतीय कैदियों को जेल में अच्छा खाना तथा अन्य सुविधाएँ देने पर सहमत हो गई। इस भूख हड़ताल में उनके साथी जतिनदास की मौत हो गई, लेकिन वे फिर भी नहीं झुके और आखिरकार गोरी सरकार को झुकना ही पड़ा।
शहीद-ए-आजम के पौत्र ने बताया कि भगतसिंह के जेल जाने के बाद नौजवान भारत सभा की जिम्मेदारी उनके छोटे भाई कुलबीरसिंह पर आ गई। बड़े भाई की अनुपस्थिति में कुलबीर ने सभा की जिम्मेदारी बखूबी निभाई। अंग्रेज सरकार ने कुलबीरसिंह को लगभग 10 साल तक जेल में रखा।
उन्होंने बताया कि 1935 में लायलपुर (वर्तमान में पाकिस्तान का फैसलाबाद शहर) में किंग जार्ज के नाम से सिल्वर जुबली मनाई जा रही थी। अंग्रेजों ने समारोह को रोशनी से जगमग करने के लिए पूरे शहर की बिजली काट दी, जिससे कुलबीरसिंह गुस्से से तिलमिला उठे।
अपने बड़े भाई भगतसिंह के पदचिह्नों पर चलते हुए कुलबीरसिंह ने भी अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया। उन्होंने किंग जॉर्ज के समारोह का रंग फीका करने के लिए अपने साथी शेरगुल खाँ के साथ बिजली की सप्लाई लाइन को काट दिया।
इस कारण किंग जॉर्ज के सम्मान में आयोजित समारोह का स्थल कई घंटे तक अंधेरे में डूबा रहा और यह निर्धारित समय से काफी देर बाद शुरू हुआ।
वर्ष 1907 में 27-28 सितंबर की रात शहीद-ए-आजम भगतसिंह का जन्म लायलपुर जिले के बांगा गांव में हुआ था, इसलिए 27 और 28 सितंबर को दोनों ही दिन उनका जन्म दिवस मनाया जाता है।
यादविंदर ने बताया कि भगतसिंह जब छोटे थे, तभी से लोग अनुमान लगाने लगे थे कि बड़ा होकर यह लड़का जरूर कुछ न कुछ महत्वपूर्ण काम करेगा। उन्होंने बताया कि पाँच साल की उम्र में एक बार भगतसिंह अपनी माँ विद्यावती के साथ खेतों पर गए।
माँ ने उन्हें बताया कि किस तरह गन्ने का एक टुकड़ा खेत में रोपने से कई गन्ने पैदा हो जाते हैं। भगत पर इस बात का इतना प्रभाव हुआ कि दूसरे ही दिन वे यह सोचकर खिलौना बंदूक लेकर खेत पर पहुँच गए कि इसे रोपने से कई बंदूकें पैदा हो जाएँगी।