'हिन्दी को भारतीयों ने ज्यादा हानि पहुँचाई'

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2008 (10:09 IST)
कालजयी रचनाओं 'आधा गाँव' और 'राग दरबारी' का हिन्दी से अँग्रेजी में अनुवाद करने वाली एक ब्रिटिश अनुवादक मानती हैं कि देश-विदेश में अँग्रेजी में तालीम हासिल करके भारतीयों ने हिन्दी को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है।

राजधानी में छठे अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव में 'अक्षरम अनुवाद सम्मान' से सम्मानित ब्रिटेन की जिलियन राइट ने बताया अँग्रेजी में तालीम हासिल करके भारतीयों ने हिन्दी को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है। इसके साथ ही हिन्दीभाषी लोगों में साक्षरता की कमी है, जिस कारण हिन्दी को पिछड़ों की भाषा समझा जाता है। यह बात मराठी और बंगलाभाषी लोगों के बारे में नहीं कही जाती।

उन्होंने कहा कि साहित्य को पाठकों की तादाद से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। सर्वकालिक रचनाकार डॉ. राही मासूम रजा, श्रीलाल शुक्ल और भीष्म साहनी के अनुवाद का असर तो होगा ही। दो भाषाओं के साहित्य की कभी भी तुलना नहीं करना चाहिए।

अनुवाद को जनांदोलन बताते हुए उन्होंने कहा हिन्दी से अनुवाद की यह शुरुआत है और वर्तमान में प्रकाशक भी अनुवाद कराने में उत्साह दिखा रहे हैं। यह आम चुनाव की तरह है, जिसमें जोश और लगन रहे तो विजय अवश्य मिलेगी।

पिछले 25 वर्ष से हिन्दी के लिए काम कर रहीं राइट ने कहा कि सईद मिर्जा ने हिन्दी, उर्दू पर दु:ख जाहिर करते हुए कहा था कि मैं अपनी जबान खो बैठा। प्रवासी भारतीयों की नई पीढ़ी को इससे सबक लेना चाहिए। हालाँकि प्रवासियों में अभी भी मादरे वतन के लिए अगाध प्रेम है तभी तो 'नमस्ते लंदन' जैसी फिल्में बनती हैं।

लंदन विश्वविद्यालय से साउथ एशियन स्टडीज में स्नातक राइट ने बताया कि अँग्रेज किसी जबान को सीखने के मामले में कमजोर होते हैं क्योंकि वे जबान सीख तो लेते हैं, लेकिन इस्तेमाल कम करते हैं।

छठे अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव में 'अक्षरम प्रवासी' सम्मान से सम्मानित अमेरिकी टेक्सास विवि में हिन्दी-उर्दू के विभागाध्यक्ष प्रो. हरमन वान आलफन ने बताया कि पिछले एक दशक में हिन्दी को लेकर जो उत्साह देखा गया वैसा पहले कभी नहीं रहा है।

अमेरिका में हिन्दी पढ़ने वाले प्रवासी भारतीय बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ी है। अमेरिका में चीनी, अरबी और जापानी भाषा का जोर है, लेकिन हिन्दी का नहीं। जिस कारण अमेरिका में देवनागरी के अक्षर कम देखने को मिलते हैं।

45 वर्षों से हिन्दी-उर्दू शिक्षण से जुड़े आलफन ने बताया कि पहले अमेरिका में टेक्सास एकमात्र वह जगह थी, जहाँ हाईस्कूल स्तर पर हिन्दी शिक्षण होता था। अब ह्यूस्टन और न्यूजर्सी में हिन्दी के कोर्स शुरू होंगे।

हिन्दी शैक्षिक व्याकरण पर तीन खंड की किताब लिख चुके आलफन ने बताया दस साल पहले विदेशों के केवल 25 विश्वविद्यालयों में हिन्दी शिक्षण होता था। अब इनकी संख्या 100 से अधिक हो चुकी है।

दोनों ही हिन्दीप्रेमियों ने हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा में शामिल किए जाने के बारे में कहा कि जब चीनी भाषा संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा है तो विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा हिन्दी को इसमें अवश्य शामिल किया जाना चाहिए।

वेबदुनिया पर पढ़ें