सरकार को चुनौती देते नक्सली

-वेबदुनिया डेस्क

आज हुए नक्सली हमले से ऑपरेशन ग्रीन हंट को भारी धक्का लगा है। नक्सलियों के खिलाफ अभियान शुरू होने के बाद अब तक के सबसे बड़े हमले में 73 से अधिक सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए हैं। कई लापता बताए जा रहे हैं।

हमला नक्सलवादियों के गढ़ माने जाने वाले दंडकारण्य के जंगलों में चिंतलनार और टारमेटला के बीच हुआ। टारमेटला सुकमा हाई-वे के पास घने जंगलों स्थित है। हमला तब हुआ, जब सीआरपीएफ, जिला पुलिस और स्पेशल टास्क फोर्स के 120 से ज्यादा जवान सुबह सीआरपीएफ कैंपों में राशन पहुँचाने के लिए जा रहे थे।

नक्सल प्रभावित राज्य छत्तीसगढ़ में बस्तर जिले से लगे दंतेवाड़ा इलाके की भौगोलिक सीमा कुछ इस प्रकार है कि यह तीन राज्यों महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और उड़ीसा तीनों को छूती है। नक्सली इस क्षेत्र में अक्सर वारदात कर दूसरे राज्यों में भाग जाते हैं और घने जंगल होने की वजह से इतनी चौकसी भी मुमकिन नहीं है।

गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों में नक्सलियों द्वारा हमले की यह तीसरी घटना है, क्योंकि रविवार को उड़ीसा के कोरापुट जिले में बैपारीगुडा में भी माओवादियों ने विस्फोट कर 11 लोगों की जान ली थी। इसी तरह लालगढ़ में भी माओवादियों ने विस्फोट किया था। इसी बीच ऑपरेशन ग्रीन हंट के अगले चरण के अंतर्गत सोमवार को करीब छह हजार जवान झारखंड के सारंडा इलाके में घुसे थे, ताकि वहाँ बने नक्सलियों के ट्रैनिंग कैंम्पों को नष्ट किया जा सके।

इससे पहले उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को नक्सली धमकी भरा कथित ई-मेल भेज चुके हैं। ई-मेल में उनसे ऑपरेशन ग्रीन हंट बंद करने को कहा गया है, अन्यथा ऐसे ही हमलों की चेतावनी दी गई थी।

इसी तरह माओवादियों के प्रमुख नेता किशनजी ने मार्च में केंद्र सरकार को धमकी दी थी कि वह अपना 'ऑपरेशन ग्रीन हंट' तुरंत बंद कर दे, अन्‍यथा गुरिल्‍ला हमले का रास्‍ता अपनाएँगे।

नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में लैंड माइंस के बढ़ते हमलों के मद्देनजर सुरक्षा बलों को सरकार ने माइंस प्रोटेक्टिव व्हीकल (एमपीवी) प्रदान किया था। इस वाहन को जबलपुर तथा आंध्रप्रदेश के मेडक स्थित व्हीकल फैक्ट्री में बनाया जाता है। यह भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले भारी वाहन स्टेलियन एमके-3 का उन्नत वाहन है। इसे खासतौर पर बारूदी सुरंगों तथा आईईडी विस्फोटकों से होने वाले धमाकों को झेलने के लिए बनाया गया है।

भारी बख्तर और बुलेटप्रुफ शीशों से सुसज्जित इस वाहन में एक बार में 12 लोग तक बैठ सकते हैं। इसे छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ को नक्सली हिंसा से निपटने के लिए दिया गया है।

हाल की रिपोर्टों के मुताबिक इस वाहन पर ही पहला हमला किया गया और इसे क्षतिग्रस्त कर दिया गया है। अगर यह बात सही है तो सबसे बड़ी चिंता अब नक्सली और माओवादियों के पास मौजूद फायर पॉवर की है। ऐसे मजबूत वाहन को क्षतिग्रस्त करने के लिए साधारण बारूदी सुरंग का उपयोग ज्यादा असरदार नहीं है। इसे रोकने के लिए एंटी टैंक माइन इस्तेमाल की जाती है, जो मिलिट्री ग्रेड की होती है और सिर्फ कुछ की आतंकी संगठनों द्वारा इस्तेमाल में लाई जाती है।

अपने ही घर में लड़ रहे नक्सलियों के पास इतने हाई कैलिबर के हथियार होना इस मामले में बाहरी तत्वों के शामिल होने की और इशारा करता है।

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