जैसे ही आप अमेरिका की धरती पर कदम रखते हैं, यहां की शुद्ध हवा, साफ-सुथरी सड़कें, व्यवस्थित ट्रैफिक व मन को प्रफुल्लित कर देने वाला वातावरण आपको स्वत: प्रभावित करता है। मानव संसाधन के प्रबंधन की कला, पर्यावरण के प्रति अनुरूपता व अपने निवासियों के प्रति उचित गरिमा का भाव यहां सहजता से अनुभव होता है। वहीं आप दिल्ली, मुंबई या यहां तक कि तहसील स्तर के किसी भी भारतीय नगर को देखिए, यहां का अंधाधुंध व अनियोजित शहरीकरण, संकरी व खस्ताहाल सड़कें, चारों तरफ लगे कूड़े-करकट व गंदगी के ढेर न केवल पर्यावरण के प्रति बल्कि यहां के नागरिकों के प्रति भी शासन के ढुलमुल रवैये का संकेत देते हैं।
पिछले एक दशक में भारत में वाहनों की संख्या में जितनी वृद्धि हुई है, उस अनुपात में सड़कों की लंबाई नही बढ़ी है। यह सब भारतमाता की एक सुबकती हुई तस्वीर पेश कर रहा है। भारत में अच्छी व सुदृढ़ सड़कें, जिन पर आप आरामदायक यात्रा कर सकें, क्या यह स्वप्न हकीकत में बदल सकता है?
हमारे कस्बों व शहरों में कचरे के निस्तारण की उपयुक्त व्यवस्था, जिससे यहां चारों ओर कचरे का ढेर न दिखे, क्या यह स्वप्न हकीकत में बदल सकता है? क्यों नहीं! सड़क निर्माण व कचरा निस्तारण की तकनीकें सदियों पुरानी हैं, यह कोई नया आविष्कार नहीं हैं, न ही कोई जटिल विज्ञान!
किसी भी शहर के लिए सड़कें उतनी ही महत्वपूर्ण होती हैं, जितना कि मानव शरीर को जीवन प्रदान करने के लिए रक्त परिसंचरण तंत्र। इसी प्रकार शहर के जल व कूड़ा निकासी तंत्र की तुलना हम मानव शरीर के लसिका तंत्र से कर सकते है, जो शरीर से सभी विषों व हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने के लिए उतरदायी है।
पर्यावरणीय नियमों का ध्यान रखते हुए, वैज्ञानिक तरीकों से बनी मजबूत सड़कें किसी भी शहर की प्रतिष्ठा व खूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं। अच्छी सड़कें एक तरह से सुशासन का प्रतीक भी हैं, क्योंकि इनके लिए नागरिकों को पूरी तरह से सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है। हम भली-भांति जानते हैं कि अच्छे आधारभूत ढांचे का निर्माण नाना प्रकार से शहर के विकास में योगदान करता है, इससे आवागमन (ट्रांसपोर्टेशन) आसान हो जाता है व व्यापार में वृद्धि होती है।
अमेरिका ने इस आधारभूत नियम को 6 दशक पहले ही आत्मसात कर लिया था। अगर वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में बने रहना है, तो उसके पास सुदृढ़ सड़कों का एक विशाल व मजबूत जाल होना चाहिए। 1953 से 1961 तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे ड्वाइट डी आइजनहोवर ने इस दिशा में सराहनीय प्रयास किए थे।
इन्होंने 29 जून 1956 को 'फेडरल एड हाईवे एक्ट' नामक कानून पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद अगले 35 वर्षों तक अमेरिका ने पीछे मुड़कर नहीं देखा व राजमार्गों की संख्या में आशातीत वृद्धि की, जो कि आज भी जारी है।
पूर्व में अटलांटिक महासागर से सटे लॉन्ग आईलैंड (न्यूयॉर्क में स्थित) से लेकर पश्चिमी तट पर प्रशांत महासागर तक (जहां कैलिफोर्निया स्थित है), उत्तर में मैन नामक राज्य से लेकर फ्लोरिडा के सुदूर दक्षिण इलाकों तक अमेरिका में अंतरराज्यीय फ्रीवे (राजमार्गों) का जाल बिछा हुआ है। ये सड़कें सिर्फ कांक्रीट से बनीं सीधी सपाट निर्जीव संरचना नहीं हैं, ये अमेरिका की जीवनरेखा हैं।
अमेरिका के राजमार्गों पर गाड़ी चलाना अपने आप में किसी आनंदमय अनुभव से कम नहीं होता है। मीलों दूर तक बिना किसी रुकावट के सरपट गाड़ी दौड़ाते जाइए। बलखाती इन सड़कों के आसपास दिखने वाले मनमोहक दृश्य, खेत, खलिहान, पर्वत व झीलें मन को छू भर जाती हैं। इन सड़कों पर गति सीमा सामान्यतः 55 से 65 मील प्रति घंटा होती है, हालांकि व्योमिंग राज्य की कुछ सड़कों पर 80 मील प्रति घंटा की गति से भी वाहन चलाने की अनुमति है। इन राजमार्गों पर हर दिशा में कम से कम 2 लेन अवश्य पाई जाती हैं।
स्मरण रहे कि अमेरिका में अंतरराज्यीय राजमार्गों (हाईवे) को फ्रीवे के नाम से भी जाना जाता है। जो पाठक आंकड़ों में रुचि रखते हैं, उनकी जानकारी के लिए बता दूं कि 2012 तक अमेरिका ने अपने राजमार्गों का विस्तार 46,000 मील (लगभग 77,000 किमी) तक कर लिया था।
आई-90 के नाम से जाने जाने वाला इंटरस्टेट-90 हाईवे पूर्व में मैसाच्युसेट्स राज्य में स्थित बोस्टन से लेकर पश्चिमी में वॉशिंगटन राज्य के सीएटल शहर तक जाता है। 3,000 मील या 48,000 किमी लंबा यह राजमार्ग अमेरिका का सबसे लंबा राजमार्ग है।
अमेरिका के राजमार्गों से संबंधित कुछ अन्य रोचक पहलू भी हैं। उदाहरण के लिए कुछ मार्गों पर एक लेन हमेशा उच्च रिहाइश वाले वाहनों (हाई ऑक्यूपेंसी व्हीकल्स) के लिए आरक्षित होती है। यानी की पीक आवर्स में ड्राइवर के अलावा एक से अधिक सवारीयुक्त वाहन ऐसी लेन का उपयोग कर सकते हैं।
भारत में ‘रिंग रोड’ की संकल्पना का भरपूर लाभ आज तक नहीं उठाया गया है। अमेरिका में इस प्रकार की मुद्रिका मार्गों का घना जाल फैला हुआ है। हालांकि यहां इन्हें ‘रिंग रोड’ के नाम से नहीं जाना जाता है। सामान्यतः इन्हें यहां लूप, बेल्ट्वे या बाईपास कहा जाता है। मान लीजिए आपको एक शहर ‘ए’ से ‘डी’ में जाना है, तो इन बाईपास की बदौलत आपको शहर 'बी’ व ‘सी’ से होकर गुजरने की आवश्यकता नहीं है।
यहां का हर शहर दूसरे शहर से इन बाहरी मार्गों से जुड़ा हुआ है। इसी कारण अमेरिका में भारी मालवाहक वाहन अपने गंतव्य शहरों के अलावा बीच में आने वाले शहरों में प्रवेश नहीं करते हैं। भारत में स्थिति इसके विपरीत है, जहां भारी वाहन शहरों के भीतर प्रवेश कर स्थानीय सड़कों को क्षतिग्रस्त करते रहते हैं। सड़कों को नुकसान पहुंचाने के अलावा ये वाहन स्थानीय यातायात में भी बाधा उत्पन्न करते हैं।
बात सिर्फ सड़कों की लंबाई की नहीं है, बल्कि योजनाबद्ध तरीके से किया गया निर्माण व सख्त कानून भी अमेरिकी सड़क परिवहन तंत्र को भारत से बेहतर बनाते हैं। अमेरिका के पास दुनिया का सबसे बेहतर व कुशल आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र (इमरजेंसी रेस्पोंस सिस्टम) है। आप कहीं भी हो, किसी भी समस्या में फंस गए हो, बस 911 पर फोन कर लीजिए, आपको तुरंत पुलिस या एम्बुलेंस की सहायता मिल जाएगी। अमेरिका के दूरदराज के हिस्सों में आपातकाल में ‘एयर एम्बुलेंस’ की सुविधा भी आम हो गई है।
राष्ट्रीय राजमार्गों के अलावा अमेरिका में राज्यस्तरीय राजमार्गों व अन्य स्थानीय सड़कों का गहन जाल फैला हुआ है। इन सब सड़कों की गुणवत्ता उच्च स्तर की है। यहां पर ऊबड़-खाबड़ सड़कें व सड़कों पर गड्ढे दिखना लगभग असंभव है।
भारत में जहां अच्छी सड़कें देखने के लिए हमारी आंखें तरस जाती हैं, वहीं अमेरिका दशकों से अपने नागरिकों को मजबूत व अच्छी गुणवत्ता वाली सड़कें उपलब्ध करा रहा है।
अब हम भारत पर आते हैं! प्राचीन भारत की सिंधु घाटी सभ्यता अपनी भवन व सड़क निर्माण कला के कारण जानी जाती थी। बांग्लादेश से पाकिस्तान तक 2,500 किलोमीटर की दूरी में फैली हुई ग्रांट ट्रंक रोड का निर्माण 4 शताब्दियों पहले हुआ था व यह आज भी अपने मूल रूप में विद्यमान है। रूडयार्ड किपलिंग ने एक बार ग्रांट ट्रंक रोड के लिए कहा था कि ‘ऐसी जीवनधारा दुनिया में कहीं भी नहीं पाई जाती है।'
तो आखिर आधुनिक भारत कहां पिछड़ गया?
आइए, एक नजर आंकड़ों पर डाल लें। भारत के सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार यहां कुल 92,581 किमी क्षेत्र में राजमार्गों का जाल फैला हुआ है, जो कि अमेरिका के 77,000 किमी की तुलना में कहीं ज्यादा है।
यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि भारत क्षेत्रफल में अमेरिका का एक-तिहाई है, वहीं जनसंख्या के मामले में यह अमेरिका से लगभग 3 गुना है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के दावों के अनुसार भारत में सभी प्रकार की सड़कों (ग्रामीण सड़कों सहित) का कुल नेटवर्क लगभग 33 लाख किलोमीटर में फैला हुआ है। इसके अनुसार इसमें 79,000 किमी लंबाई राष्ट्रीय राजमार्गों की है।
अगर हम विश्व बैंक के आंकड़ों को देखें तो उनके अनुसार भारत में सड़कों की कुल लंबाई 46 लाख किलोमीटर है, वहीं अमेरिका में यह 65 लाख किलोमीटर है। अगर हम सड़कों के घनत्व (प्रति 100 किलोमीटर के क्षेत्र में रोड की लंबाई, किलोमीटर में) की बात करें तो अमेरिका के 67 की अपेक्षा भारत में यह 143 है।
पाठकों को इस आंकड़े पर आश्चर्य हो रहा होगा, परंतु अमेरिका में बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं, जहां आबादी का घनत्व बहुत ही कम है (उदाहरण के लिए पश्चिमी क्षेत्र)। राष्ट्रीय राजमार्गों के घनत्व के मामले में भारत बहुत पीछे है। यहां प्रति 1 लाख जनसंख्या के लिए 7.7 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग है, वहीं अमेरिका में यह आंकड़ा 25 किमी है।
इन आंकड़ों को देखते हुए स्थिति काफी संतोषजनक प्रतीत होती है, परंतु बड़े नगर को तो छोड़िए, किसी छोटे शहर (टीयर टू सिटी) में मोटर बाइक लेकर निकलिए, गड्ढों से भरी ऊबड़-खाबड़ सड़कें आपको वास्तविकता का एहसास करा देंगी।
सड़क मार्गों की खराब हालत के अलावा योजनाबद्ध तरीके से काम न होने के कारण भी हम अपने विशाल सड़क मार्गों का पूरा फायदा नहीं उठा पाए हैं।
प्रधानमंत्री वाजपेयी के समय लाई गई स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना (4 महानगरों- दिल्ली, मुंबई, कोलकाता व चेन्नई को आपस में सड़कों द्वारा जोड़ने हेतु) व ऐसी ही कुछ अन्य परियोजनाएं इस दिशा में एक सार्थक प्रयास थीं, परंतु इनमें से अधिकतर अभी भी बीच में अटकी हुई हैं।
प्रधानमंत्री मोदी व भारतीय जनता पार्टी ने इस बार का लोकसभा चुनाव ‘विकास’ के मुद्दे पर लड़ा व जीता था अतः सड़कों की स्थिति में सुधार व इनका आधुनिकीकरण सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।
हाल ही में प्रधानमंत्री ने 100 नए आधुनिक शहर (स्मार्ट सिटी) बसाने की घोषणा की है, परंतु अच्छी व मजबूत सड़कों के बिना इस स्वप्न को हकीकत में बदल पाना असंभव है।
तकनीकी सघनता से बनी सड़कों का पूरे देश में जाल फैलाने के अलावा जब तक 4 से 8 लेन हाईवे की लंबाई में आवश्यक बढ़ोतरी नहीं कर लेते (वर्तमान 23 प्रतिशत की तुलना में), तब तक हम भारत को विकसित राष्ट्र के रूप में देखने की कल्पना नहीं कर सकते।
लेखक शिकागो (अमेरिका) में नवजात शिशुरोग विशेषज्ञ तथा सामाजिक-राजनीतिक टिप्पणीकार हैं।