जब हम कार में बैठे थे तब हमारे बीच भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति को लेकर चर्चा होने लगी। पाकिस्तान में उस समय इमरान खान व उनके सहयोगियों द्वारा प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खिलाफ़ राष्ट्रव्यापी धरने प्रदर्शनों का दौर चल रहा था। हुसैन (ड्राइवर) इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इन्साफ़ (पीटीआई) का समर्थक था। जब मैंने उसे बताया कि भारत में भी 'आम आदमी पार्टी' नामक इसी प्रकार की एक पार्टी राजनीति की गन्दगी को समाप्त करने के लिए संघर्षरत है, तो उसने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा कि हां इस पार्टी ने एक सूबे में चुनावों में शानदार प्रदर्शन भी किया है। हुसैन दिल्ली की बात कर रहा था, जहां दिसम्बर 2013 में हुए चुनावों में पार्टी ने एतिहासिक प्रदर्शन करते हुए विधानसभा की 70 सीटों मे से 28 जीत ली थी, पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री बने।
उसने बताया कि शुरू-शुरू में वह इमरान खान की राजनीति से बहुत अधिक प्रभावित नहीं था, पर बाद में उसके एक भारतीय मित्र ने समझाया कि किस प्रकार इमरान खान एक अनोखी लड़ाई लड़ रहे हैं, और उसने फिर इमरान खान के राजनैतिक उद्देश्यों का समर्थन करना प्रारंभ किया। उसने दुखी मन से बताया कि किस प्रकार पकिस्तान की राजनीति में भ्रष्ट और बेइमान नेता आ गए हैं जो इमरान खान जैसे क्रान्तिकारियों की राह में बाधक बन रहे हैं। उसके इस दुख मे शरीक होते हुए मैंने कहा कि भारत की राजनीति भी लगभग इसी प्रकार की अवस्था से गुजर रही है, और यही कारण है कि आज लोग आप और पीटीआई द्वारा दी जा रही वैकल्पिक राजनीति की जरूरत शिद्धत से महसूस कर रहे हैं। जब हुसैन ने कहा कि इमरान खान नेताओं की भीड़ में भले ही अकेला हो सकता है, परन्तु जनता उसके साथ है, तो उसने मुझे अरविन्द केजरीवाल का स्मरण करा दिया।