भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों ऑस्ट्रेलिया व फिजी की आधिकारिक यात्रा पर हैं। सिडनी में मोदी के लिए एक भव्य स्वागत समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय मूल के लगभग 20000 लोगों ने शिरकत की। उधर विक्टोरिया प्रांत के सांस्कृतिक विविधता मंत्री मैथ्यू गे ने मोदी के नाम पर चली एक विशेष ट्रेन ‘मोदी एक्सप्रेस’ को हरी झंडी दिखाई। इस ट्रेन के द्वारा 220 लोग इस जनसभा में भाग लेने मेलबोर्न से सिडनी पहुंचे।
आपको याद होगा कि इस साल सितंबर में जब मोदी अमेरिका आए थे, तो न्यूयार्क के मैडिसन स्क्वॉयर चौक में उनके लिए इसी प्रकार का एक भव्य स्वागत समारोह रखा गया था। इस समारोह में भी भारतीय मूल के 20000 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया था। हाल ही के दोनों महा-समारोह व अन्य मिलन समारोह कुछ-कुछ राजनैतिक रैलियों जैसे रहे हैं। मोदी ने इन जनसभाओं का उपयोग विदेश की धरती पर राजनैतिक अंदाज में किया है। दोनों ही मामलों में संबोधन पूर्णतः राजनैतिक होते हैं व इनमें योजना व नीतियों से जुड़े मुद्दों की कोई चर्चा नहीं होती।
दुनियाभर में फैली भारतीय समुदाय की विशाल जनसंख्या ने इस प्रकार की रैलियों के सफल आयोजन को संभव बनाया है। आज पूरे विश्व में लगभग 2.5 करोड़ प्रवासी भारतीय बसे हुए हैं। किंतु वह कौन-सी बात है, जो प्रवासी भारतीयों को भारतीय राजनीति में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करती है?
दुनिया भर में फैले भारतीय समुदाय में से कुछ लोग पूरी तरह विदेशी नागरिकता ले चुके हैं, जबकि कुछ अभी भी भारतीय नागरिक (अप्रवासी भारतीय) हैं। इसी प्रकार उनके भारत में प्रवास की अवधि भी भिन्न-भिन्न है। इनमें से कुछ लोग पीढ़ियों से विदेश में रह रहें हैं व भारत से उनका कोई सक्रिय नाता नहीं है, जबकि बहुत से अप्रवासियों की जड़ें अभी भी भारत में हैं व उनका भारत आना-जाना लगा रहता है।
अप्रवासी भारतीय विदेशों में रहते हैं, वहीं काम करते हैं, टैक्स भरते हैं, उनके बच्चें वहीं पढ़ते-लिखते व बड़े होते हैं, परन्तु फिर भी इन लोगों के दिलों में भारत की स्मृतियां बनी रहती हैं। सात समुद्र पार रहकर भी इनका दिल भारत में ही रहता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इनके दिलों से भारत की यादें मिटाना लगभग नामुमकिन है। दूर रहकर भी इनके मन में मातृभूमि की सेवा की इच्छा रहती है एवं राजनीति में भाग लेकर यह लोग इसी इच्छा की पूर्ति करने का प्रयास करते हैं।
पिछले कुछ वर्षों से भारतीय राजनैतिक दलों ने भी प्रवासी भारतीयों तक अपनी पहुंच बनानी प्रारंभ कर दी है। इस हेतु विभिन्न दलों ने अपनी-अपनी विदेश शाखा (ओवरसीज चेप्टर) की स्थापना की है। ओवरसीज फ्रेंड ऑफ बीजेपी (ओफबीजेपी) इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण नाम है। बीजेपी की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी विदेशों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। हिन्दू स्वयंसेवक संघ (एचएसएस) के नाम से संचालित यह संस्था कई देशों में मौजूद है। इस साल अमेरिका में एचएसएस अपने 25 साल पूरे करेगी। इसी प्रकार ओफबीजेपी की 15 देशों में शाखाएं हैं, जिनमें से अमेरिका, कनाडा व इंग्लैंड की शाखा काफी सक्रिय हैं।
अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया में नरेंद्र मोदी की रैलियों को सफल बनाने में इन्ही दो संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ओवरसीज शाखाओं के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीजेपी नें भारत में एक पूर्णकालिक वैश्विक विभाग बनाया हुआ है। इसके संयोजक इन ओवरसीज शाखाओं के सक्रिय संचालन के लिए जिम्मेदार हैं। इन शाखाओं के अधिकारी भारत में स्थित अपने मूल संगठन से संपर्क बनाए रखते हैं। यह लोग पार्टी के बड़े नेताओं के दौरों को सफल बनाने के अलावा पार्टी के लिए धन जुटाने (फंडरेजिंग) का काम भी करते हैं।
इसी प्रकार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी विदेशों में अपने पांव पसारना शुरू कर दिया है। इंडियन नेशनल ओवरसीज कांग्रेस की स्थापना इस दिशा में पहला कदम है। 1998 में कांग्रेस पार्टी ने अमरीका में 'इंडियन नेशनल कांग्रेस के मित्र' के रूप में अपनी विदेशी ईकाई की स्थापना की थी। 2001 में इसका नाम बदल कर इंडियन नेशनल ओवरसीज कांग्रेस रख दिया गया था। परंतु दुनिया भर के प्रवासी भारतीयों को राजनीति की ओर मोड़ने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान नवोदित राजनैतिक दल ‘आम आदमी पार्टी’ का रहा है।
अन्ना हजारे व अरविन्द केजरीवाल द्वारा शुरू किया गया इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आइएसी) विदेशों में रह रहे भारतीयों के समर्थन से ही अपने चरम पर पहुंचा था। दुनियाभर में रह रहे भारतीयों की भारत को भ्रष्टाचार मुक्त कराने की प्रबल इच्छा ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ के माध्यम से खूब देखने को मिली।
यदि आप लोगों ने भारत के गली-कूचे में अन्ना के समर्थन में जुलूस निकाले तो, विदेशों में रह रहे भारतीयों ने भी अपने-अपने देशों में इस अभियान के परचम को लहराया। दुर्भाग्य से भ्रष्टाचार भारत की रग-रग में फैला हुआ है। जब आइएसी का आंदोलन कमजोर पड़ने लगा व केजरीवाल ने नए राजनैतिक दल की घोषणा की, तब भी प्रवासी भारतीय ही सबसे पहले उनके साथ आ खड़े हुए। बिना किसी विदेशी शाखा की स्थापना के ही आम आदमी पार्टी को प्रवासी भारतीयों द्वारा मिले प्रबल व त्वरित समर्थन का लेखक स्वयं प्रत्यक्ष साक्षी रहा है।
2013 में ‘आप’ ने दिल्ली की तत्कालीन कांग्रेस सरकार व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को अपदस्थ करने के लिए 10 महिनों का व्यापक प्रचार अभियान चलाया। पूरे अभियान में ‘आप’ को प्रवासी भारतीयों का सक्रिय सहयोग मिला। किसी चुनाव अभियान को प्रवासी भारतीयों का ऐसा व्यापक प्रतिसाद मिलना अविश्वसनीय था। आम आदमी पार्टी की जनता के पैसों से चुनाव लड़ने की घोषणा ने विदेश में रह रहे भारतीयों के दिलों को छू लिया। पूरी पारदर्शिता के साथ लिए जा रहे ऑनलाइन चंदे ने भी प्रवासी स्वयंसेवकों (वॉलंटियर्स) को बहुत प्रभावित किया। यही कारण था कि प्रवासी भारतीय आम आदमी पार्टी को लगातार समर्थन व आर्थिक सहयोग देते रहे। पार्टी को मिलने वाले कुल चंदे का 25% भाग प्रवासी भारतीयों द्वारा दिया जाता रहा है।
इसके अलावा 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान बहुत से प्रवासियों ने दिल्ली आकर पार्टी का प्रचार भी किया। कुछ अन्य प्रवासी भारतीयों ने तकनीकि सहयोग उपलब्ध कराया। फोन कॉल के द्वारा प्रचार ने भी पार्टी को बहुत लाभ पहुंचाया। विदेश में रह रहा एक भारतीय दिल्ली के वोटर को फोन करता है व आम आदमी पार्टी के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को समर्थन देने की गुजारिश करता है। जरा सोचिए, इसका कितना व्यापक व गहरा प्रभाव हुआ होगा। इन सब चीजों ने पूरे प्रचार अभियान को एक ‘ग्लैमरस’ आयाम दे दिया था।
जैसे-जैसे प्रवासी भारतीयों की राजनीति में हिस्सेदारी बढ़ रही है, वैसे-वैसे दोहरी नागरिकता की उनकी पुरानी मांग और अधिक मुखर होती जा रही है। भारत का संविधान दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता है अर्थात् अगर किसी भारतीय ने किसी दूसरे देश की नागरिकता ले ली है तो उसे भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ेगी। वैसे, दुनिया के लगभग 40 देश दोहरी नागरिकता की अनुमति देते हैं। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा व ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देश भी शामिल हैं।
विदेशों में रह रहे भारतीय, भारत से अपने भावनात्मक व आर्थिक जुड़ाव के चलते, लंबे समय से दोहरी नागरिकता की मांग उठा रहे है। इससे इन्हें भारत में राजनैतिक अधिकार प्राप्त हो सकेंगे। यह एक जायज मांग है और मेरे विचार में भारत सरकार इस मांग को अवश्य पूरा करें। एक प्रसिद्ध संगीतकार पेबल कास्लो ने कहा था ‘राष्ट्र के लिए प्रेम एक बहुत ही शानदार चीज है, पर यह प्रेम सीमाओं पर आकर भला रुके क्यों!’ अब समय आ गया है कि भारत सरकार दोहरी नागरिकता के मुद्दे पर गंभीरता से विचार करें। भारत माता के लिए उनके सभी बच्चे एक समान हैं, चाहें वो दुनिया के किसी भी भाग में रह रहे हो।
लेखक शिकागो, अमेरिका में नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ, तथा सामाजिक- राजनैतिक टिप्पणीकार हैं।