कुछ लोग जीवन बिताते हैं, कुछ जीवन जीते हैं, कुछ उसका उपयोग करते हैं और कुछ जीवन सार्थक करते हैं। 'पीस पिलग्रिस हर लाइफ एंड वर्क इन हर ओन वर्ड्स' एक ऐसी ही महिला की जीवन सार्थक करने की कहानी है, जिसने मानवता की शांति के लिए 25,000 मील पैदल यात्रा की। इस महिला का उद्देश्य उस पर इतना हावी था कि वह अपना नाम भी भूल गई। याद रहा तो केवल अपना 'मिशन'। पूरी पुस्तक में उसे 'पीस' नाम से ही संबोधित किया गया है। 'फर्स्ट परसन' में लिखी गई इस किताब की 'नरेटर' भी पीस हैं। किताब उनके मित्रों ने संकलित और प्रकाशित की है। किताब के मुख्य और पिछले पृष्ठों पर नीली ड्रेस (शांति का रंग) में पीस की तस्वीरें हैं। पहले फोटो में शर्ट पर आगे 'पीस पिलग्रिस' और दूसरे की पीठ पर 'शांति के लिए 25,000 मील पैदल यात्रा' लिखा है। कृति के अंदर वाले फोटो के नीचे लिखा है, 'मैं एक तीर्थयात्री हूँ। एक भटकने वाली। मैं तब तक भटकती रहूँगी, जब तक मानवता शांति का पाठ नहीं सीख लेगी। मैं तब तक चलती रहूँगी, जब तक कोई आश्रय नहीं देगा और तब तक भूखी रहूँगी, जब तक कोई खाना नहीं देगा।' बिना किसी बैनर तीन दशकों तक अमेरिका की जमीन नापने वाली इस 'शांति दूत' का संदेश था, 'शांति का रास्ता है- बुराई को अच्छाई से, झूठ को सत्य से और घृणा को प्रेम से जीतना।' पीस के प्रसन्नाचित चेहरे और अर्थवान जीवनशैली ने अमेरिका और अन्य देशों के हजारों लोगों को प्रभावित किया। परिशिष्ट में पीस के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का विवरण, उनका आध्यात्मिक विकास, प्रश्न-उत्तर, यात्रा के दौरान लिखी गई कविताएँ और प्रार्थनाएँ, अखबारों की सचित्र रिपोर्टिंग, इंटरव्यू और लोगों द्वारा लिखे गए पत्र दिए गए हैं।
एक छोटे-से गाँव के गरीब परिवार में जन्म लेकर भी अपने आपको भाग्यवान मानने वाली पीस कहती हैं- 'वी नीड रूम टू ग्रो।' पढ़ाई के दौरान उसने स्टोरों में काम किया। 16 साल की उम्र में पहली बार चर्च गई, तभी जिज्ञासा जागी। जीवन का अर्थ ढूँढने के लिए वह एक रात जंगल में बिताती है और प्रार्थना करती है, 'मेरा उपयोग करो प्रभु' वह तय करती है कि उसका जीवन शांति के लिए समर्पित होगा। वह नोट करती है, 'इफ यू वांट टू मेक-पीस, यू मस्ट बी पीसफुल।' मन में विश्वास था कि शांति का काम ईश्वर का है अतः वे तो उसके साथ होंगे ही। यात्रा के दौरान वह अपने आपको जाँचती, परखती और समझती है। अपने पर शरीर शुद्धि, विचार शुद्धि और उद्देश्य शुद्धि के अनुशासन लागू करती है। जिस मिशन के लिए वह निकली है उसके लिए जीवन में खुलापन होना चाहिए और यह खुलापन आता है सरलता से। यात्रा में झील में नहाना, ताजे फल और सब्जी, सूर्य की रोशनी और शुद्ध हवा पीस के लिए काफी थे। संतोषी पीस जरूरत से ज्यादा कुछ भी नहीं लेती, क्योंकि बहुत-से लोग आवश्यकता से कम में जी रहे हैं। वह जान चुकी थी कि सुख और शांति का डॉलर्स से कुछ भी लेना-देना नहीं है।
पहली यात्रा 1 जनवरी 1953 को कैलिफोर्निया के पसेडिना से शुरू होकर 17 दिसंबर को न्यूयॉर्क में पूरी होती है। वह पाती है कि पैदल चलने के दो फायदे हैं- एक तो प्रार्थना पर ध्यान बना रहता है और दूसरा जनसंपर्क भी होता जाता है। 1954 में वह 45 दिनों का उपवास करती है। 1964 में 25,000 मील का लक्ष्य वाशिंगटन में पूरा हो जाता है। पैदल चलना फिर भी जारी रहा, मील गिनना बंद कर दिया। पीस साथ में तीन अर्जियाँ लेकर निकली थी जिस पर वह लोगों के हस्ताक्षर लेती जा रही थी- 1. कोरिया युद्ध तुरंत बंद हो, 2. प्रेसीडेंट और कांग्रेस एक शांति विभाग खोलें और 3. यूएनओ मानवता को डर, घृणा और शस्त्रों से मुक्त करे।
अलग-अलग राज्यों में पीस के अलग-अलग अनुभव रहे। उनकी परीक्षाएँ भी खूब हुईं। बिना पैसे और सामान के चलने के कारण एरिजोना में एक सिपाही उन्हें आवारा समझकर पकड़ लेता है। वह कई बार जेल गई। खेतों और सड़कों पर अखबार बिछाकर और पत्तियाँ ओढ़कर सोई।कई बार भूखी रही। एक मैक्सिकन लड़के के छोटे-से घर में परिवार उसे अपना एकमात्र पलंग और कंबल देता है। ओक्लाहामा में एक सर्द सुबह एक विद्यार्थी अपने स्कार्फ और दस्ताने पीस को पहना देता है। इन लोगों का प्रेम और आतिथ्य वह कभी नहीं भुला पाई। जब गरीब लोग किसी जरूरतमंद की मदद करते तो मानवता गौरवान्वित होती है। एक क्रिश्चियन सिख कहती है कि इंसान जैसा सोचता है, वैसा ही बन जाता है। पीस भी मानती थी कि जीवन एक काँच के समान है। यदि हम उसे हँसी और प्रेम देंगे तो वह वही लौटाएगा।
पुस्तक : 'पीस पिलग्रिस' (अँग्रेजी)
लेखक : कुछ मित्रों द्वारा संकलित
प्रकाशक : फ्रेंड्स ऑफ पीस पिलग्रिस, 7350, डोर्डो, केनयन रोड, समरसेट कैलिफोर्निया, यूएसए