बुराई मरी, फिर भी मैं छोड़ी गई
वाहवाही राम लूटी
फिर वन भटक-भटक सदियां
सवाल पूछूं किससे मैं तन्हा।
पांच पांडव सौ कौरव पर भारी
तब संभव जब कृष्ण भीतर जगाई
पुरुष मन को पुरुषार्थ समझाई
अन्यथा ज्ञान भी बंटेंगे सदियों
युद्ध भी छिड़ेंगे सदियों।
आबरू पर सवाल खत्म न होंगे