कम्प्यूटर साइंस में स्नातकोत्तर, साहित्य के अतिरिक्त गायन व चित्रकला में रुचि। कविताएँ देश-विदेश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, जालघरों और रेडियो स्टेशन में प्रकाशित। संप्रति-प्रबंधक (इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी)
तुम्हारी याद आते-आते कहीं उलझ जाती है जैसे चाँद बिल्डिंगों में अटक गया हो कहीं मेरे रास्ते तन्हा तय होते हैं सपाट रोड और उजाड़ आसमान के बीच कुहासों की कुनकुनाहट भौंकते कुत्ते सुनने नहीं देते हवा गुम गई है पत्थर जम गए हैं रातें सर्द हैं सिर्फ बर्फ हैं अब तुम्हारे हथेलियों की गरमाहट कहाँ? जिससे उन्हें पिघलाऊँ? और बूँद-बूँद पी जाऊँ! नशे में रंगीन रात की प्रत्यंचा पर तीर चढ़ाऊँ, बौराऊँ! अब तो सिर्फ बिंधा हुआ आँचल है जिसकी छेद से जो दिखता है वही गंतव्य है, दिशा है मैं उसी ओर चलती हूँ अटके हुए चाँद को कंक्रीटों में ढूँढती हूँ।