दुनिया की सबसे अनूठी, सबसे कीमती और सबसे रोमांचक अनुभूति है प्रेम! प्रेम जब भी जन्मता है, अनायास जन्मता है। यह न वक्त का ख्याल करता है, न परिवेश का!
हर ओलिम्पिक खेल के गरमागरम माहौल में जहां कि हर वक्त अधिक से अधिक पदक बटोरने की गलाकाट स्पर्धा चलती रहती है, वहां भी कई बार दिलों को सुकून पहुंचाने वाली प्रेमानुभूति पनपती देखी गई है। ओलिम्पिक इतिहास कई रोमांचक व हृदयस्पर्शी प्रेम गाथाओं का प्रत्यक्ष गवाह है। इन्हीं प्रेम-प्रसंगों की दास्तान यहां प्रस्तुत है-
जब कैथरवुड का दिल पर काबू न रहा : 1928 के एम्सटर्डम खेलों में कनाड़ा की खूबसूरत महिला एथलीट कैथरवुड ने तहलका मचा रखा था। वे अभ्यास के लिए भी निकलतीं तो बड़ी संख्या में मनचले उन्हें निहारने के लिए आ खड़े होते थे। लाखों दिलों की इस मलिका का स्वयं अपने दिल पर काबू न रहा, जब उनकी टीम के एक सदस्य ने उनका परिचय अमेरिकी एथलीट हेराल्ड ऑसबोर्न ने कराया। 1924 ओलिम्पिक के दोहरे स्वर्ण (ऊंची कूद एवं डिकैथलान) विजेता ऑसबोर्न का हाल भी कैथरवुड को देखकर कुछ ऐसा ही हो गया।
कड़वाहट मिठास में बदली : ऑसबोर्न के प्रशंसक इस बार भी उनसे दोहरी सफलता की उम्मीद लगा बैठे थे, लेकिन जब मुकाबले हुए तो उनके हाथ निराशा ही लगी। ऑसबोर्न दोनों स्पर्धाओं में हार गए, लेकिन असफलता की यह कड़वाहट उस वक्त मिठास में बदल गई, जब उनकी प्रेयसी कैथर वुड ने 4 गुणा 100 मीटर रिले दौड़ में शानदार प्रदर्शन करते हुए अपनी टीम को स्वर्ण पदक दिलाया।
प्रेम परवान चढ़ा : ऑसबोर्न और कैथर वुड का प्रेम अंततः इस सीमा तक परवान चढ़ा कि ओलिम्पिक खत्म होते ही दोनों ने विवाह करने का फैसला कर लिया।
बेडकॉक-कूपर का प्रणय प्रसंग : एम्स्टर्डम ओलिम्पिक में एक और प्रणयगाथा भी लिखी गई, जिसके नायक-नायिका थे-जॉन बेडकॉक और मारग्रेट कूपर। यह अलग बात है कि यह प्रेम कहानी ऑसबोर्न-कैथरवुड प्रसंग की तरह आम लोगों के बीच चर्चा का विषय नहीं बनी। इसकी एक वजह यह भी थी कि बेडकॉक व मारग्रेट एक ही टीम इंग्लैंड के सदस्य थे, अतः लोगों को उनके प्रेम संबंध में कोई विशेष बात नजर नहीं आई।
दोनों ने रजत पदक जीता : जॉन बेडकॉक इंग्लैंड की नौका चालन टीम के सदस्य थे। उन्होंने रोइंग प्रतियोगिता में एक रजत पदक जीता। उधर मारग्रेट कूपर, जो कि महिला तैराकी टीम में शामिल थीं, उन्होंने 4 गुणा 100 मीटर की फ्रीस्टाइल रिले प्रतियोगिता में रजत पाया हासिल किया।
पति-पत्नी साथ शामिल हुए : एम्सटर्डम खेलों के दौरान ही बेडकॉक व मारग्रेट ने अपने विवाह की घोषणा कर दी। 1932 में लॉस एंजिल्स ओलिम्पिक में वे दोनों पति-पत्नी एक बार फिर एक साथ इंग्लिश टीम में शामिल हुए और इस बार भी उन्होंने पदक जीते। बेडकॉक ने 'कॉक्सलेस' वर्ग में स्वर्णिम सफलता हासिल की, जबकि मारग्रेट ने 4 गुणा 100 मी. रिले में कांस्य पदक प्राप्त किया।
ओलिम्पिक के साथ प्रेम में भी सफलता : जॉन बेडकॉक और मारग्रेट कूपर से काफी मिलती- जुलती कहानी माइकल गेलिट्जन और जार्जिया कोलमैन की रही। अमेरिका गोताखोरी टीम के इन दोनों सदस्यों के बीच 1932 के खेलों के दौरान ही प्रेम पनपा और इस अनुभूति ने उन्हें जिंदगी भर के लिए एक हो जाने को प्रेरित किया। प्रेम के मैदान में बाजी मारने वाले ये दोनों खिलाड़ी खेल के मैदान में भी पीछे नहीं रहे। अपने-अपने वर्गों में उन दोनों ने एक स्वर्ण व एक रजत पदक जीता।
उम्र की सीमाओं से परे प्रेम : ओलिम्पिक का प्रतिस्पर्धात्मक, परन्तु सद्भावनापूर्ण माहौल किस तरह व्यक्तियों को एक-दूसरे के निकट ले आता है, असका ज्वलंत उदाहरण बनी 1952 (हेलसिंकी) ओलिम्पिक के दौरान देसो ग्यारमती व इवॉ जकेली की प्रेम कहानी परवान चढ़ी ।
देसो वरिष्ठ सदस्यों में थी : हंगरी टीम के इन दोनों खिलाड़ियों के मध्य वैसे कोई भी समानता नहीं थी। देसो जहाँ टीम के सबसे वरिष्ठ सदस्यों में से एक थे, वहीं इवॉ की यह पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता थी। उन दोनों की उम्र में भी काफी अंतर था, लेकिन प्रेम तो आखिर प्रेम होता है। उसे उम्र या प्रतिष्ठा से क्या लेना-देना?
दोनों को स्वर्णिम सफलता मिली : 1948 के ओलिम्पिक में देसो ने वॉटरपोलो स्पर्धा में अपनी टीम को रजत पदक दिलाया था। इस बार (1952) उनकी सफलता स्वर्ण में बदल गई। उधर इवॉ ने भी उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करते हुए 200 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक तैराकी का स्वर्ण पदक जीता। देसो व इवॉ की यह आशातीत सफलता निश्चय ही उनके पारस्परिक प्रेम से जनित प्रेरणा का सुपरिणाम थी।
मोहब्बत जीत गई : चार वर्ष बाद मेलबोर्न ओलिम्पिक में एक बार फिर देसो व इवॉ ने हंगरी टीम की ओर से शिरकत की। इस समय तक वे श्रीमती देसो ग्यारमती बन चुकी थीं। इस बार इवॉ के हाथ 200 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक का रजत पदक आया, जबकि देसो ने अपनी वॉटरपोलो टीम के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर एक बार फिर स्वर्णिम सफलता हासिल की। मुहब्बत जीत गई।
ओलिम्पिक की सर्वाधिक चर्चित प्रेम कथा : ओलिम्पिक के पटल पर लिखी गई प्रेम कहानियों में अब तक सर्वाधिक अनूठी व चर्चित रही है, चेकोस्लोवकिया की ओल्गा फिकातोबा व अमेरिकी एथलीट हाल कोनोली की प्रेम कहानी। 1956 में मेलबोर्न ओलिम्पिक के दौरान इन दोनों की मुलाकात हुई और पहली ही मुलाकात में वे एक-दूसरे को दिल दे बैठे।
कोनोली और फिकातोवा : हैमर थ्रो के खिलाड़ी थे। इस स्पर्धा में उन्होंने नया ओलिम्पिक कीर्तिमान बनाते हुए स्वर्णपदक जीता। दूसरी ओर ठीक यही कारनामा फिकातोवा ने डिस्कस थ्रो में दिखाया। 53.69 मीटर चक्का फेंककर न केवल उन्होंने स्वर्ण पदक जीता, बल्कि एक नया ओलिम्पिक रिकॉर्ड भी बनाया।
विवाह में आई कानूनी अड़चन : ओलिम्पिक समाप्त होने के बाद कोनोली व फिकातोवा ने विवाह करने का फैसला कर लिया, लेकिन यह इतना आसान नहीं था। कोनोली के सामने तो कोई समस्या नहीं थी, लेकिन उनकी अनन्य सुंदरी प्रेमिका अपने देश के कठोर कानूनों में बँधी हुई थी, जिनके मुताबिक देश के किसी भी नागरिक को किसी विदेशी से विवाह करने के लिए सरकार की अनुमति लेनी जरूरी थी।
सरकारी इजाजत नहीं मिली : फिकादतोवा ने अपने विवाह के लिए सरकारी इजाजत हेतु आवेदन पत्र दिया, तो चेक अधिकारियों ने उसे कोई कारण बताए बिना अस्वीकार कर दिया। इसके बाद के कुछ महीने कोनोली व फिकातोवा, दोनों के लिए काफी कठिन थे। उनके बीच निराशा व असमंजस का एक महासागर लहरा रहा था, जिसके दोनों सिरों पर था दर्द व जुदाई का अहसास!
राष्ट्रपति की उदारता : लेकिन फिकातोवा ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक बार फिर प्रार्थना-पत्र तैयार किया और उसे सीधे राष्ट्रपति के पास भेजा। इस बार भाग्य उसके साथ था। लगभग दो सप्ताह बाद उन्हें राष्ट्रपति सचिवालय से विवाह की स्वीकृति का पत्र मिला, तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। अंततः 27 मार्च 1958 को वे कोनोली के साथ वैवाहिक बंधन में बंध गईं।
चंचल वाइरा और शर्मीले जोजफ का प्रेम : प्रेम वाकई अंधा होता है। यदि ऐसा न होता तो ओलिम्पिक खेलों में सात स्वर्ण व चार रजत पदक जीतने वाली चेकोस्लोवाकिया की महान महिला एथलीट वाइरा कस्लावस्का की निगाहें 1964 के टोकियो ओलिम्पिक खेलों के दौरान एक अनजान चेक एथलीट जोजफ ओडलोजिल से चार न हुई होतीं। जोजफ एक शर्मीला युवक थे, जिन्हें कस्लावस्का की चंचल निगाहों ने पहली ही नजर में पसंद कर लिया था।
मोहब्बत ने प्रेरणा दी : टोकियो खेलों में कस्लावस्का ने तो आशानुरूप शानदार प्रदर्शन (3 स्वर्ण, 3 रजत) किया ही, उनके प्यार की प्रेरणा के सहारे जोजफ भी एक ऐसा कारनामा कर गुजरे, जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। उन्होंने 1500 मीटर दौड़ का रजत पदक जीत लिया। ओलिम्पिक के पश्चात स्वदेश लौटकर कस्लावस्का व जोजफ ने विवाह कर लिया।
कस्लावस्का को ऐतिहासिक सफलता : 1968 के ओलिम्पिक में वे दोनों एक बार फिर एक साथ भाग लेने आए। कस्लावस्का ने इस बार भी ऐतिहासिक सफलता (4 स्वर्ण व 1 रजत) हासिल की, लेकिन इस बार जोजफ कोई सफलता नहीं पा सके।
प्रेम हर सीमा और बंधन से परे है : ओलिम्पिक की गर्म हवाओं में जन्में ये प्रेम प्रसंग यह मानने को मजबूर कर देते हैं कि प्रेम हर सीमा व बंधन से परे होता है, चाहे वह भाषा का बंधन हो, जाति का या फिर राष्ट्रीयता का।