ओलिम्पिक खेलों की रोमांचकारी गाथाएं

एक सौ बारह वर्ष पुराने ओलिम्पिक इतिहास में अनेकानेक बातें और घटनाएं ऐसी हो चुकी है, जिन्हें रोचक श्रेणी में रखा जा सकता है। जब भी ओलिम्पिक खेलों का आयोजन होता है तो इससे जुड़ी भूली-बिसरी यादें फिर से ताजा हो उठती हैं और मन इतिहास के पन्नों को पलटने लगता है। ऐसी ही कुछ बातों का जिक्र गैर मुनासिब न होगा-

एक आवारगी ऐसी भी : 1972 के म्यूनिख के ओलिम्पिक के एक विशिष्ट दर्शक थे कनाड़ा के एल्जीयर ड्यूकेट। एज्जीयर मई 1969 को मांट्रियल से पैदल चले और चलते-चलते ओसाका पहुंचे। वहां से वे जा पहुंचे जापान विश्व मेले में। इसके बाद ड्यूकेट न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और कुछ यूरोपीय देशों के चक्कर लगाते हुए ठीक वक्त पर म्यूनिख पहुंच गए, जब 1972 के ओलिम्पिक खेल शुरू होने वाले थे। इतने लंबे सफर में ड्यूकेट का संगी उनका चलता फिरता ताबूत था, जिसमें वे रोज रात को सोया करते थे।

ओलिम्पिक सुंदरी : उर्श्वाला लैंडबर्ग, यह नाम था 25 वर्ष की उस हसीना का था, जिसने 1972 में 245 खूबसूरत चेहरों को मात देते हुए म्यूनिख में ओलिम्पक सुंदरी का खिताब जीता था। असल में यह प्रतियोगिता फिल्म 'एसिटी इनवाइट्स यू' की नायिका की भूमिका के लिए थी, जो म्यूनिख ओलिम्पिक के खेलों में लोगों की दिलचस्पी जगाने के लिए म्यूनिख की खूबियों को बयान करती थी।

निर्लज्ज एथलीट : 1900 के ओलिम्पिक में अपने देश के प्रतियोगियों को उत्साहित करने के लिए जब अमेरिकी चींखते थे, तब फ्रांस के शालीन फ्रांसीसी दर्शक उन्हें असभ्य कहते थे। अमेरिकी धावक और एथलीट अपनी पोशाखों की वजह से फ्रांसीसी नजरिए से निर्लज्ज थे। समय का फेर देखिये कि यही निर्लज्ज अमेरिकी एथलीट आज दुनिया की सबसे बड़ी 'खेल महाशक्ति' के रूप में ओलिम्पिक खेलों में उतरते हैं और उनके गले सोने के तमगों से सजते हैं।

कुश्ती में भारतीय शेर-खाशाबा जाधव : भारत के ओलिम्पिक में पहला व्यक्तिगत पदक दिलाने वाले खाशाबा जाधव थे। उन्होंने 1952 के हैलसिंकी ओलिम्पिक में कुश्ती में बेंटमवेट वर्ग में कांस्य पदक जीता था। इसके पहले एवं बाद में भारत का कोई भी पहलवान पदक तक नहीं पहुंच सका।

भारत को पहली बार 1920 के एंटवर्प ओलिम्पिक में कुश्ती में पहलवान भेजने का अवसर मिला था। इस ओलिम्पिक में भारत के दो पहलवानों ने भाग लिया, लेकिन वे कुछ नहीं कर पाए। इसके बाद 1936 के भारत के थोरात, रशीद अनवर एवं रसूल दूसरे चक्र में ही अपनी चुनौती कायम रखा पाए थे।

1948 में पहली बार भारतीय पहलवानों ने कुछ उम्दा प्रदर्शन किया के.डी. जाधव को फ्लाइटवेट में छठा एवं ए. भार्गव को वेल्टरवेट में नौवां स्थान मिला था। इसके बाद 1952 को छोड़कर जिस ओलिम्पिक में भारत के पहलवान लड़े हैं, उसमें उनका प्रदर्शन पदक के स्तर तक नहीं पहुंच सका।

तैराक से टारजन बना : ओलिम्पिक के कुछ सितारे ऐसे भी हुए हैं, जिन्होंने खेलों में अलावा दूसरे क्षेत्रों में भी नाम कमाया। इसी तरह के एक खिलाड़ी थे अमेरिका के वेसमुलर। उन्होंने तैराकी में जो कमाल दिखाया, उसने तो दर्शकों को प्रभावित किया ही साथ ही 1928 के बाद उन्होंने फिल्म जगत में प्रवेश किया और 'टारजन' के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त की।

ओलिम्पिक खेलों का पहला झगड़ा : ओलिम्पिक खेलों में पहला झगड़ा 1908 के ओलिम्पिक की रस्साकशी में स्पर्धा में हुआ। इसमें फइनल मुकाबला अमेरिका एवं ब्रिटेन में था। अमेरिकी खिलाड़ियों ने तो कैनवास के सफेद जूते पहने थे, पर ब्रिटेन के खिलाड़ियों ने इसके लिए विशेष जूते बनवाए थे।

और जब पहले मुकाबले के बाद अमेरिका को मालूम हुआ कि ब्रिटेन को जीत इसलिए मिली है, क्योंकि उसके खिलाड़ियों ने विशेष जूते पहने थे, तो इस बात को लेकर झगड़ा हो गया और फिर अमेरिकी दूसरी बार रस्सा खींचने आए ही नहीं। इस स्थिति के बाद यह हुआ कि आयोजकों ने कुछ समय प्रतीक्षा करने के बाद ब्रिटेन को विजयी घोषित कर दिया।

छात्र का विश्व रिकॉर्ड : स्टॉकहोम में ओलिम्पिक में अमेरिका के एक छात्र मिअर डिथ ने खूब नाम कमाया था। उन्होंने 800 मीटर दौड़ में विजेता बनकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। फइनल मुकाबले में इसके अलावा तीन अमेरिकी और थे। किसी ने भी मिअर डिथ की जीत की उम्मीद नहीं की थी, लेकिन सिर्फ उन्होंने न केवल खिताब जीता बल्कि विश्व रिकॉर्ड भी बना दिया।

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