बाद में एशियाई शैली की कलात्मक और कौशलपूर्ण हाकी का सूरज डूबने लगा और एस्ट्रो टर्फ पर ताकत के दम पर खेली जाने वाली तेज तर्रार हाकी ने उसकी जगह ले ली। भारत की टीम ने 29 जुलाई 1980 को मास्को ओलंपिक खेलों में आखरी बार हॉकी का स्वर्ण पदक जीता था।1980 के बाद कहने को तो कितने ही ओलंपिक खेले गए लेकिन एक बार भी हॉकी टीम गोल्ड मेडल जीतने में सफल न हो सकी।
जब अनुभवहीन भारतीय हॉकी टीम ने दी स्पेन को खिताबी मात
उस फाइनल की बात करें तो भारत के पास एक अनुभवहीन टीम थी और सिर्फ 5 खिलाड़ी ही थे जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय टीमों के खिलाफ मैच खेले थे। जफर इकबाल, मेरविन फर्नाडिस, एम एम सोम्या, बीर बहादुर छेत्री और कप्तान वसुदेवन बासकरन पर पूरा दारोमदार था। कप्तान को लगा कि टीम में जोश जगाने की जरूरत है और इस कारण दो बार जनरल सैम मानेक शॉ से भी खिलाड़ियों की बात की गई।
अर्जेंटीना पर आखिरकार 43वें मिनट में वरुण कुमार ने पेनल्टी कॉर्नर जाया नहीं जाने दिया और भारत को पहली बढ़त दिलायी। गत विजेता अर्जेंटीना के लिए यह अपमान का घूंट पीने के बराबर था। हालांकि इसके बाद अर्जेंटीना ने मैच में बराबरी की जब स्कुथ कासेला ने पेनल्टी कॉर्नर मिलने पर गोल किया। लेकिन इस गोल के बाद रियो ओलंपिक्स में गोल्ड जीतने वाला अर्जेंटीना गोल खाता रहा।