वह जीवन मरण का प्रश्न था और करीब 900 सैनिकों पर यह अहम जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि पिछले सप्ताह हुए ओलिम्पिक समारोह के उद्घाटन के दौरान वे एक बड़े से ढाँचे के पीछे छिपे रहकर विशालकाय स्क्रॉल को तब तक चलाते रहें जब तक कि आयोजन अपने समय पर पूरा नहीं हो जाता।
यह आयोजन एक दो घंटे नहीं वरन पूरे सात घंटे तक चला। बीजिंग न्यूज में छपी खबर के मुताबिक इन सात घंटों का समय इतना अधिक महत्वपूर्ण था कि एक भी सैनिक को किसी भी कारण से एक मिनट की भी छुट्टी नहीं दी जा सकती थी। इन्हें स्क्रॉल के पीछे छिपे रहकर बड़े प्रिटिंग ब्लॉक्स को संचालित करना था। इन पर चीनी भाषा में अक्षर लिखे हुए थे, जिन्हें लगातार बदलते रहना था।
यह काम इतना अहम था कि इन 900 सैनिकों को शौचालय या पेशाबघर जाने की भी छुट्टी नहीं दी जा सकती थी। लेकिन फिर भी अगर किसी को जोर से पेशाब लगे तो वह क्या करे? इसका भी हल निकाला गया और सैनिकों से कहा गया कि वे नैप्पी पहन लें और जरूरत पड़ने पर कपड़ों में ही पेशाब कर लें, लेकिन उन्हें छुट्टी मिलना संभव नहीं है।
समाचार-पत्र से बात करते हुए उद्घाटन समारोह को कोरियोग्राफ करने वाले हान लिशुआन ने कहा कि चीनी अक्षरों को चलाने वाले इन सैनिकों को दिन में दो बजे भूमिगत तहखाने में भेज दिया गया था। वहाँ उन्हें छह से सात घंटे तक रहना था।
जब पूछा गया कि इन सैनिकों को समय से पहले क्यों भूमिगत स्थान पर भेज दिया तो इसका जवाब था कि उन्हें स्टेडियम में आने वाले दर्शकों और सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने वाले कलाकारों से भी पहले मौजूद रहना था। यह इसलिए भी जरूरी था क्योंकि प्रत्येक परफॉर्मर को उसके स्थान पर समय से पहले मौजूद रहना था।
समारोह की एक खास बात यह भी रही और आयोजकों ने माना कि टीवी पर जो आतिशबाजी दिखाई गई थी वह वास्तव में एनीमेशन का काम थी, जिसे पहले से ही रिकॉर्ड कर लिया गया था।