प्रतिभाशाली अखिल के मुक्कों में है दम

- सीमान्त सुवी

जिन लोगों ने भारत के 27 बरस के मुक्केबाज अखिल कुमार को रूस के विश्व चैंपियन मुक्केबाज सर्गेई पर मु्क्के बरसाते देखा होगा, उन्होंने यह तो तय कर ही लिया होगा कि भारत का यह मुक्केबाज सेमीफाइनल की पायदान चढ़ जाएगा।

अखिल बेहद प्रतिभाशाली मुक्केबाज हैं और उन्होंने यह मुकाम की मेहनत के बूते पर प्राप्त किया है। अखिल ने मुक्केबाजी का प्रशिक्षण भिवानी (हरियाणा) के एक क्लब से लेना प्रारंभ किया। उस वक्त किसी को इल्म नहीं था कि एक दिन वह बीजिंग ओलिम्पिक वर्कस जिम्नेशियम के रिंग पर विरोधियों पर तूफानी मुक्के बरसताते नजर आएँगे।

अखिल के हुनर को निखारने में कोच जगदीशसिंह ने अहम किरदार निभाया। अखिल ने चार साल पहले एथेंस ओलिम्पिक खेलों में भी हिस्सा लिया था लेकिन वह पहले दौर में ही जेरोम थॉमस से हारकर बाहर हो गए थे, लेकिन तभी उन्होंने फैसला कर लिया था अगले ओलिम्पिक में वे पूरी तैयारी के साथ उतरेंगे।

एथेंस से लौटने के बाद अखिल की तपस्या जारी रही और 2005 में ग्लासगो में आयोजित चौथे राष्ट्रमंडलीय खेलों में वे स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहे। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के बोंगानी महालंगु को 18-17 शिकस्त दी थी।

2006 के राष्ट्रमंडल खेलों में हरियाणा का यह होनहार बॉक्सर अपने जोरदार पंचों की बदौलत बैंटमवेट के 54 किलोग्राम वर्ग में भी स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाने में कामयाब रहा। यह उपलब्धि उन्होंने फाइनल में ब्रूनो जुली को को हराकर हासिल की। इस तरह बैंटम वेट स्पर्धा में अपने स्वर्ण पदक की रक्षा करने में सफल हुए।

भिवानी में 27 मार्च 1981 में जन्में अखिल को 2006 में 'अर्जुन पुरस्कार' से नवाजा गया। बीजिंग में उनके प्रदर्शन से साफ झलकता है कि उनमें पदक की कितनी भूख है। क्वार्टर फाइनल में पहुँचने के पूर्व उन्होंने रूस के विश्व चैंपियन मुक्केबाज सर्गेई को धराशायी करके क्वार्टर फाइनल में मोल्दोवा के गोजान वेसेस्लाव दो-दो हाथ करने की पात्रता हासिल की थी।

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