एथलीट तलाशते हैं संन्यास के बाद 'नई दुनिया'

गुरुवार, 9 अगस्त 2012 (19:25 IST)
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चकाचौंध-शानोशौकत और चारों और मीडिया का जमावड़ा। खिलाड़ियों के लिए यह सब कुछ किसी सपने की तरह होता है, जो उन्हें आम इंसान से एक सितारे में तब्दील कर देता है, लेकिन इसी सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है कि खेलों से संन्यास लेने के बाद उन्हें इस ग्लैमर से दूर रहकर नए जीवन की शुरुआत करनी पड़ती है। ऐसे में कुछ खिलाड़ी अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं, जबकि कई गुमनामी में खो जाते हैं।

लंदन ओलिंपिक में कई खिलाड़ी और भी चमक गए हैं। दुनिया उनकी फैन हो गई है, लेकिन इन्हीं ओलिंपिक में कई ऐसे भी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने यहां से अपने इस अद्भुत और शानदार करियर का पटाक्षेप कर दिया और अब यहां से आगे का जीवन एक आम इंसान की जिंदगी और चुनौतियों से भरा है।

लंदन ओलिंपिक से जिन नामी खिलाड़ियों ने अपने सुनहरे करियर पर विराम लगा दिया है, उनमें अमेरिका के तैराक माइकल फ्लेप्स, चीन की डाइवर वू मिंक्शिया, ब्रिटेन की साइकलिस्ट विक्टोरिया पेंडलटन शामिल हैं। इसके अलावा कई एथलीट हैं, जो लंदन के बाद खेलों से अपना नाता तोड़ने वाले हैं।

खेल मनोचिकित्सक विक्टर थामसन की मानें तो कई एथलीट लंदन ओलिंपिक के बाद रिटायर होने वाले हैं। यहां दुनियाभर से आने वाले 10800 एथलीटों ने 302 पदकों के लिए कई वर्षों कड़ी मेहनत और अभ्यास किया है, लेकिन इसके बाद भी वे अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाए हैं।


विक्टर ने कहा, यहां असफल रहने आने वाले कई एथलीटों में यह भावना पैदा होगी कि वे अच्छे खिलाड़ी नहीं हैं। ऐसे में उनके लिए चीजों को सकारात्मक तरह से लेना कठिन हो जाएगा और बहुत संभव है कि वे अवसाद के शिकार हो जाएं। मनोचिकित्सक ने कहा कि खिलाड़ी स्वयं के ही सबसे बड़े आलोचक होते हैं।

ब्रिटेन की 27 वर्षीय जिमनास्ट बेथ टिडल ने कहा, मेरा शरीर अब अधिक समय तक खेलों में बने रहने की इजाजत नहीं देता है, इसलिए वर्ष 2016 में रियो द जेनेरो में होने वाले ओलिंपिक में मेरे शामिल होने की कोई उम्मीद नहीं है।

टिडल के अलावा भी कई खिलाड़ी हैं, जो कई कारणों से अब खेलों से संन्यास लेना चाहते हैं। लंदन ओलिंपिक में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाने के कारण भी कई खिलाड़ी अब खेलों के अलावा किसी अन्य पेशे को अपनाना चाहते हैं।

ब्रिटिश साइकलिस्ट ब्रेडले विगिंस ने बताया कि उनके पिता गैरी विगिंस भी खेलों से संन्यास के बाद शराब की लत का शिकार हो गए थे और इसी कारण उनकी मौत हो गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक खेलों के बाद संन्यास से खिलाड़ियों को कई तरह के बदलावों से जूझना पड़ता है और इस कारण वे अवसाद, निराशा और कई तरह की मानसिक परेशानियों का शिकार हो जाते हैं।

स्टेडियम में बैठे लाखों और दुनियाभर में टीवी पर देख रहे करोड़ों प्रशंसकों के सामने ये खिलाड़ी किसी हीरो की तरह होते हैं, जिनकी एक झलक पाने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है, लेकिन खेलों से दूर होते ही अंधकार और गुमनामी की जिंदगी उन्हें इस कदर जकड़ लेती है कि इससे उबर पाना कठिन हो जाता है।

शायद यही कारण है कि एथलीटों में यह पंक्तियां बेहद लोकप्रिय हैं, खिलाड़ी एक नहीं दो बार मरता है यानी संन्यास के बाद उसके एक जीवन का अंत हो जाता है। (वार्ता)

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