धर्म और विज्ञान का मिलन

एक बार किसी ने ओशो से पूछा, आपकी नजर में विज्ञान का भविष्य क्या होगा?

ओशो : मैं बीसवीं सदी का व्यक्ति हूँ और पूरी तरह से जीवंत हूँ और मैं भविष्य की जरा भी चिंता नहीं करता, न ही मैं अतीत की कोई परवाह करता। मेरा सारा जोर वर्तमान पर है, क्योंकि सिर्फ वर्तमान ही का अस्तित्व है। अतीत अब रहा नहीं, भविष्य आया नहीं। दोनों ही का अस्तित्व नहीं है। वे पैगंबर पागल रहे होंगे, जो भविष्य की चिंता करते थे। वे हमेशा भविष्य की बात करते थे।

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दुनिया में दो ही तरह के पागल लोग हैं, वे जो हमेशा अतीत की बात करते हैं, और थोड़े जो भविष्य की बात करते हैं। अतीत की बात करने वाले लोग इतिहासविद, पुरातत्वविद इत्यादि होते हैं। और जो लोग भविष्य की बात करते हैं वे पैगंबर, कल्पनाशील, कवि होते हैं। मैं दोनों ही नहीं हूँ।

मेरा सारा संबंध इस क्षण से है... अभी... यहाँ।

मैं पैगंबर नहीं हूँ लेकिन एक बात मैं कह सकता हूँ और इसका असल में भविष्य से कुछ लेना-देना नहीं है। यह अभी यहीं घट रहा है। लोग अंधे हैं इसलिए वे देख नहीं सकते। मैं देख सकता हूँ, यह पहले ही हकीकत बन चुका है।

बड़ी से बड़ी बात जो हो रही है- जो बाद में समझ में आएगी, वह है धर्म और विज्ञान का मिलन, पूर्व और पश्चिम का मिलन, भौतिकता और आध्यात्मिकता का मिलन, बाह्य और अंतस का मिलन, अंतर्मुखी और बाह्यमुखी का मिलन, लेकिन यह अभी ही हो रहा है, यह भविष्य में विकसित होगा, लेकिन मेरा संबंध वर्तमान से है, और मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि कुछ बहुत ही महान बात होने को है।

बीज अंकुरित हो चुका है। तुम इतने अतीत और भविष्य से बँधे हो कि वर्तमान में छोटे से अंकुरण को देख नहीं सकते, यहाँ, तुम्हारी आँख के नीचे... दो विपरीत ध्रुवों का मिलन हो रहा है।

विज्ञान अकेला आधा है और मानव को तृप्ति नहीं दे सकता। यह तुम्हें अधिक बेहतर शरीर दे सकता है, यह तुम्हें अच्छा स्वास्थ्य दे सकता है, लंबा जीवन दे सकता है। यह तुम्हें अधिक भौतिक सुविधाएँ दे सकता है, अधिक विलासिता। मैं इनमें से किसी के खिलाफ नहीं हूँ। मैं दुखवादी नहीं हूँ, मैं किसी भी तरह से उस तरह का मूर्ख नहीं हूँ, लेकिन यह सिर्फ बाहरी दुनिया की चीजें ही दे सकता है, जो कि अपने में सुंदर है। मैं चाहता हूँ कि सभी लोग सुंदर जीवन, आरामदायक जीवन जीएँ, अधिक विलासिता में, अधिक स्वस्थ, अधिक पोषित, अधिक शिक्षित, लेकिन सिर्फ यही सब कुछ नहीं है, यह सिर्फ जीवन की सतह भर है, केंद्र नहीं।

धर्म केंद्र उपलब्ध करवाता है, यह तुम्हें आत्मा देता है। इसके बिना विज्ञान लाश भर है, एक सुंदर लाश। तुम लाश को रंग-रोगन कर सकते हो। तुम लाश को धो सकते हो और सुंदर कपड़े पहना सकते हो, लेकिन लाश तो लाश ही है! और याद रखो यही बात धर्म के साथ भी लागू होती है। धर्म अकेला भी पर्याप्त नहीं है। अकेला धर्म तुम्हें भूत बना देता है। पवित्र भूत, लेकिन यह तुम्हें भूत बना देता है।

यदि धर्म भौतिक नहीं बनता है तो आत्मा-परमात्मा की बातें महज एक पलायन है। पूरब में यही हुआ है : हम आत्मा की बहुत ज्यादा बात करते हैं और हमें जो यथार्थ चारों तरफ से घेरे है, उसे भूल ही गए हैं। हम अंतर्मुखी हो गए हैं, स्व से अत्यधिक बँधे हुए। हम वृक्षों की, पहाड़ों की, और चंद्रमा और तारों की खूबसूरती के बारे में पूरी तरह से भूल गए। पूरब में मानवता कुरूप हो गई। इसके पास केंद्र है, लेकिन परिधि नहीं। सब कुछ केंद्र पर सिकु्ड़ गया।

पश्चिम के पास परिधि है पर केंद्र नहीं। लोगों के पास सब कुछ है, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण से चूक रहे हैं। विज्ञान और धर्म एक हो रहे हैं। ये एक हो चुके हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि वे एक होने वाले हैं, वे एक हो रहे हैं। सभी महान वैज्ञानिक- एडिंग्टन, प्लैंक, आइंस्टिन- विज्ञान जगत के उच्च क्षमता के लोग, इस बात के लिए सचेत हुए हैं कि अकेला विज्ञान काफी नहीं है। यहाँ कुछ और भी अधिक रहस्यपूर्ण है, जो वैज्ञानिक कार्य प्रणाली व संसाधनों से पकड़ नहीं सकते, कुछ भिन्न प्रयास की जरूरत होती है, ध्यानपूर्ण होश की जरूरत होती है।

एडिंग्टन अपनी आत्मकथा में कहता है, 'जब मैंने अपने जीवन की शुरुआत एक वैज्ञानिक की तरह की तो मैं सोचता था कि दुनिया चीजों से चलती है, लेकिन जैसे मैं विकसित हुआ, वैसे-वैसे मैं अधिक से अधिक सचेत हुआ कि दुनिया में सिर्फ चीजें ही नहीं होती बल्कि विचार भी होते हैं।'

यथार्थ विचार के अधिक करीब है। यथार्थ की थाह नहीं पाई जा सकती, उसे नापा नहीं जा सकता; वह कहीं अधिक अधिक रहस्यपूर्ण है। यथार्थ मात्र वस्तु नहीं बल्कि चेतना भी है। मेरी अपनी दृष्टि यह है कि हमें जोरबा दि बुद्धा का निर्माण करना होगा।

जो नया बुद्ध होगा वह जोरबा दि ग्रीक और गौतम बुद्ध का मिलन होगा। वह सिर्फ जोरबा नहीं हो सकता, और वह सिर्फ बुद्ध भी नहीं हो सकता।

और इसीलिए मेरा सारा प्रयास है जोरबा और बुद्ध के बीच सेतु निर्माण किया जाए, स्वर्ग सेतु, या इंद्रधनुषी सेतु, धरती और अनंत के बीच, इस किनारे और उस किनारे के बीच। यह मेरे आसपास घट रहा है! इसे घटते हुए कहीं और तुम देख नहीं सकते...

यहाँ सभी तरह के वैज्ञानिक हैं। यहाँ कई तरह के वैज्ञानिक हैं। यहाँ पर कवि और संगीतकार, चित्रकार हैं- सभी तरह के लोग, और ये सभी एक साथ एक महान प्रयास के लिए जुटे हैं : ध्यान के लिए। यहाँ सिर्फ एक मिलन का बिंदु है और वह है ध्यान। सिर्फ एक बिंदु पर वे मिलते हैं, अन्यथा सभी की अपनी वैयक्तिक यात्रा है। इस मिलन द्वारा अद्भुत विस्फोट संभव है। यह यहाँ घट रहा है। जिनके पास आँखें हैं वे यह घटते यहाँ देख सकते हैं।

पृथ्वी पर यही एक जगह है जहाँ दुनिया के सारे देशों के प्रतिनिधि मिलेंगे। हम यहाँ पर रूस के लोगों को चूक रहे थे और अब मैं यह बताते प्रसन्न हूँ कि रूस से भी लोग यहाँ आ गए हैं। सभी वर्ग यहाँ मिल रहे हैं, सभी धर्म यहाँ मिल रहे हैं। यहाँ पर छोटा सा संसार है, छोटी सी दुनिया, और हम सभी यहाँ पर मानव की तरह मिल रहे हैं। कोई ईसाई नहीं है, हिंदू नहीं है या मुसलमान नहीं है। कोई नहीं जानता कि कौन वैज्ञानिक है, कौन संगीतकार है, कौन चित्रकार है, कौन प्रसिद्ध अभिनेता है। कोई कहता भी नहीं...।

एक पूरे तरह का नया विज्ञान निश्चित ही आने वाला है, यह दोनों एक साथ होगा : धर्म और विज्ञान, और तब ही यह पूर्ण हो सकता है। यह अंतस और बाह्य दोनों का विज्ञान होगा। सच तो यह है कि धर्म के दिन पूरे हुए, सिर्फ विज्ञान काफी है, एक ही शब्द से काम चल जाएगा। 'विज्ञान', सुंदर शब्द है, इसका मतलब है जानना, विवेक।

विज्ञान को दो श्रेणियों में बाँटना है : विषयगत विज्ञान- रसायनशास्त्र, भौतिकशास्त्र, गणित, इत्यादि- इत्यादि और आत्मपरक विज्ञान, और तब धर्म और विज्ञान को बाँटने की जरूरत नहीं है। और धर्म और विज्ञान का मिलन पहली बार पूर्ण मानव का निर्माण करेगा। अन्यथा मानवता आज तक खंडित रही है, बँटी हुई, विक्षिप्त, विभाजित रही है।

मैं संपूर्ण मानव के लिए हूँ, क्योंकि मेरे अनुसार संपूर्ण मानव ही पवित्र मानव हैं।

साभार : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन