तंत्र ने सेक्स को स्प्रिचुअल बनाने का दुनिया में सबसे पहला प्रयास किया था। खजुराहो में खड़े मंदिर, पुरी और कोणार्क के मंदिर सबूत हैं। कभी आपने खजुराहो की मूर्तियां देखी हों तो आपको दो बातें अद्भुत अनुभव होंगी। पहली बात तो यह है कि नग्न मैथुन की प्रतिमाओं को देखकर भी आपको ऐसा नहीं लगेगा कि उनमें जरा भी कुछ गंदा है, जरा भी कुछ अग्ली है।
नग्न मैथुन की प्रतिमाओं को देखकर कहीं भी ऐसा नहीं लगेगा कि कुछ कुरूप है; कुछ गंदा है, कुछ बुरा है बल्कि मैथुन की प्रतिमाओं को देखकर एक शांति, एक पवित्रता का अनुभव होगा, जो बड़ी हैरानी की बात है। वे प्रतिमाएं आध्यात्मिक सेक्स को जिन लोगों ने अनुभव किया था, उन शिल्पियों से निर्मित करवाई गई हैं।
उन प्रतिमाओं के चेहरों पर... आप एक सेक्स से भरे हुए आदमी को देखें, उसकी आंखें देखें, उसका चेहरा देखें, वह घिनौना, घबराने वाला कुरूप प्रतीत होगा। उसकी आंखों से एक झलक मिलती हुई मालूम होगी। जो घबराने वाली और डराने वाली होगी। प्यारे से प्यारे आदमी को, अपने निकटतम प्यारे से प्यारे व्यक्ति को भी स्त्री जब सेक्स से भरा हुआ पास आता हुआ देखती है तो उसे दुश्मन दिखाई पड़ता है, मित्र नहीं दिखाई पड़ता। प्यारी से प्यारी स्त्री को अगर कोई पुरुष अपने निकट सेक्स से भरा हुआ आता हुआ दिखाई देगा तो उसे भीतर नरक दिखाई पड़ेगा, स्वर्ग नहीं दिखाई पड़ सकता।
लेकिन खजुराहो की प्रतिमाओं को देखें तो उनके चेहरे को देखकर ऐसा लगता है, जैसे बुद्ध का चेहरा हो, महावीर का चेहरा हो, मैथुन की प्रतिमाओं और मैथुनरत जोड़े के चेहरे पर जो भाव हैं, वे समाधि के हैं और सारी प्रतिमाओं को देख लें और पीछे एक हल्की-सी शांति की झलक छूट जाएगी और कुछ भी नहीं। और एक आश्चर्य आपको अनुभव होगा।
आप सोचते होंगे कि नंगी तस्वीरें और मूर्तियां देखकर आपके भीतर कामुकता पैदा होगी, तो मैं आपसे कहता हूं, फिर आप देर न करें और सीधे खजुराहो चले जाएं। खजुराहो पृथ्वी पर इस समय अनूठी चीज है। आध्यात्मिक जगत में उससे उत्तम इस समय हमारे पास और कोई धरोहर उसके मुकाबले नहीं बची है।
लेकिन हमारे कई नीतिशास्त्री पुरुषोत्तमदास टंडन और उनके कुछ साथी इस सुझाव के थे कि खजुराहो के मंदिर पर मिट्टी छापकर दीवारें बंद कर देनी चाहिए, क्योंकि उनको देखने से वासना पैदा हो सकती है। मैं हैरान हो गया।
खजुराहो के मंदिर जिन्होंने बनाए थे, उनका ख्याल यह था कि इन प्रतिमाओं को अगर कोई बैठकर घंटेभर देखे तो वासना से शून्य हो जाएगा। वे प्रतिमाएं ऑब्जेक्ट फॉर मेडिटेशन रहीं। हजारों वर्षों तक वे प्रतिमाएं ध्यान के लिए ऑब्जेक्ट का काम करती रहीं। जो लोग अति कामुक थे, उन्हें खजुराहो के मंदिर के पास भेजकर उन पर ध्यान करवाने के लिए कहा जाता था कि तुम ध्यान करो, इन प्रतिमाओं को देखो और इनमें लीन हो जाओ।
अगर मैथुन की प्रतिमा को कोई घंटेभर तक शांत बैठकर ध्यानमग्न होकर देखे तो उसके भीतर जो मैथुन करने का पागल भाव है, वह विलीन हो जाता है।
खजुराहो के मंदिर या कोणार्क और पुरी के मंदिर जैसे मंदिर सारे देश के गांव-गांव में होने चाहिए। बाकी मंदिरों की कोई जरूरत नहीं है। वे बेवकूफी के सबूत हैं, उनमें कुछ नहीं है। उनमें न कोई वैज्ञानिकता है, न कोई अर्थ, न कोई प्रयोजन है। वे निपटगंवारी के सबूत हैं, लेकिन खजुराहो के मंदिर जरूर अर्थपूर्ण हैं।
जिस भी आदमी का मन सेक्स से बहुत भरा हो, वह जाकर इन पर ध्यान करे और वह हल्का लौटेगा, शांत लौटेगा। तंत्रों ने जरूर सेक्स को आध्यात्मिक बनाने की कोशिश की थी। लेकिन इस मुल्क के जो नीतिशास्त्री और मॉरल प्रीचर्स हैं, उन दुष्टों ने उनकी बात को समाज तक पहुंचने नहीं दिया। वे मेरी बात भी पहुंचने देना नहीं चाहते हैं। मेरा चारों तरफ विरोध का कोई और कारण थोड़े ही है। लेकिन मैं न इन राजनीतिज्ञों से डरता हूं और न इन नीतिशास्त्रियों से। जो सच है वो मैं कहता रहूंगा। उसकी चाहे मुझे कुछ भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।