लहरों की तरह आता है भय

मैं अकेला महसूस करता हूँ, जो कि ठीक है, लेकिन मैं भ्रमित हूँ। मैं नहीं जानता कि क्या हो रहा है। मेरे भीतर चीजें बदल रही हैं इसलिए कभी-कभी मैं आतंकित हो जाता हूँ, कभी-कभी अस्थिर अहसास होते हैं।

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यह स्वाभाविक है। जब कभी तुम आतंकित महसूस करो, बस विश्रांत हो जाओ। इस सत्य को स्वीकार लो कि भय यहां है, लेकिन उसके बारे में कुछ भी मत करो। उसकी उपेक्षा करो, उसे किसी प्रकार का ध्यान मत दो।

शरीर को देखो। वहां किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए। यदि शरीर में तनाव नहीं रहता तो भय स्वतः समाप्त हो जाता है। भय जड़ें जमाने के लिए शरीर में एक तरह की तनाव दशा बना देता है। यदि शरीर विश्रांत है, भय निश्चित ही समाप्त हो जाएगा।

विश्रांत व्यक्ति भयभीत नहीं हो सकता है। तुम एक विश्रांत व्यक्ति को भयभीत नहीं कर सकते। यदि भय आता भी है, वह लहर की तरह आता है...वह जड़ें नहीं जमाएगा।

भय लहरों की तरह आता है और जाता है और तुम उससे अछूते बनते रहते हो, यह सुंदर है। जब वह तुम्हारे भीतर जड़ें जमा लेता है और तुम्हारे भीतर विकसित होने लगता है, तब यह फोड़ा बन जाता है, कैंसर का फोड़ा। तब वह तुम्हारे अंतस की बनावट को अपाहिज कर देता है।

तो जब कभी तुम आतंकित महसूस करो, एक चीज देखने की होती है कि शरीर तनावग्रस्त नहीं होना चाहिए। जमीन पर लेट जाओ और विश्रांत होओ, विश्रांत होना भय की विनाशक औषधि है; और वह आएगा और चला जाएगा। तुम बस देखते हो।

देखने में पसंद या नापंसद नहीं होनी चाहिए। तुम बस स्वीकारते हो कि यह ठीक है। दिन गरम है; तुम क्या कर सकते हो? शरीर से पसीना छूट रहा है...तुम्हें इससे गुजरना है। शाम करीब आ रही है, और शीतल हवाएं बहनी शुरू हो जाएंगी...इसलिए बस देखो और विश्रांत होओ।

एक बार तुम्हें इसकी कला आ जाती है, और यह तुम्हारे पास बहुत शीघ्र ही होगी कि यदि तुम विश्रांत होते हो, भय तुम्हें पकड़ नहीं सकता कि यह आता है और जाता है और तुम्हें बगैर भयभीत किए छोड़ देता है; तब तुम्हारे पास कुंजी आ जाती है। और यह आएगी। यह आएगी क्योंकि जितने हम बदलते हैं, उतना ही अधिक भय आएगा।

हर बदलाव भय पैदा करता है, क्योंकि हर बदलाव तुम्हें अपरिचित में डाल देता है, अजनबी संसार में डाल देता है। यदि कुछ भी नहीं बदलता है और हर चीज स्थिर रहती है, तुम्हारे को कभी भी भय नहीं पकड़ेगा। इसका अर्थ होता है, यदि हर चीज मृत हो, तुम डरोगे नहीं।

उदाहरण के लिए, तुम नीचे बैठे हो और वहां नीचे चट्टान है। तो कोई समस्या नहीं है, तुम चट्टान की तरफ देखोगे, और हर चीज ठीक है। अचानक चट्टान चलने लगे; तो तुम भयभीत हो जाते हो। जीवंतता! गति भय पैदा करती है; और यदि हर चीज अडोल है, वहां कोई भय नहीं है।

इसी कारण लोग डरते हैं, भयपूर्ण स्थितियों में जाते डरते हैं, जीवन को ऐसा जीते हैं कि बदलाव ना आए। हर चीज वैसी की वैसी बने रहे और लोग मृत ढर्रों का पालन करते हैं, इस बात से पूरी तरह बेखबर कि जीवन प्रवाह है। वह अपने ही बनाए एकांत टापू पर बना रहता है जहां कुछ भी नहीं बदलता। वही कमरा, वही फोटो, वही फर्नीचर, वही घर, वही आदतें, वही चप्पलें, सब कुछ वही का वही। एक ही ब्रांड की सिगरेट; दूसरी ब्रांड तुम पसंद नहीं करोगे। इसके बीच, इस एकरसता के बीच तुम सहज महसूस करते हो।

लोग लगभग अपनी कब्रों में जीते हैं। जिसे तुम सुविधाजनक और आरामदायक जीवन कहते हो वह और कुछ नहीं बस सूक्ष्म कब्र है। इसलिए जब तुम बदलना शुरू करते हो, जब तुम अपने भीतर की यात्रा शुरू करते हो, जब तुम अपने अंतस के जगत के अंतरिक्ष यात्री बनते हो, और हर चीज इतनी तेज बदल रही है कि हर क्षण भय के साथ कंप रहा है। तो अधिक से अधिक भय देखना होगा।

उसे वहां बने रहने दो। धीरे-धीरे तुम बदलाव का मजा लेने लगोगे इतना कि तुम किसी भी कीमत पर इसके लिए तैयार होओगे। बदलाव तुम्हें जीवन शक्ति देगा...अधिक जीवंतता, जोश, ऊर्जा देगा। तब तुम कुंड की तरह नहीं होओगे; सब तरफ से बंद, कोई हलन-चलन नहीं। तुम नदी की तरह बन जाओगे अज्ञात की तरफ प्रवाहित, समुद्र की तरफ जहां नदी विशाल हो जाती है।


साभार : ओशो, बी रियालिस्टिक: प्लान फॉर ए मिरैकल
सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन

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