भगवान शंकर और देवी पार्वती के संवाद में प्रकट हुई यह 'गुरुगीता' समग्र 'स्कंदपुराण' का निष्कर्ष है। इसके हर एक श्लोक में सूतजी का सचोट अनुभव व्यक्त होता है। इस गुरुगीता का पाठ शत्रु का मुख बंद करने वाला है, गुणों की वृद्धि करने वाला है, दुष्कृत्यों का नाश करने वाला और सत्कर्म में सिद्धी देने वाला है। गुरुगीता के एक-एक अक्षर को मंत्रराज माना जाता है।
अन्य जो विविध मंत्र हैं वे इसका सोलहवाँ भाग भी नहीं। गुरुगीता अकाल मृत्यु को रोकती है, सब संकटों का नाश करती है, यक्ष, राक्षस, भूत, चोर आदि का विनाश करती है। पवित्र ज्ञानवान पुरुष इस गुरुगीता का जप-पाठ करते हैं। उनके दर्शन और स्पर्श से पुनर्जन्म नहीं होता।
इस गुरुगीता के श्लोक भवरोग निवारण के लिए अमोघ औषधि हैं। साधकों के लिए यह परम अमृत है। स्वर्ग का अमृत पीने से पुण्य क्षीण होते हैं। यह गीता का अमृत पीने से पाप नष्ट होकर परम शांति मिलती है, स्वस्वरूप का भान होता है।
॥ श्री गुरु चरित्रांतर्गत श्री गुरु गीता ॥
॥ श्री गणेशायनमः॥ श्री सरस्वत्यै नमः॥ श्री गुरुभ्योनमः॥