राधाजी का जन्मोत्सव

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कहा जाता है कि राधे का नाम लेने मात्र से ही कृष्ण की कृपा भक्तों पर हो जाती है। श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और इसके आसपास के क्षेत्र एक बार फिर सौंदर्य से परिपूर्ण हो गए हैं। जहाँ 15 दिन पहले भगवान कृष्ण के जन्म की धूम थी वहीं अब उनकी सखी और जीवनस्वरूपा राधाजी के जन्मोत्सव की तैयारियाँ पूर्ण हो गई हैं।

कृष्ण के बिना राधा और राधा के बिना कृष्ण का नाम अधूरा है। यही कारण है कि मथुरा हो या वृंदावन, गोकुल हो या बरसाना यहाँ जय श्रीकृष्ण से भी ज्यादा राधे-राधे का नाम जपा जाता है।

यहाँ लोग एक-दूसरे का अभिवादन राधे-राधे से करते हैं, तो वहीं गाड़ीवान भी भीड़ से रास्ता देने का अनुरोध राधे-राधे कहकर ही करते हैं। ये विचित्र संयोग है कि कृष्ण और राधाजी का जन्मोत्सव भादौ माह की अष्टमी तिथि को ही आता है। सिर्फ कृष्ण और शुक्ल पक्ष का अंतर है। पूरे मथुरा में 15 सितंबर को राधाष्टमी मनाई जा रही है। माना जाता है कि इस दिन राधाजी से माँगी गई हर मुराद पूरी होती है।

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पूर्णत्व का प्रतीक :- राधा नाम भक्ति, माधुर्य एवं रस का प्रतीक बना ऐसा नाम है जिसने यशोदानंदन को पूर्णत्व प्रदान किया है। यही कारण है कि ब्रज में राधाष्टमी की महिमा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से कम नहीं है। इस दौरान पूरा ब्रजमंडल राधामय हो जाता है।

राधाजी का जन्मोत्सव ठीक कृष्ण जन्मोत्सव की तरह ही मनाया जाता है। राधाजी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराया जाता है। नैवेद्यों के भोग के साथ ही श्रद्धालुओं के लिए राधारानी के दर्शनों की व्यवस्था की जाती है।

राधारानी के गाँव बरसाना में पिछले एक सितंबर से ही यहाँ के रहवासियों ने बधाई गाना प्रारंभ कर दिए हैं। सुबह चार बजे से छः बजे तक तथा सायं पाँच से छः बजे तक बधाई गीत गाने का सिलसिला चलता रहता है।

राधा-कृष्ण के प्रति यहाँ के रहवासियों की इस अनूठी भक्ति को देखकर यहाँ आने वाले पर्यटक भी अभिभूत हो जाते हैं। शायद यही भक्ति का असली रंग है जहाँ प्रभु के दिखाई न देने पर भी प्रभु के होने का आभास होता है।

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