हल षष्ठी पर माताएँ रखेंगी व्रत

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पुत्र के लंबी उम्र की कामना को लेकर 30 अगस्त को माताएँ हल षष्ठी का व्रत रखेंगी। इस दिन माताएँ दिन भर व्रत रखकर शाम को प्रसाद के रूप में पसहर चावल खाकर व्रत की पारणा करेंगी। इस दिन खास तौर पर गाय के दूध, दही और घी के बजाए भैंस का दूध दही और घी आदि का उपयोग करेंगी।

हरेली, नागपंचमी, रक्षाबंधन और भोजली का पर्व मनाने के बाद हल षष्ठी की तैयारी शुरू हो गई है। 30 अगस्त को पड़ने वाले इस लोक पर्व के लिए बाजार में जहाँ पसहर चावल बिकने लगा है, वहीं भैस के दूध, दही और घी की डिमांड आने लगी है।

पं. ब्रम्हदत्त मिश्र के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म वर्षा ऋतु के भाद्र कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हुआ था। बलराम का सबसे प्रमुख अस्त्र हल और मूसल है। इसके अलावा हल को कृषिप्रधान भारत का प्राणतत्व माना गया है और कृषि से ही मानव जाति का कल्याण है। यही कारण है कि इस दिन माताएँ हल षष्ठी का व्रत रखती हैं।

इस दिन घर के आँगन में तालाब बनाकर, उसमे झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाते हैं। इस तालाब के चारों ओर आसपास की महिलाएँ विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर हल षष्ठी की कथा सुनती हैं। इस दिन महिलाएँ हल से जुताई की गई जमीन का अन्न ग्रहण नहीं करतीं, वहीं गाय का दूध, दही और घी का प्रयोग भी वर्जित है।

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हल षष्ठी पूजन के बाद घर आकर पसहर चावल और मुनगे की भाजी के साथ सात अन्य प्रकार की भाजी ग्रहण कर व्रत की पारणा किया जाता है। इस भोजन में माताएँ भैंस के दही और घी का प्रयोग करती हैं। वहीं चाय भी भैंस के दूध से बनी हुई ग्रहण करती हैं।

हल षष्ठी पर्व मनाने में भैंस के दूध, दही और घी का विशेष महत्व है। हल षष्ठी में पसहर चावल की सबसे ज्यादा माँग रहती है, क्योंकि इस दिन माताएँ पसहर को प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करती हैं। इन दिनों पसहर चावल 40 रुपए से 60 रुपए प्रति किलो बिक रहा है।

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