इस बार आंवला नवमी पर्व (Amla Navmi 2021) 13 नवंबर 2021 को मनाया जा रहा है। प्रतिवर्ष आने वाली कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी कहा जाता है। अक्षय नवमी का शास्त्रों में वही महत्व बताया गया है जो वैशाख मास की तृतीया का है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के दिन किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है। इस दिन जो भी शुभ कार्य जैसे दान, पूजा, भक्ति, सेवा किया जाता है उनका पुण्य कई-कई जन्म तक प्राप्त होता है। इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और खाना खाने से कष्ट दूर हो जाते हैं। आंवले के पेड़ की पूजा और इसके नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरुआत करने वाली माता लक्ष्मी मानी जाती हैं।
देवी लक्ष्मी की कथा Amla Navmi Katha- इस संदर्भ में कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आईं। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी एवं बेल का गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को। आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की वृक्ष की पूजा की।
Amla Navmi Pujan अक्षय नवमी के दिन इस आसान विधि से करें पूजन-
शास्त्रों में आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान बताया गया है। अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिव जी का निवास होता है। इसलिए अक्षय नवमी के दिन प्रातः उठकर आंवले के वृक्ष के नीचे साफ-सफाई करनी चाहिए। आंवले के वृक्ष की पूजा दूध, फूल एवं धूप से करनी चाहिए।
इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर ब्राह्मणों को खिलाना चाहिए, इसके बाद स्वयं भोजन करने की मान्यता है। इस दिन भोजन के समय पूर्व दिशा की ओर मुंह रखें। इस संबंध में यह भी मान्यता है कि भोजन के समय अगर थाली में आंवले का पत्ता गिरे तो यह बहुत ही शुभ होता है। थाली में आंवले का पत्ता गिरने से यह माना जाता है कि आने वाले साल में व्यक्ति की सेहत अच्छी रहेगी।
अक्षय या आंवला नवमी के दिन आंवला प्रसाद के रूप में भी खाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन द्वापर युग का प्रारंभ माना जाता है, जहां भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में श्री कृष्ण ने जन्म लिया था।