आषाढ़ माह का आशा दशमी व्रत आज, जानें राजा नल व दमयंती की कथा और पूजन विधि

WD Feature Desk

शनिवार, 5 जुलाई 2025 (09:45 IST)
Asha Dashmi Vrat 2025: हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आशा दशमी पर्व मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह पर्व 05 जुलाई, दिन शनिवार को मनाया जा रहा है। यह व्रत हिन्दू धर्म में चंद्र माह की शुक्ल दशमी तिथि पर मनाया जाता है। मुख्यतः यह आषाढ़ मास में, लेकिन भारत के कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कार्तिक में भी मनाया जाता है। इस दिन आशा दशमी की पौराणिक व्रत कथा सुनने तथा पढ़ने का विशेष महत्व है। इस कथा का संबंध राजा नल तथा दमयंती से जुड़ा हुआ है। आइए यहां जानते हैं आशा दशमी पर्व की कथा और पूजन की विधि के बारे में खास जानकारी... ALSO READ: क्या 12 ही महीने बर्फ से ढका रहता है बाबा अमरनाथ का शिवलिंग? जानिए हिम शिवलिंग के रहस्य
 
आशा दशमी व्रत की पौराणिक कथा: 
 
इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में निषध देश में नल नामक एक राजा राज्य करता था। उनके भाई पुष्कर ने द्यूत में जब उन्हें पराजित कर दिया, तब नल अपनी भार्या दमयंती के साथ राज्य से बाहर चले गए। वे प्रतिदिन एक वन से दूसरे वन भ्रमण करते रहते थे तथा केवल जल ग्रहण करके अपना जीवन-निर्वाह करते थे और जनशून्य भयंकर वनों में घूमते रहते थे। एक बार राजा ने वन में स्वर्ण-सी कांति वाले कुछ पक्षियों को देखा। उन्हें पकड़ने की इच्छा से राजा ने उनके ऊपर वस्त्र फैलाया, परंतु वे सभी वस्त्र को लेकर आकाश में उड़ गए। इससे राजा बड़े दु:खी हो गए। वे दमयंती को गहरी निद्रा में देखकर उसे उसी स्थिति में छोड़कर वहां से चले गए।
 
जब दमयंती निद्रा से जागी, तो उसने देखा कि राजा नल वहां नहीं हैं। राजा को वहां न पाकर वह उस घोर वन में हाहाकार करते हुए रोने लगी। महान दु:ख और शोक से संतप्त होकर वह नल के दर्शन की इच्छा से इधर-उधर भटकने लगी। इसी प्रकार कई दिन बीत गए और भटकते हुए वह चेदी देश में पहुंची। दमयंती वहां उन्मत्त-सी रहने लगी। वहां के छोटे-छोटे शिशु उसे इस अवस्था में देख कौतुकवश घेरे रहते थे।
 
एक बार कई लोगों में घिरी हुई दमयंती को चेदी देश की राजमाता ने देखा। उस समय दमयंती चंद्रमा की रेखा के समान भूमि पर पड़ी हुई थी। उसका मुखमंडल प्रकाशित था। राजमाता ने उसे अपने भवन में बुलाया और पूछा- तुम कौन हो? इस पर दमयंती ने लज्जित होते हुए कहा- मैं विवाहित स्त्री हूं। मैं न किसी के चरण धोती हूं और न किसी का उच्छिष्ट भोजन करती हूं। यहां रहते हुए कोई मुझे प्राप्त करेगा तो वह आपके द्वारा दंडनीय होगा। देवी, इसी प्रतिज्ञा के साथ मैं यहां रह सकती हूं।
 
राजमाता ने कहा- ठीक है, ऐसा ही होगा। तब दमयंती ने वहां रहना स्वीकार किया। इसी प्रकार कुछ समय व्यतीत हुआ। फिर एक ब्राह्मण दमयंती को उसके माता-पिता के घर ले आया किंतु माता-पिता तथा भाइयों का स्नेह पाने पर भी पति के बिना वह बहुत दुःखी रहती थी। एक बार दमयंती ने एक श्रेष्ठ ब्राह्मण को बुलाकर उससे पूछा- 'हे ब्राह्मण देवता! आप कोई ऐसा दान एवं व्रत बताएं जिससे मेरे पति मुझे प्राप्त हो जाएं।' 
 
इस पर उस ब्राह्मण ने कहा- 'तुम मनोवांछित सिद्धि प्रदान करने वाले आशा दशमी व्रत को करो, तुम्हारे सारे दु:ख दूर होंगे तथा तुम्हें अपना खोया पति वापस मिल जाएगा।' तब दमयंती ने 'आशा दशमी' व्रत का अनुष्ठान किया और इस व्रत के प्रभाव से दमयंती ने अपने पति को पुन: प्राप्त किया।
 
आशा दशमी व्रत के इस अवसर पर 10 आशा देवियों की पूजा की जाती है यानी आशा दशमी पर 10 आशा देवियों (ऐन्द्री, आग्रेयी, याम्या, नैऋति, वारुणी, वाल्व्या, सौम्या, ऐशनी, अध्: और ब्राह्मी) की पूजा की जाती है। ये दसों दिशाओं की अधिष्ठात्री देवियां मानी जाती हैं। यह व्रत छह महीने, एक वर्ष या दो वर्ष के लिए किया जा सकता है, जब तक मनोकामना पूर्ण न हो जाए। मनोकामना पूर्ण होने पर व्रत का उद्यापन किया जाता है।ALSO READ: आशा दशमी पर्व क्या है, क्यों मनाया जाता है, जानें, महत्व और पूजन के शुभ मुहूर्त
 
आशा दशमी व्रत की पूजा विधि: 
 
- व्रत रखने वाले व्यक्ति को दशमी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए।
 
- पूजा स्थान को शुद्ध करके माता पार्वती की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
 
- रात्रि में, अपने घर के आंगन में या पूजा स्थान पर दसों दिशाओं के प्रतीक रूप में चित्रों या प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है।
 
- फूल, रोली, चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य में फल, मिठाई आदि से दसों आशा देवियों की विधिवत पूजा करें।
 
- दसों दिशाओं में घी के दीपक जलाए जाते हैं।
 
- अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हुए इस मंत्र का जाप करें: 'आशाश्रचशा: सदा सन्तु सिद्धय्नताम मे मनोरथा: भवतिनाम प्रसादेन सदा कल्याणमसित्व्ती।' (अर्थात्: हे आशा देवियों, मेरी आशाएं सदा सफल हों, मेरे मनोरथ पूर्ण हों, आपके अनुग्रह से मेरा सदा कल्याण हो।)
 
- पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करें और ब्राह्मण को दक्षिणा प्रदान करें।
 
आशा दशमी का व्रत मन को शुद्ध करता है और व्यक्ति को सकारात्मकता के साथ अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है।
 
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