इस त्योहार के 10 दिन पहले ही डंडा नृत्य करने वाले लोग आसपास के गांवों में नृत्य करने जाते हैं। वहां उन्हें बड़ी मात्रा में धान व नगद रुपए मिल जाते हैं। इस त्योहार के दिन कामकाज पूरी तरह बंद रहता है। इस दिन लोग प्रायः गांव छोड़कर बाहर नहीं जाते। इस दिन अन्नपूर्णा देवी तथा मां शाकंभरी देवी की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो भी बच्चों को अन्न का दान करते हैं, वह मृत्यु लोक के सारे बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इसके अलावा छेर-छेरा के दिन कई लोग खीर और खिचड़ा का भंडारा रखते हैं, जिसमें हजारों लोग प्रसाद ग्रहण कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। आज के दिन द्वार-द्वार पर 'छेरछेरा, कोठी के धान ल हेरहेरा' की गूंज सुनाई देती है। इस पर्व पर मुर्रा, लाई और तिल के लड्डू समेत कई चीजों की जमकर बिक्री होती है। इस दिन सभी घरों में आलू चाप, भजिया तथा अन्य व्यंजन बनाया जाता है।