Gauri tritiya vrat katha: शिव एवं देवी पार्वती की की कृपा प्राप्त करने के लिए माघ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन गौरी तृतीया व्रत का पालन किया जाता है। इस दिन विधिवत रूप से व्रत रखकर पूजा करने और कथा सुनने से माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह सौभाग्य वृद्धिदायक व्रत कहा गया है। इस व्रत को करने से सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
गौरी तृतीया की कथा- gauri tritiya vrat katha :
माता पर्वती के अनेकों नाम हैं जिसमें से गौरी भी उन्हीं का एक नाम है। राजा दक्ष को पुत्री रुप में सती की प्राप्ति होती है। सती जब अग्नि में कूद कर आत्मदाह कर लेती हैं तब वे हिमालय के यहां पर्वती के रूप में जन्म लेकर भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए तप करती हैं। भगवान शिव को पाने हेतु जो तप और जप किया उसका फल उन्हें प्राप्त हुआ। शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को भगवान शंकर के साथ देवी सती विवाह होता है। अतः माघ शुक्ल तृतीया के दिन उत्तम सौभाग्य की कृपा प्राप्त करने के लिए यह व्रत किया जाता है। यह व्रत सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला है।