माता पार्वतीजी ने भगवान शिवजी को अपना पति मन ही मन मान लिया था। उनके पिता हिमालय उनका विवाह भगवान विष्णु से करना चाहते थे, परन्तु माता को यह पसंद नहीं था। अत: माता ने अपनी सखी के साथ घोर वन में जाकर तप किया, जिस दिन यह व्रत पूर्ण हुआ उस दिन भाद्र शुक्लपक्ष की तीज तिथि थी व हस्त नक्षत्र था, शिवजी ने प्रसन्न होकर माता को वरदान दिया व अपनी अर्धांगिनी बनाया।