Sankashti Chaturthi 2021: कब है संकष्टी चतुर्थी, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजन विधि एवं महत्व
मार्गशीर्ष यानी अगहन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली संकष्टी चतुर्थी Sankashti Chaturthi 2021 को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह तिथि मंगलवार, 23 नवंबर 2021 को पड़ रही है।
महत्व- हर माह आने वाली कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को चतुर्थी व्रत किया जाता है। पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।
यह भगवान गणेश की तिथि है, अत: इस दिन उनका विधि-विधान से पूजा करके उन्हें प्रसन्न किया जाता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करने से पहले भगवान श्री गणेश का आह्वान किया जाता है, क्योंकि श्री गणेश प्रथम पूज्य देवता माने गए हैं। ये बुद्धि के देवता भी है।
भविष्य पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी की पूजा और व्रत करने से हर तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। गणेश पुराण के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से सौभाग्य, समृद्धि और संतान सुख मिलता है। आइए जानें संकष्टी चतुर्थी का महत्व, पूजन के शुभ मुहूर्त एवं पूजन विधि-
संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त-
इस बार संकष्टी चतुर्थी तिथि का प्रारंभ सोमवार, 22 नवंबर को रात 10.27 मिनट से हो रहा है और यह तिथि मंगलवार को 23 नवंबर को मध्यरात्रि 12.55 मिनट पर समाप्त होगी। इस बार चंद्रोदय का समय रात 08.29 मिनट पर होगा।
आसान पूजा विधि-
श्री गणेश चतुर्थी पर सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं।
इसके बाद घर के मंदिर में गणेश प्रतिमा को गंगा जल और शहद से स्वच्छ करें।
सिंदूर, दूर्वा, फूल, चावल, फल, जनेऊ, प्रसाद आदि चीजें एकत्रित करें।
धूप-दीप जलाएं।
'ॐ गं गणपते नमः मंत्र का जाप करते हुए पूजा करें। मंत्र जाप 108 बार करें।
गणेश जी के सामने व्रत करने का संकल्प लें और पूरे दिन अन्न ग्रहण न करें। व्रत में फलाहार, पानी, दूध, फलों का रस आदि चीजों का सेवन किया जा सकता है।
गणपति की स्थापना के बाद इस तरह पूजन करें-
- सबसे पहले घी का दीपक जलाएं। इसके बाद पूजा का संकल्प लें।
- फिर गणेश जी का ध्यान करने के बाद उनका आह्वन करें।
- इसके बाद गणेश को स्नान कराएं। सबसे पहले जल से, फिर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) और पुन: शुद्ध जल से स्नान कराएं।
- गणेश के मंत्र व चालीसा और स्तोत्र आदि का वाचन करें।
- अब गणेश जी को वस्त्र चढ़ाएं। अगर वस्त्र नहीं हैं तो आप उन्हें एक नाड़ा भी अर्पित कर सकते हैं।
- इसके बाद गणपति की प्रतिमा पर सिंदूर, चंदन, फूल और फूलों की माला अर्पित करें।
- अब बप्पा को मनमोहक सुगंध वाली धूप दिखाएं।
- अब एक दूसरा दीपक जलाकर गणपति की प्रतिमा को दिखाकर हाथ धो लें। हाथ पोंछने के लिए नए कपड़े का इस्तेमाल करें।
- अब नैवेद्य चढ़ाएं। नैवेद्य में मोदक, मिठाई, गुड़ और फल शामिल हैं।
- इसके बाद गणपति को नारियल और दक्षिण प्रदान करें।
- आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की शुभ चतुर्थी की कथा करें।
- अब अपने परिवार के साथ गणपति की आरती करें। गणेश जी की आरती कपूर के साथ घी में डूबी हुई एक या तीन या इससे अधिक बत्तियां बनाकर की जाती है।
- इसके बाद हाथों में फूल लेकर गणपति के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करें।
- अब गणपति की परिक्रमा करें। ध्यान रहे कि गणपति की परिक्रमा एक बार ही की जाती है।
- इसके बाद गणपति से किसी भी तरह की भूल-चूक के लिए माफी मांगें।
- पूजा के अंत में साष्टांग प्रणाम करें।
- पूजा के बाद घर के आसपास जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करें।
- गाय को रोटी या हरी घास दें। किसी गौशाला में धन का दान भी कर सकते हैं।
- रात को चंद्रमा की पूजा और दर्शन करने के बाद यह व्रत खोलना चाहिए।
- शाम को चंद्रमा निकलने से पहले गणपति जी की एक बार और पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा का फिर से पाठ करें। अब व्रत का पारण करें।