2. पूजा के स्थल को गोबर से लीपकर तथा कलश में तांबा इत्यादि डालकर उसमें अष्टदल कमल बनाना चाहिए। अष्टदल कमल पर सिंह, भगवान नृसिंह तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए। इसके बाद वेदमंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा करना चाहिए।
3. फिर इसके बाद भगवान नृसिंहदेव की षोडशोपचार पूजा करना चाहिए।
4. इस दिन व्रत रखकर उसका कड़ाई से पालन करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना, क्रोध, लोभ, मोह, झूठ, कुसंग तथा पापाचार का त्याग करना चाहिए।
5. पूजा के तत्पश्चात निम्न मंत्र बोले:-
नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे।
उपवासं करिष्यामि सर्वभोगविवर्जितः॥
इस मंत्र के साथ दोपहर के समय क्रमशः तिल, गोमूत्र, मृत्तिका और आंवला मलकर पृथक-पृथक चार बार स्नान करें। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए।
6. रात्रि में कथा श्रवण, हरि संकीर्तन, भजन आदि करके जागरण करें।
7. दूसरे दिन फिर पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराएं। व्रत के पारण के समय व्रती को अपनी सामर्थ के अनुसार भू, गौ, तिल, स्वर्ण तथा वस्त्रादि का दान देना चाहिए।