प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनके साथ माता सीता भी वनवास में गई थी। वनवास के दौरान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मणजी चित्रकूणट के पास अत्री ऋषि और सती अनुसुइया के आश्रम में रुके थे। वहां पर माता अनुसूइया और सीता का मिलन (Sati Anusuya Sita milan) हुआ। ऐसा कहा जाता है कि माता अनुसूइया ने माता सीता के त्याग से प्रसन्न होकर उन्हें दिव्य आभूषण और वस्त्र दिए थे। इसके बाद सीता जी को पत्नी धर्म का भी उपदेश दिया था।
कहते हैं कि उन्हें जो दिव्य आभूषण और वस्त्र दिए थे, वो न कभी गंदे हुए न ही फटे। जब माता सीता का रावण ने हरण कर लिया था तो वही आभूषण माता सीता यान से नीचे फेंकती रही। इन्हीं आभूषणों को पाकर ही श्रीराम यह जान पाए थे कि सीता को रावण किस दिशा में ले गया था। माता सीने ने ये आभूषण अपने पल्लू में बांध रखे थे। उन्हें एक एक करके नीचे फेका था। यह आभूषण वानर राज सुग्रीव को मिले और उन्होंने आभूषणों को संभालकर रख लिया और फिर जब राम जी से उनका मिलना हुआ तो ये आभूषण श्री राम को दिखाए थे और इसी आधार पर लंका पर चढ़ाई की रणनीति बनाई थी।