पोंगल की 5 पौराणिक परंपराएं, पकवान और प्रामाणिक कथा
शनिवार, 7 जनवरी 2023 (15:28 IST)
हिन्दू त्योहार पोंगल मकर संक्रांति के आसपास ही आता है। इस बार यह पर्व मकर संक्रांति यानी की 15 जनवरी 2023 रविवार को मनाया जाएगा। वैसे तो संपूर्ण दक्षिण भारत में ही पोंगल मनाया जाता है लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रचलन तमिलनाडु में है। पोंगल तमिलनाडु का प्रमुख पर्व है अत: इसे पारंपरिक रूप से चार दिनों तक मनाया जाता है। चार दिनों के इस उत्सव में 5 परंपराओं का निर्वहन करते हैं।
पोंगल का महत्व : जिस प्रकार उत्तर भारत में नववर्ष की शुरुआत चैत्र प्रतिपदा से होती है उसी प्रकार दक्षिण भारत में सूर्य के उत्तरायण होने वाले दिन पोंगल से ही नववर्ष का आरंभ माना जाता है। इस त्योहार पर गाय के दूध के उफान को बहुत महत्व दिया जाता है। इसका कारण है कि जिस प्रकार दूध का उफान शुद्ध और शुभ है उसी प्रकार प्रत्येक प्राणी का मन भी शुद्ध संस्कारों से उज्ज्वल होना चाहिए। इसीलिए नए बर्तनों में दूध उबाला जाता है। दक्षिण भारत में धान की फसल समेटने के बाद लोग खुशी प्रकट करने के लिए पोंगल का त्योहार मनाते हैं और भगवान से आगामी फसल के अच्छे होने की प्रार्थना करते हैं। समृद्धि लाने के लिए वर्षा, धूप, सूर्य, इन्द्रदेव तथा खेतिहर मवेशियों की पूजा और आराधना की जाती है।
1. भोगी : पोंगल के पहले दिन को 'भोगी' के रूप में जाना जाता है और यह बारिश के देवता इंद्र को समर्पित है। पहले दिन कूड़ा-करकट एकत्र कर जलाया जाता है।
2. थाई पोंगल : पोंगल के दूसरे दिन को 'थाई पोंगल' के रूप में जाना जाता है, जो सूर्य देवता को मनाता है। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है।
3. मट्टू पोंगल : पोंगल के तीसरे दिन को 'मट्टू पोंगल' के नाम से जाना जाता है। मट्टू अर्थात नंदी या बैल की पूजा की जाती है। इस दिन, पशुधन, गायों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है। यह दिन फसलों के उत्पादन में मदद करने वाले खेत, जानवरों को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है।
4. कन्नुम : पोंगल का चौथा दिन 'कन्नुम/कानू' होता है, इस दिन, हल्दी के पत्ते पर सुपारी, गन्ने के साथ बचा हुआ पोंगल पकवान खुले में रखा जाता है। इसे कन्या पोंगल भी कहते हैं। इस दिन क्या पूजा की जाती है जो काली मंदिर में बड़े धूमधाम से की जाती है।
5. पोही : पोंगल के पहले अमावस्या को लोग बुरी रीतियों का त्यागकर अच्छी चीजों को ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करते हैं। यह कार्य 'पोही' कहलाता है तथा जिसका अर्थ है- 'जाने वाली।' पोंगल का तमिल में अर्थ उफान या विप्लव होता है। पोही के अगले दिन अर्थात प्रतिपदा को दिवाली की तरह पोंगल की धूम मच जाती है।
पोंगल के पकवान : पोंगल अर्थात खिचड़ी का त्योहार सूर्य के उत्तरायण होने के पुण्यकाल में मनाया जाता है। इस दिन खिचड़ी बनाकर उसी का भोग लगाकर उसे खाया जाता है। इस दिन विशेष तौर पर खीर बनाई जाती है। इस दिन मिठाई और मसालेदार पोंगल व्यंजन तैयार करते हैं। चावल, दूध, घी, शकर से भोजन तैयार कर सूर्यदेव को भोग लगाते हैं।
पोंगल की पौराणिक कथा : कथानुसार शिव अपने बैल वसव को धरती पर जाकर संदेश देने के लिए कहते हैं कि मनुष्यों से कहो कि वे प्रतिदिन तेल लगाकर नहाएं और माह में 1 दिन ही भोजन करें। वसव धरती पर जाकर उल्टा ही संदेश दे देता है। इससे क्रोधित होकर शिव शाप देते हैं कि जाओ, आज से तुम धरती पर मनुष्यों की कृषि में सहयोग दोगे।
एक अन्य कथा इन्द्र और कृष्ण से जुड़ी है। गोवर्धन पर्वत उठाने के बाद ग्वाले फिर से अपनी नगरी को बसाने और बैलों के साथ फिर से फसल उगाही का कार्य करते हैं। यह भी मान्यता है कि प्राचीनकाल में द्रविण शस्य उत्सव के रूप में इस पर्व को मनाया जाता था। यह भी कहा जाता है कि यह पर्व मदुरै के पति-पत्नी कण्णगी और कोवलन की कथा से जुड़ा है।