अद्भुत प्रयोग है उपवास

- डॉ. नारायण तिवारी

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लोक में धर्मानुशासन, लौकिक उत्थान और मोक्ष प्राप्ति के लिए जो जीवनशैली हिन्दू धर्म के नाम से सर्वज्ञात है, मूलतः तो वो सनातन धर्म है। सनातन शब्द का सीधा-सरल अर्थ है जो सर्वकालिक है, कल भी था और कल भी विद्यमान रहेगा। उसका कोई आदि-अंत काल निर्णय नहीं है। वो तो सृष्टि सृजन के पूर्व भी था और महाप्रलय के बाद भी सुरक्षित बना रहेगा। इस जीवन पद्धति में दया, दान, अहिंसा, परोपकार, त्याग, प्रेम, सहिष्णुता, वसुधैव कुटुम्बकम्‌ जैसे कालजयी मूल्य तो हैं ही, व्रत और उपवास इसका अभिन्न अंग हैं।

व्रत का सीधा अर्थ है, संयमपूर्वक कुछ करने या न करने का निश्चय करना। जो मनो-निग्रह की पहली सीढ़ी है। जिस जीवन में श्रेष्ठ करने और अधम से बचने का व्रत न हो, तो वह जीवन स्वरूप से मनुष्य का होकर भी इच्छाओं और कामनाओं से संचालित होने वाला पशुवत जीवन ही है।

'उपवास' शब्द का रूढ़ अर्थ तो भोजन त्याग से ले लिया गया है, जबकि उसका शाब्दिक अर्थ है 'पास बैठना'। किसके, स्वयं के भी और प्रकृति या परमेश्वर, जिसमें आपकी रुचि हो। अद्भुत प्रयोग है उपवास।

आज की इस केवल प्रतियोगिता एवं येन-केन-प्रकारेण जीत जाने की कुंठाग्रस्त जीवनशैली में हम यदि ईमानदारी से विचार करें तो कब हम खुद अपने पास बैठते हैं, अपने लिए समय निकालते हैं और जब इस मृगतृष्णा से थककर, ऊबकर, खीजकर, हम हमारे लिए समय निकालते हैं, तब तक देर हो चुकी होती है।

इसलिए भारतीय मनीषियों, ऋषियों, धर्माचार्यों ने एक पखवाड़े में एक दिन व्रत श्रेष्ठ एकादशी का प्रावधान किया है।