देवउठनी ग्यारस : घर-घर में जागेंगे देव

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दीपावली पर्व के बारह दिन बाद देवउठनी एकादशी का पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। गृहस्थ लोग घरों में देवों की पूजा-अर्चना कर उन्हें नींद से जगाते हैं। यह पर्व 29 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इसके लिए घर-घर में व्यापक तैयारियाँ शुरू कर दी गई हैं।

एकादशी पूजन के लिए गन्ना, बेर, सिंघाड़े और मूली जगह-जगह दिखाई देने लगी है। वैसे तो तुलसी विवाह के बाद शादी समारोह शुरू हो जाते हैं, लेकिन इस बार शुभ लग्न न होने की वजह से विवाह कार्यक्रम 26 नवंबर से ही शुरू हो पाएँगे।

ऐसे करें पूजन:- देवउठनी ग्यारस के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। इस दिन घर के दरवाजे को पानी से स्वच्छ करना चाहिए, फिर चूने व गेरू से देवा बनाने चाहिए। उसके ऊपर गन्ने का मंडप सजाने के बाद देवताओं की स्थापना करना चाहिए। भगवान विष्णु का गु़ड़, रूई, रोली, अक्षत, चावल, पुष्प रखना चाहिए।

पूजन में दीप जलाकर देव उठने का उत्सव मनाते हुए 'उठो देव बैठो देव' का गीत गाना चाहिए। पं. बालकृष्ण त्रिवेदी के अनुसार देव उठनी ग्यारस देव प्रबोध उत्सव और तुलसी के विवाह को देवउठनी ग्यारस कहते हैं।

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इसलिए मनाते हैं देवउठनी एकादशी :- भगवान विष्णु व जलंधर के बीच युद्ध होता है। जलंधर की पत्नी तुलसी पतिव्रता रहती हैं। इसके कारण विष्णु जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। जलंधर को पराजित करने के लिए भगवान युक्ति के तहत जालंधर का रूप धारण कर तुलसी का सतीत्व भंग करने पहुँच गए। तुलसी का सतीत्व भंग होते ही भगवान विष्णु जलंधर को युद्ध में पराजित कर देते हैं। युद्ध में जलंधर मारा जाता है।

भगवान विष्णु तुलसी को वरदान देते हैं कि वे उनके साथ पूजी जाएँगी। एक अन्य कथा के अनुसार गंगा राधा को जड़त्व रूप हो जाने व राधा को गंगा के जल रूप हो जाने का शाप देती हैं। राधा व गंगा दोनों ने भगवान कृष्ण को पाषाण रूप हो जाने का शाप दे दिया। इसके कारण ही राधा तुलसी, गंगा नदी व कृष्ण सालिगराम के रूप में प्रसिद्ध हुए। प्रबोधिनी एकादशी के दिन सालिगराम, तुलसी व शंख का पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।

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