देवी महालक्ष्मी का पर्व

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मंगलवार से महाराष्ट्रीयन परिवारों में तीन दिवसीय महालक्ष्मी पर्व शुरू हो गया। समाजजनों ने बड़े उत्साह से देवी महालक्ष्मी की स्थापना की। आरती के समय झाँज-मंजीरे की ध्वनि सुनाई देगी तो कहीं शंख ध्वनि से वातावरण गुँजायमान होगा। लोग 'घर-घर साजे, लक्ष्मी विराजे' की कामना करेंगे।

गणेश स्थापना के बाद महाराष्ट्रीयन परिवारों में महालक्ष्मी पर्व की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। देवी महालक्ष्मी की स्थापना का तीन दिवसीय उत्सव खुशी के साथ मनाया जाता है, जिसमें प्रथम दिन स्थापना की जाती है। द्वितीय दिवस महालक्ष्मी को पकवानों का भोजन परोसा जाता है। तृतीय दिवस विसर्जन का होता है।

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महालक्ष्मी की मूर्ति कई प्रकार से बनाई जाती है। किसी-किसी के यहाँ तो पीतल के मुखौटों को कोठी में स्थापित किया जाता है तो कोई कागज की महालक्ष्मी बनाकर स्थापना करता है। किसी घर में पाषाण को महालक्ष्मी का रूप देकर पूजन कर देवी स्थापना की जाती है।

महाराष्ट्रीयन समाज में महालक्ष्मी स्थापना का पर्व बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। विधिवत महालक्ष्मी उपासना की जाती है। कुछ परिवारों में ज्येष्ठ व कनिष्ठ दो गौरी स्थापित की जाती हैं। उन्हें मंगलसूत्र, साड़ी अथवा सोलह हाथ की साड़ी (लुगड़ा) पहनाई जाती है। देवी का आकर्षक श्रृंगार होता है। रांगोली बनाई जाती है। देवी के आह्वान अवसर पर पूरे घरों में रांगोली व रोली से पैरों के छापे माँडे जाते हैं। देवी महालक्ष्मी को संपूर्ण घर का अवलोकन करवाया जाता है।

पर्व के दूसरे दिन विशेष पूजन होता है। 16 चटनी, 16 रायते आदि परोसे जाते हैं। देवी को 16 प्रकार की मिठाइयाँ भी अर्पित की जाती हैं। इसमें पूरण पोळी का भोग लगाया जाता है। कुछ परिवारों में महालक्ष्मी को दूध-पोहे का नैवेद्य भी चढ़ाया जाता है।

सुहागिन महिलाओं को भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता हैं। ब्राह्मण आमंत्रित किए जाते हैं और सुख-समृद्घि की कामना की जाती है। फिर तीसरे दिन पूरी श्रद्धा के साथ महालक्ष्मी का विसर्जन किया जाता है।

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