शनैश्चर जयंती

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नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।
छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌

भगवान शनिदेव का जन्म वैशाख अमावस्या को दिन में बारह बजे माना गया। इसीलिए वैशाख अमावस्या का दिन शनैश्चर जयंती के रूप में मनाया जाता है। शनि मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है। शनि के अधिदेवता प्रजापिता ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण, वाहन गिद्ध तथा रथ लोहे का बना हुआ है। ये एक-एक राशि में तीस-तीस महीने रहते हैं। शनि भगवान सूर्य तथा छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं। ये क्रूर ग्रह माने जाते हैं।

शनैश्चर जयंती पर क्या करें-
* इस दिन प्रातः नित्यकर्म से निवृत्त होकर शुद्ध जल से स्नान करें।
* तत्पश्चात पीपल के वृक्ष पर जल अर्पण करें।
* मंदिर में जाकर लोहे से बनी शनि देवता की मूर्ति का मंत्रोपचार द्वारा महाभिषेक करें।
* फिर इस मूर्ति को चावलों से बनाए चौबीस दल के कमल पर स्थापित करें।
* इसके बाद काले तिल, काली उड़द, फूल, धूप व तेल आदि से पूजा करें।
  भगवान शनिदेव का जन्म वैशाख अमावस्या को दिन में बारह बजे माना गया। इसीलिए वैशाख अमावस्या का दिन शनैश्चर जयंती के रूप में मनाया जाता है। शनि मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है।      

* शनिदेव को काला वस्त्र व लोहे की वस्तु अर्पित करें।
* पूजन के दौरान शनि के निम्न दस नामों का उच्चारण करें- कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रोतको, बभ्रु, मंद, शनैश्चर।
* दिन में 12 बजे महाआरती कर प्रसाद का वितरण करें।
* पूजन के बाद पीपल के वृक्ष के तने पर सूत के धागे से सात परिक्रमा करें।

इसके पश्चात निम्न मंत्र से शनिदेव की प्रार्थना करें-

शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्ते त्वथ राहवे।
केतवे अथ नमस्तुभ्यं सर्वशांतिप्रदो भव॥

फिर अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार उचित ब्राह्मणों को भोजन कराकर लौह वस्तु धन आदि का दान अवश्य करें।

अगर मंदिर जाना संभव न हो तो घर पर ही शनिदेव का स्मरण कर शनि चालीसा का पाठ करें। इसके बाद शनि की आरती करें।

शनिदेव की पूजा से पूर्व अगर हनुमानजी की आराधना की जाए तो शनिदेव प्रसन्न होते हैं।

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॥शनैश्चरस्तोत्रम्‌॥
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