'सर्वं शिवमयं जगत।'

- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे

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वस्तुतः शिव एक परम सत्ता का नाम है, इसलिए तो कहा जाता है 'सत्यम्‌-शिवम्‌-सुंदरम्‌।' वास्तव में शिव जगत के कल्याणकारी तत्व हैं। 'सर्वं शिवमयं जगत।'

शिव सर्वव्यापी हैं व सभी प्राणियों में समभाव से स्थित हैं। सच्चा शिवभक्त शिव के दर्शन सहज ही कर लेता है। शिव परम कल्याणकारी हैं।

शिव-पूजा के विधान अनुसार हमें शिव की पूजा शिव होकर के ही संपादित करना चाहिए अर्थात 'शिवो भुत्वा शिवम्‌ यजेत्‌', तभी शिव की प्राप्ति संभव है। शिव होने का अर्थ है योगी होना, त्यागी होना, वैरागी होना अर्थात सब कुछ अच्छा विश्व को अर्पित कर देना और स्वयं विषपान कर लेना।

वास्तव में शिव को प्रसन्न करना अत्यंत आसान है, परंतु इस हेतु शिव-पूजा पूर्ण श्रद्धा व आस्था-भक्ति के साथ की जानी चाहिए। इस हेतु आवश्यक यह है कि शिव आराधना करते समय हमारा अंतर्मन निर्मल व पावन होना चाहिए। प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर शिव को प्रणाम करके मंत्रानुसार पूजना चाहिए।

'देव-देव महादेव नीलकंठ नमोऽस्तुतो।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रि व्रतं तंव॥
तव प्रभावाद्देवेश निर्विघ्रेन्‌ भवेदिति।
कामाद्याः शत्रवो मां भे पीड़ा कुर्वन्तु नैव हि॥'

(अर्थात- देव-देव! महादेव! नीलकंठ! आपको नमस्कार है। देव मैं आपके शिवरात्रि व्रत का अनुष्ठान करता हूँ। देवेश्वर आपके प्रभाव से यह व्रत बिना किसी विघ्न-बाधा के पूर्ण हो और काम आदि शत्रु मुझे पीड़ित न करें)

शिव को प्रसन्न करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना भी फलदायी होता है। इस मंत्र में 32 अक्षर हैं। ॐ लगाने से 33 अक्षर आते हैं। 33 अक्षरों में 33 देवताओं की शक्ति निहित है। इस मंत्र को त्रिपुरारि कहा जाता है। यह मंत्र मृत्यु पर भी विजय पाने वाला मंत्र है। हमें शिव के प्रति हमेशा श्रद्धा-भक्ति रखनी चाहिए, तभी वांछित फल मिल सकेगा।