हरियाली तीज: बरकरार है रौनक

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गाँव-कस्बा हो या मेट्रो शहर, त्योहारों की धूम तो हर जगह रहती है। वैसे भी जब मौसम हो त्योहारों के शुरू होने का तो जोश और उत्साह बढ़ जाता है। तीज के त्योहार की धूम भी इन दिनों हर जगह मची होती है। महिलाएँ जोर-शोर से तीज की तैयारी कर रही हैं।

तीज के त्योहार पर भी थोड़ी-बहुत आधुनिकता की मार पड़ गई है लेकिन आधुनिकता ने इसके उत्साह में कोई कमी नहीं की है। बेशक वक्त की कमी के चलते कभी सामूहिक तौर पर मनाया जाने वाला यह त्योहार अब घरों के भीतर तक सिमट गया है। अपने बचपन के दिनों में मनाई जाने वाली तीज की याद करते हुए सुनीता बताती हैं कि पहले सावन लगते ही तीज की तैयारियाँ शुरू हो जाती थीं। महिलाएँ जवे (सेवाइयाँ) तोड़ने लगती थीं। तीज महिलाओं की मौज-मस्ती का त्योहार होता था।

हालाँकि तीज को लेकर कामकाजी महिलाओं के उत्साह में आज भी कोई कमी नहीं है पर वक्त की कमी के चलते जवे तोड़ना जैसे काम अब वे खुद नहीं कर पातीं। आज हर कोई अपने परिवार में ही इस त्योहार को मनाता है। झूले की बात करें तो बदलते दौर में झूलों की स्टाइल में भी कई परिवर्तन आए हैं। आज भी सावन के मौके पर अनेक स्थानों पर झूले सजते हैं और महिलाएँ झूला भी झूलती हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले इन त्योहारों को मनाने के लिए वक्त की कोई कमी नहीं थी।

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कच्चे नीम की निंबोली... सावण जल्दी आइयो रे... हरियाणा का यह लोकगीत तीज के मौके पर शहर और गाँवों में रह रही बुजुर्ग महिलाओं की जुबान पर रहता है। बाजार में भी इन दिनों हरियाली तीज के आने की रौनक देखी जा सकती है। तीज के उपहारों और जरूरी सामान के खरीदारों का उत्साह देखते ही बनता है। सावन में पड़ने वाली इस तीज का नई नवेली दुल्हनें ही नहीं, बड़ी-बूढ़ी महिलाएँ भी बेसब्री से इंतजार करती हैं।

तीज को झूला उत्सव भी कहा जाता है। न सिर्फ गाँवों में बल्कि शहरों में भी झूले डालने की तैयारियाँ सावन लगते ही शुरू हो जाती हैं। शहरों में तो तीज को लेकर अनेक स्थानों पर तरह-तरह के आयोजन और समारोह भी होते हैं जहाँ महिलाओं के लिए मेहँदी, चूड़ियाँ, साज-श्रृंगार के सामान और झूला झूलने की खास व्यवस्था रहती है।

तीज की तैयारियों की बात करें तो महिलाएँ घरों की साफ-सफाई के साथ-साथ साज-श्रृंगार का भी पूरा बंदोबस्त कर लेती हैं। साथ ही, तीज पर गाए जाने वाले गीतों को भी महिलाएँ एकत्रित होकर गाती हैं। इन गीतों में कहीं भाई-बहन का प्यार झलकता है तो कहीं सास-बहू की नोक-झोंक और कहीं पिया से मिलन की कामना।

इस त्योहार पर महिलाओं के मायके से ससुराल में कोथली ले जाने की भी परंपरा है जिसमें भाई अपनी बहन के लिए मेहँदी, चूड़ियाँ, मीठी सुहाली, घेवर और मिठाइयाँ आदि लेकर जाते हैं जिसके आने का बहन को भी बेसब्री से इंतजार रहता है।इस मौके पर सास भी अपनी बहुओं को सिंधारा देती हैं जिसके लिए तैयारियाँ कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं।

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