Kannauj Lok Sabha seat: समाजवादी पार्टी के मुखिया और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की उम्मीदवारी से उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट पर मुकाबला रोचक हो गया है। 2019 के चुनाव में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की पत्नी डिंपल यादव यहां कड़े मुकाबले में भाजपा के सुब्रत पाठक (Subrata Pathak) से करीब 12 हजार मतों से पराजित हो गई थीं। भाजपा ने एक बार फिर पाठक को कन्नौज सीट से उम्मीदवार बनाया है। 1967 में अस्तित्व में इस सीट पर प्रख्यात समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया भी चुनाव जीत चुके हैं।
अखिलेश को पीडीपी का सहारा : वहीं, अखिलेश यादव ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) इस बार इन्हें धोने जा रहा है। लगातार चुनावों में हार होते देख भाजपा के लोग ओछी हरकतें कर रहे हैं। भाजपा ने जिस तरह मंदिर धोने का काम किया है वैसे ही जनता वोट डाल डालकर ऐसा धोएगी कि वह दोबारा नहीं लौटेगी। दरअसल, यादव ने हर्षवर्धन कालीन मंदिर बाबा गौरीशंकर महादेव मंदिर में दर्शन किए थे। इसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने मंदिर को धोया था।
डिंपल चुनी गई थीं निर्विरोध : कन्नौज लोकसभा सीट पर सबसे लंबे समय तक समाजवादी पार्टी का ही कब्जा रहा है। 1998 से 2014 तक यहां समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार ही सांसद चुना जाता रहा है। अखिलेश यादव के सीट छोड़ने के बाद 2012 में हुए उपचुनाव में इस सीट पर अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव निर्विरोध सांसद चुनी गईं। तब उनके खिलाफ किसी भी पार्टी ने उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था। 2014 में डिंपल एक बार फिर इस सीट से सांसद बनीं, लेकिन 2019 में कड़े मुकाबले में वे चुनाव हार गईं। यह लोकसभा क्षेत्र 5 विधानसभा सीटों में बंटा हुआ है। इनमें से 4 पर भाजपा का कब्जा है, जबकि एक सीट बिधूना पर समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार रेखा वर्मा ने जीत हासिल की थी। छिबरामऊ, तिर्वा, कन्नौज और रसूलाबाद में भाजपा के उम्मीदवार विजयी हुई थे।
क्या है कन्नौज का इतिहास : वर्तमान में यूं तो कन्नौज शहर इत्र नगरी के नाम से मशहूर है, लेकिन यह काफी प्राचीन है। किसी समय यह नगर कन्याकुज्जा या महोधि के नाम से जाता था, लेकिन कालांतर में इसका नाम बदलकर कन्नौज हो गया। इस नगर का संबंध महाभारत काल से भी है। वर्धन वंश के सम्राट हर्षवर्धन ने भी इस नगर को अपनी राजधानी बनाया था। हर्ष के शासनकाल में ही चीनी यात्री व्हेनसांग भारत आया था।